आशा पारेख (Asha Parekh) ने संजय लीला भंसाली की सराहना करते हुए कहा कि डांस के मामले में बॉलीवुड अपनी भारतीय जड़ों को भूल गया है. उन्होंने अपने सदाबहार गानों के रीमिक्स पर भी प्रतिक्रिया दी. बता दें कि आशा पारेख को कुछ दिनों पहले ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था.
आशा पारेख (Asha Parekh) अपनी अदाकारी के साथ-साथ क्लासिकल डांस के लिए भी मशहूर रही हैं. वे एक प्रशिक्षित क्लासिकल डांसर हैं. उन्होंने अपने एक नए इंटरव्यू में कहा कि बॉलीवुड अब अपने इंडियन कल्चर को नहीं दर्शाता है, खासकर डांस के मामले में ऐसा है. जबकि उन्हें लगता है कि लोग आजकल अपनी भारतीय जड़ों को भूल गए हैं. उन्होंने फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली को अपवाद माना. उन्होंने अपने गानों के रीमिक्स को लेकर भी नाराजगी जाहिर की.
आशा पारेख ने अपने अभिनय की शुरुआत फिल्म आसमान से तब की थी, जब वे सिर्फ 10 साल की थीं. वे साल 1959 की फिल्म ‘दिल देके देखो’ से मशहूर हुई थीं, जिसमें उन्होंने शम्मी कपूर के साथ अभिनय किया था. उन्होंने 50 साल से ज्यादा लंबे करियर में 95 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया था. उनकी कुछ बेहतरीन फिल्मों में ‘कारवां’, ‘कटी पतंग’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘बहारों के सपने’ और ‘प्यार का मौसम’ शामिल हैं.
आशा पारेख ने बोस्टन में एक कार्यक्रम के दौरान कनेक्ट एफएम कनाडा से कहा, ‘हम अपने डांस ट्रेडिशन को भूल गए हैं और हम वेस्टर्न डांस की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं. मुझे लगता है कि मेरी इस बात से आप सहमत होंगे कि जिस तरह का डांस हम इन दिनों देख रहे हैं, वह हमारा स्टाइल नहीं है.’
आशा पारेख ने की भारतीय डांस की तारीफ
वे आगे कहती हैं, ‘यह हमारी संस्कृति नहीं है. हमारे डांस की इतनी समृद्ध परंपरा है कि हर स्टेट की अपनी एक डांस शैली है और हम क्या कर रहे हैं? हम वेस्टर्न डांस की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं. कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम एरोबिक्स कर रहे हैं, हम डांस नहीं कर रहे हैं. यह देखकर मेरा दिल दुखता है.’
आशा पारेख को अपने गानों के रीमिक्स लगते हैं ‘भयानक’
आशा पारेख ने संजय लीला भंसाली की तारीफ करते हुए उन्हें एक अपवाद बताया. वे कहती हैं, ‘वे इससे बंधे हुए हैं. आप उनके काम में भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान देख सकते हैं.’ उन्होंने यह भी कहा कि उनके गानों के रीमिक्स ‘भयानक’ हैं. वे बताती हैं, ‘ऑरिजिनल गानों की मिठास रीमिक्स के लाउड ड्रम और बीट्स में डूब जाती है, शब्द खो जाते हैं.’ बता दें कि आशा पारेख को कुछ दिनों पहले ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ मिला था.