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“जजों को धर्म के मामलों में न्यायविद नहीं बनना चाहिए” : हिजाब मामले पर SC में सुनवाई के दौरान हुई जबरदस्त बहस

याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील आदित्य सोंधी ने दलील दी कि एक छात्रा को सिर्फ इसलिए कि वह हिजाब पहनती है, एक कक्षा के अंदर अनुमति न देना भी अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है (राज्य जाति, लिंग, धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगा ).

हिजाब पहनने पर उठे विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हुई. याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील आदित्य सोंधी ने दलील दी कि  मैं जस्टिस सच्चर समिति की रिपोर्ट के निष्कर्ष का उल्लेख करता हूं.  इसमें यह निष्कर्ष निकाला गया था कि हिजाब, बुर्का आदि पहनने की अपनी प्रथाओं के कारण मुस्लिम महिलाएं भेदभाव का सामना कर रही थीं. वकील सोंधी ने नाइजीरियाई सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि लागोस के पब्लिक स्कूलों में हिजाब के इस्तेमाल की अनुमति दी थी. सरकार के आदेश को आखिरकार स्कूलों पर छोड़ देना चाहिए.  इन परिस्थितियों में कौन सी सार्वजनिक व्यवस्था की समस्या पैदा होती है?  किसी आधार पर ही लड़कियों ने इसे पहना है. और कर्नाटक हाई कोर्ट के सरकार के आदेश को न केवल धर्म की स्वतंत्रता, शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन, बल्कि अनुच्छेद 15 का भी उल्लंघन है, जो भेदभाव है.  छात्रों को हिजाब पहनने या अपनी शिक्षा जारी रखने का अधिकार कैसे चुनने के लिए कहा जा सकता है? छात्राओं को हिजाब पहनने की अनुमति नहीं देने का मतलब यह भी है कि उन्हें शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है. बता दें कि जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है.

सोंधी- एक छात्रा को सिर्फ इसलिए कि वह हिजाब पहनती है, एक कक्षा के अंदर अनुमति न देना भी अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है (राज्य जाति, लिंग, धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगा ). सोंधी ने डॉ अम्बेडकर का हवाला दिया- जिसमें कहा गया है कि बिना रोजगार वाले व्यक्ति को कम नौकरियों और अधिकारों वाली नौकरी चुनने के लिए मजबूर किया जा सकता है. बेरोजगारों को मौलिक अधिकारों को छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है.

जस्टिस धूलिया – डॉ. अम्बेडकर का उद्धरण यहां कैसे प्रासंगिक है?

सोंधी : एक नागरिक पर दो अधिकारों में से किसी एक को चुनने का बोझ नहीं होना चाहिए. यही वह स्थिति है जिसका सामना लड़कियां कर रही हैं.

वकील आदित्य सोंधी ने कहा – यह मामला भारत के लिए स्थायी कमीशन के लिए महिलाओं के अधिकार से संबंधित था.  उस संदर्भ में कोर्ट ने माना कि जो सहज और तटस्थ प्रतीत होता है, उसका अप्रत्यक्ष रूप से एक समूह के साथ भेदभाव करने का प्रभाव हो सकता है और यदि ऐसा है, तो कोर्ट द्वारा इसका विरोध किया जाएगा . लॉ कॉलेज में मेरे ऐसी दोस्त हैं, जिन्होंने कभी हिजाब नहीं पहना.  यह अंततः व्यक्तिगत पसंद का मामला है, लेकिन यहां हम उन छात्रों के साथ काम कर रहे हैं, जो शायद परिवार में पहले शिक्षार्थी हों.  हमें सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना होगा.

-वकील सोंधी ने अमेरिका के फैसले का उदाहरण देते हुए कहा कि राज्य सरकार को राज्य के हित में काम करने के दौरान धार्मिक मामले में न्यायोचित दिखाना चाहिए. अंतर-धार्मिक मतभेद हो सकते हैं, इसलिए तथ्य यह है कि कुछ लड़कियां न पहनने का विकल्प चुनती हैं, यह बात अलग है. 

– सोंधी- वास्तव में, कई लड़कियों को चुनाव करने के लिए मजबूर किया गया है, और उन्हें शिक्षा से बाहर कर दिया गया है.

– सोंधी ने नाइजीरिया के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कुछ अंश पढ़े, जिसमें कहा गया है कि कुरान की आयतों में कहा गया है कि महिला मुसलमानों को अपने सिर को ढंकना चाहिए.

वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बहस शुरू की 

– धवन: आवश्यक प्रथाओं पर, केरल हाईकोर्ट  और कर्नाटक हाईकोर्ट  के बीच मतभेद है.  केरल हाईकोर्ट इसे आवश्यक मानता है.

– हिजाब पहनने वाले व्यक्ति के साथ धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है.
– पोशाक का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है.
–  एक और अधिकार है
– हिजाब पहनने वाले व्यक्ति के साथ धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है.
– जब तक हम इस मामले को उसके सही परिप्रेक्ष्य में नहीं रखते.
– हम जानते हैं कि आज जो कुछ भी इस्लाम के रूप में आता है, उसे खारिज करने के लिए बहुसंख्यक समुदाय में बहुत असंतोष है.
– हम देख सकते हैं कि गौ हत्या मामले में, अब 500 पूजा स्थलों पर मामले दाखिल किए गए हैं.
 -जस्टिस गुप्ता: आपको तथ्यों पर टिके रहना चाहिए 
  – धवन- मैं भेदभाव पर हूं.

धवन ने कहा कि दुनिया भर में हिजाब को वैध माना जाता है. तर्क हेडस्कार्फ़ के बारे में नहीं है. तर्क हिजाब को लेकर है. यह लिंग और धार्मिक अधिकारों पर फैसला करने का मामला है. कोर्ट ने पूछा क्या ऐसा सिर्फ स्कूल में हो रहा है?

धवन ने कहा- इसकी व्याख्या यह है कि यह परेशानी हर जगह हो रही है, पूरे भारत में..
धवन ने कहा –  यहां मसला ड्रेस कोड के जरिये स्कूल में अनुशासन का नहीं है.
कर्नाटक HC के फैसले के बाद अखबारों में लिखा गया कि हिजाब पर बैन लगाया गया न कि ड्रेस कोड को बरकरार रखा गया.

कोर्ट- अखबार जो लिखते नहीं है, वो कोर्ट की सुनवाई का विषय नहीं है
धवन -अखबार जो लिखते है, उससे पता चलता है कि आखिर असल मुद्दा क्या है. ये सिर्फ स्कूल में अनुशासन का विषय नहीं है.

धवन : यह विवाद डेवलपमेंट कमिटी की वजह से बढ़ा.
छात्राओं के साथ मारपीट की गई और उनके साथ भेदभाव किया गया. दरअसल मामला यही है. प्रिंसिपल ने भी गार्जियन से मिलने से इनकार कर दिया. 
आवश्यक धर्मों के अभ्यास पर धवन
 हम जो नहीं चाहते हैं, वह यह है कि अदालत हर धर्म हाई प्रीस्ट ना बने
बस पंडित बने और तय करें कि कानून क्या है

जस्टिस गुप्ता – अगर हम तय नहीं करेंगे तो कौन फैसला करेगा?
– अगर कोई मुद्दा आता है, तो कौन-सा मंच तय करेगा? 
– यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है तो कौन फैसला करेगा ?

धवन : क्या विवाद है
– क्या यह एक आवश्यक प्रथा है.
– यदि पूरे भारत में हिजाब का अभ्यास किया जाता है तो अदालत केवल यह देखेगी कि क्या यह एक वास्तविक प्रथा है.

धवन: यदि कोई काम किसी आस्था के सिद्धांतों के अनुसार किया जाता है, और प्रामाणिक है..तो हमें यह जांचना होगा कि यह प्रथा प्रचलित है या नहीं, और यह प्रथा दुर्भावनापूर्ण नहीं है.
धवन – जजों को  धर्म के मामलों में न्यायविद नहीं बनना चाहिए. 
– किसी भी बाहरी प्राधिकरण को यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि ये धर्म के आवश्यक अंग नहीं है.
 –  यह राज्य के धर्मनिरपेक्ष प्राधिकरण के लिए प्रशासन की आड़ में उन्हें किसी भी तरह से प्रतिबंधित करने के लिए खुला नहीं है.

कोर्ट ने राजीव धवन से पूछा कि क्या हिजाब इस्लाम मे एसेंशियल प्रैक्टिस है? 
राजीव धवन ने कहा कि हिजाब पूरे देश में पहना जाता है. यह इस्लाम में एक उचित और स्वीकार्य प्रैक्टिस है और बिजॉय एमेनुएल मामले में कोर्ट ने तय किया था कि अगर यह साबित होता है कि कोई प्रैक्टिस उचित और स्वीकार्य है तो उसे इजाजत दी जा सकती है.
धवन- दरअसल ये मामला हिजाब के खिलाफ अभियान को लेकर चलाए जा रहे कैंपेन को लेकर है.
धवन – सरकारी आदेश का कोई आधार नहीं है 
– ये मुसलमानों विशेष तौर पर मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाने के लिए है 
– धवन की दलीलें पूरी    

याचिकाकर्ताओं की ओर से हुजेफा अहमदी 
–  वैध राज्य हित क्या है? 
– वैध राज्य हित शिक्षा को प्रोत्साहित करने में है, खासकर नाबालिगों के बीच
– उसका हित ऐसी नीति बनाने में नहीं है जिसमें बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़े

-अहमदी ने नियम 11 को पढ़ा जिसमें कहा गया है कि ड्रेस को 5 साल तक नहीं बदला जाएगा और ड्रेस में बदलाव को एक साल पहले ही निर्धारित किया जाना चाहिए. हिजाब को प्रतिबंधित करने की कोई शक्ति इसमें नहीं दी गई है. उन्‍होंने कहा कि  राज्य को देखना होगा कि जनहित कहाँ है?  अनुशासन लागू करने में या शिक्षा को बढ़ावा देने में?  यदि सर्कुलर एक समुदाय को टारगेट करता है तो यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा. 

अहमदी : हाईकोर्ट के इस फैसले का असर फैसले के बाद ही देखा जा सकता है.

 जस्टिस धूलिया: फैसला मार्च 2022 का है, और क्या इसका असर हुआ है 

अहमदी : पीयूसीएल की रिपोर्ट आ गई है.

जस्टिस धूलिया : हम नहीं जानते कि यह रिपोर्ट कितनी प्रामाणिक है

अहमदी : हाईकोर्ट के इस फैसले का असर फैसले के बाद ही देखा जा सकता है.

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जस्टिस धूलिया : हम नहीं जानते कि यह रिपोर्ट कितनी प्रामाणिक है.

जस्टिस धूलिया : क्या आपके पास ड्रॉप आउट छात्रों के प्रामाणिक आंकड़े हैं?

 अहमदी : मेरे साथी ने 17000 छात्रों को परीक्षा से बाहर रहने की सूचना दी है.

अहमदी- यहां एक समुदाय है जहां कुछ छात्रो ने  रूढ़ियों को तोड़ने में कामयाब हुए थे और स्कूल जाना शुरू कर दिया था. अधिक से अधिक छात्रों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना राज्य की प्राथमिकता होनी चाहिए. ये नियम उन्हें वापस धार्मिक शिक्षा में भेजने का होगा.
हुजैफा अहमदी ने अपनी बहस पूरी की.कल भी सुनवाई जारी रहेगी.

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