संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूरे साल होता है. हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ये व्रत किया जाता है. गणेश पुराण में ब्रह्माजी इस उपवास के बारे में बताते हैं कि साल की सभी चतुर्थियों के व्रतों का बहुत महत्व है.
Sankashti Chaturthi Vrat: भगवान गणेश विघ्नहर्ता देव हैं, जो हर कष्ट, संकट व विघ्न को हर लेते हैं, इसीलिए हर मांगलिक कार्य में उनकी पूजा सबसे पहले करने का विधान है. यदि कोई भक्त अपने जीवनभर के संकटों को दूर करना चाहे तो उसके लिए शास्त्रों में भगवान गणेश के संकष्टी चतुर्थी के व्रत का विधान भी गणेश पुराण में बताया गया है, जिसका एक साल तक श्रद्धापूर्वक उपवास हर संकट को काट देता है. आज हम आपको उसी व्रत के बारे में बताने जा रहे हैं.
पूरे साल चतुर्थी को होता है व्रत
संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूरे साल होता है. पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ये व्रत किया जाता है. गणेश पुराण में ब्रह्माजी इस उपवास के बारे में बताते हैं कि इस व्रत में सभी चतुर्थियों के व्रतों का बहुत महत्व है. जिस से जो बन पाए वह उसी व्रत को करके अपने अभीष्ट की प्राप्ति कर सकता है.
उपवास की अलग-अलग विधि
संकष्टी चतुर्थी के उपवास में सभी चतुर्थी का महत्व समान है, लेकिन इसके विधान में अंतर है. गणेश पुराण के अनुसार सावन मास की चतुर्थी में साधक मोदक खा कर व्रत रहे, भाद्रपद की चतुर्थी में दूध का सेवन करें और अश्विन मास की चतुर्थी में पूर्ण उपवास करे. इसके अलावा कार्तिक महीने की चतुर्थी में दूध का आहार करें और मार्गशीर्ष में निराहार रहे. पौष मास में गौ मूत्र, माघ में तिल और फाल्गुन में घी- शर्करा, चैत्र में पंचगव्य, वैशाख में शतपत्र, ज्येष्ठ में केवल घी और आषाढ़ महीने की चतुर्थी पर केवल शहद खाना चाहिए.
कृतवीर्य को पुत्र प्राप्ति
गणेश पुराण में संकष्टी चतुर्थी का महात्म्य भी बताया गया है. जिसके अनुसार पुरा काल में कृतवीर्य नाम के राजा संतान नहीं होने पर दुखी था. पुत्रकामेष्ठि यज्ञ व तप करने पर भी उसे संतान सुख नहीं मिला. इस पर नारद ऋषि के कहने पर राजा के पितरों ने ब्रह्माजी से इसका उपाय पूछा.
ब्रह्माजी ने संकष्टी चतुर्थी का व्रत इसका उपाय बताया. जिसके बाद पितरों ने स्वप्न में कृतवीर्य को दर्शन देकर संकष्टी व्रत करने की प्रेरणा दी. जिसे करने के बाद राजा कृतवीर्य को पुत्र प्राप्त हुआ.
इसी तरह गणेश पुराण में भृशुण्डी ऋषि की भी कथा है. जिनके माता पिता कुंभीपाक नरक में यातनाएं झेल रहे थे. नारदजी ने जब इसकी जानकारी भृशुण्डी ऋषि को दी तो उन्होंने अपने संकष्ठी चतुर्थी के व्रत का पुण्य फल उन्हें देकर उन्हें नरक से मुक्त करवाया. ऐसे में यह व्रत हर संकट से मुक्त करवाने के साथ मुक्ति देने वाला माना जाता है.