Diwali 2022: जानें दिवाली कब है, दिवाली का शुभ मुहूर्त क्या और पूजा की विधि क्या है और इसका भगवान श्रीकृष्ण से क्या संबंध है. दीपावली को रोशनी का पर्व कहा जाता है. हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को दीपों का यह पर्व मनाया जाता है. दिवाली (Deepavali 2022) के साथ कई पौराणिक और धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं.
Diwali 2022: दिवाली हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है. इसी दिन भगवान राम लंका में रावण को मारकर वापस अयोध्या लौटे थे. कहा जाता है कि त्रेतायुग में इस दिन भगवान राम के लौटने पर अयोध्या में इतने दीये जलाए गए थे कि तारे भी शरमा जाएं. हर तरह दीप ही दीप थे. हर ओर राजा राम के लौटने का हर्षोल्लास था. हर कोई दीप जलाकर उनका स्वागत कर रहा था. भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या लौटने की उसी खुशी को आज भी दिवाली या दीपावली के रूप में मनाया जाता है.
दीपावली को रोशनी का पर्व भी कहा जाता है. हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को दीपों का यह पर्व मनाया जाता है. दिवाली (Deepavali 2022) के साथ कई पौराणिक और धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं. भगवान राम द्वारा लंकापति रावण को मारने और 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की कहानी तो आपको पता ही है. माना जाता है कि जब भगवान राम अपनी पत्नी माता सीता और भाई लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने खुशी में दीप जलाकर उनका स्वागत किया. यही वजह है कि आज भी कार्तिक अमावस्या की रात दीप जलाकर उस दिन को याद किया जाता है. दशहरा के दिन भगवान राम ने रावण का वध किया और उसके बाद 20वें दिन वह अयोध्या पहुंचे, इसीलिए दशहरा के 20 दिन बाद दीपावली मनाई जाती है.
दीपावली की तारीख और शुभ मुहूर्त
इस साल दीपावली 24 अक्टूबर 2022 को मनाई जाएगी. दीपावली के दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 4.19 बजे तक है. हालांकि, आप अपने पंडित जी से अभिजीत मुहूर्त के बारे में जान सकते हैं.
दीपावली का महत्व – Diwali Importance
दीपावली दीपों का त्योहार है, यह खुशी का और मिलन का त्योहार है. इस दिन लोग अपने नाते-रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलकर बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं और दीपावली की मिठाई बांटते हैं. इस अवसर पर लोग एक-दूसरे के साथ का लुत्फ उठाते हैं और मिलकर भोज का आयोजन भी किया जाता है. इस दौरान सभी नए कपड़े पहनते हैं और पटाखे जलाकर कर भी खुशियां मनाई जाती हैं.
श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है दीपावली की कहानी
भगवान श्रीकृष्ण का दीपावली से गहरा संबंध है. धार्मिक किताबों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृ्ष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके द्वारा बंदी बनाई गई मानव, देव और गंधर्वों की 16 हजार कन्याओं को उसकी कैद से मुक्ति दिलाई थी. इस खुशी के अवसर पर लोगों ने दीप जलाए थे. बाद में इस दिन दीप जलाने की परंपरा बन गई, जो आज भी दीपावली के रूप में मनाई जाती है. कहा जाता है कि लोगों के तानों से बचाने के लिए श्रीकृ्ष्ण ने इन 16 हजार कन्याओं से विवाह कर लिया था.
दीपावली की पूजा में क्या-क्या चाहिए
दीपवली के अवसर पर माता लक्ष्मी की पूजा होती है. दीपावली की शाम अगर आप पूरे विधि विधान के साथ माता लक्ष्मी जी का पूजन करते हैं तो भगवान की कृपा बनी रहती है. हर व्यक्ति को अपने सामर्थ्य और सामग्री के अनुसार माता लक्ष्मी जी का पूजन करना चाहिए. माना जाता है कि लक्ष्मी जी को कुछ वस्तुएं विशेषतौर पर प्रिय हैं, उनके उपयोग से वह शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती हैं. माना जाता है कि माता को वस्त्रों में लाल-गुलाबी या पीले रंग के रेशमी वस्त्र पसंद होते हैं. माता को कमल और गुलाब के फूल के साथ ही श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार और सिंघाड़े पसंद हैं. गुलाब, चंदन, केवड़ा आदि के इत्र को उनकी पूजा में अवश्य रखना चाहिए. उन्हें घर में बनी केसर युक्त मिठाई या हलवा के साथ ही शिरा का नैवेद्य भी चढ़ाया जाता है. दीपावली के दिन माता लक्ष्मी के पूजन के दौरान प्रकाश के लिए गाय का घी, तिल और मूंगफली के तेल का दीया जलाया जाता है. कमलगट्टा, गन्ना, बिल्वपत्र, हल्दी की गांठ, गंगाजल, पंचामृत, ऊन का आसन, रत्न, आभूषण, गाय का गोबर, भोजपत्र और सिंदूर का माता के पूजन में उपयोग किया जाता है.
दीपावली की पूजा के लिए चौकी पर भगवान लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां इस तरह से रखें कि उनके मुख पूर्व या पश्चिम में रहें. याद रखें कि लक्ष्मी जी, गणेश जी के दाएं ओर रहें. पूजा के लिए आप भगवान के ठीक सामने बैठें और कलश को लक्ष्मी जी के पास चावलों के ऊपर रखें. नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर रखें. कलश वरुण देव का प्रतीक है. दो बड़े दीपक लें और एक में तेल रखकर दूसरे में घी रखें. एक दीवक को चौकी के दाईं ओर रखकर दूसरे को मूर्तियों के चरणों के आगे रखें. एक छोटा दीपक गणेश जी के पास भी रख दें. जिस चौकी पर मूर्तियां रखी हैं, उसके ठीक सामने एक छोटी चौकी रखें और उस पर लाल वस्त्र बिछा दें. एक मुट्ठी चावल से वस्त्र पर कलश की ओर नवग्रह की प्रतीक 9 ढेरियां बना लें. प्रथम पूज्य गणेश जी की ओर चावक की 16 ढेरियां बना लें, बता दें कि यह 16 मातृका की प्रतीक हैं. नवग्रह और षोडष मातृका के बीच स्वास्तिक बनाना न भूलें. बीच में सुपारी रखकर चारों कोनों पर चावल की ढेरी बनाएं. इनके ऊपर बीच में ॐ लिखें. छोटी चौकी के सामने जल भरकर रखें और तीन थालियां भी रखें. इन तीन थालियों में से एक में 11 दीपक, दूसरी थाली में खील, बताशे, मिठाई, चंदन का लेप, कुमकुम, सिंदूर, पान, सुपारी, वस्त्र और आभूषण रखें. तीसरी थाली में लौंग, इलायची, केसर, कपूर, फूल, दुर्वा, चावल, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, सुगंधित पदार्थ, हल्दी-चूने का लेप आदि रखें. इन थालियों के आगे आपको यजमान के तौर पर बैठना चाहिए. परिवार के सदस्य आपके बाईं तरफ बैठें और घर में कोई मेहमान आया हो तो उसे परिवार के बीच में बिठाएं.
दीपावली पूजन की विधि
पूजा के जलपात्र से हाथ में थोड़ा सा लें और मूर्तियों के ऊपर छिड़क दें. नीचे बताए गए मंत्र के साथ पानी को छिड़ककर अपनी पूजा सामग्री और आसन को पवित्र कर लें –
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
जमीन पर जिस जगह आपका आसन बिछा है उस जगह को पवित्र करके पृथ्वी माता को प्रणाम करें और निम्न मंत्र का पाठ करें –
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
इसके बाद आपको आचमन करना चाहिए. फूल, चम्मच या स्वयं की अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में डालें और बोले –
ॐ केशवाय नमः फिर एक बूंद जल मुंह में छोड़ें और बोलें –
ॐ नारायणाय नमः अब एक और बूंद पानी की मुंह में छोड़कर बोलें –
ॐ वासुदेवाय नमः
अब ॐ हृषिकेशाय नमः का जाप करते हुए हाथों को खोल लें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछ लें और हाथों को धो लें. अब तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास करें. आचमन करने से विद्या, आत्म, और बुद्धि तत्व का पवित्र हो जाते है, यही नहीं तिलक व अंग न्यास से व्यक्ति पूजा के लिए पूरी तरह से तैयार और पवित्र हो जाता है.
आचमन के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर करें और तीन बार गहरी सांस लें या प्राणायाम करें. पूजा की शुरुआत में स्वस्तिवाचन करें. इसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत, जल लेकर स्वतिन: इंद्र देव मंत्रों का जाप करें और उस परमपिता परमात्मा को याद कर प्रणाम करें. इसके बाद पूजा का संकल्प करें, क्योंकि संकल्प हर पूजा में प्रधान होता है.
कैसे लें संकल्प
हाथ में फूल, अक्षत और जल लें. कुछ द्रव्य (धन) भी लाथ में रख लें. अब संकल्प करें कि मैं—-, —– स्थान पर, —– देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं, जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों. गणेश जी प्रथम पूज्य हैं और उनके बाद माता गौरी का पूजन करें. उनके बाद कलश यानी वरुण देव का पूजन करें.
इसके बाद हाथ में थोड़ा सा जल लें और आह्वान व पूजा के मंत्र बोलकर पूजा सामग्री चढ़ा दें. अब नवग्रहों की पूजा करने के लिए हाथ में फूल और अक्षत लेकर नवग्रह स्त्रोत बोलें. इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं की पूजा जी जाती है. हाथ में अक्षत, पु्ष्प और गंध लें और 16 माताओं से प्रणाम करके पूजा सामग्री चढ़ा दें. अब रक्षाबंधन की बारी है, सबसे पहले मौली भगवान गणेश को चढ़ाएं और फिर अपने हाथ में बंधवा लें व तिलक लगा लें. अब शांति से माता महालक्ष्मी की पूजा करें.