Financial Year 2022-23 में सरकार का फूड फर्टिलाइजर और फ्यूल सब्सिडी पर खर्च 5.4 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचने की बात कही जा रही है. हालांकि सरकार ने बजट के दौरान इसके लिए सिर्फ 3.2 लाख करोड़ का प्रावधान किया था.
नई दिल्ली. न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग ने सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट में किसानों के सब्सिडी से संबंधित कुछ जानकारी दी है. इस रिपोर्ट में यह पता चला है कि भारत सरकार गरीबों और किसानों को समर्थन देने के लिए हर साल सब्सिडी (Subsidy) पर जितना खर्च करती है, उसमें इस साल करीब एक तिहाई से ज्यादा का उछाल आ सकता है. इस उछाल के चलते सरकार को दूसरे क्षेत्रों में होने वाले खर्च में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. साथ ही अतिरिक्त खर्च को पूरा करने के लिए स्मॉल सेविंग फंड्स से पैसे भी लेने पड़ सकते हैं.
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इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार का इस फाइनेंशियल ईयर में फूड, फर्टिलाइजर और फ्यूल पर सब्सिडी का खर्च बढ़कर 5.4 लाख करोड़ रुपये यानी करीब 67 अरब डॉलर पहुंच सकता है. जबकि सरकार ने बजट पेश करते हुए इसके लिए सिर्फ 3.2 लाख करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया था.
जानिए, क्या कहा गया इस रिपोर्ट में
रिपोर्ट के अनुसार भारत एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. हालांकि कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध की वजह से कमोडिटी की कीमतों में आए उछाल के कारण वह इस समय अपने सब्सिडी बिल में उछाल से जूझ रहा है. सब्सिडी बिल में बढ़ोतरी का यह लगातार तीसरा वित्त वर्ष होगा. बता दें कि भारत सरकार के कुल खर्च का करीब 10 फीसदी सब्सिडी पर खर्च होता है.
टैक्स कलेक्शन लक्ष्य से अधिक रहने की उम्मीद
रिपोर्ट में अधिकारियों द्वारा बताया गया कि सरकार ने अपने वित्तीय घाटे को जीडीपी के 6.4 फीसदी से कम रखने का लक्ष्य रखा है. ऐसे में सरकार अपने खर्च की प्राथमिकताओं में बदलाव करेगी और स्मॉल सेविंग्स फंड से अधिक उधार लेगी. अधिकारियों ने यह भी बताया कि इस वित्त वर्ष में टैक्स कलेक्शन अनुमानित लक्ष्य से अधिक रहने वाला है, लेकिन यह अतिरिक्त खर्च की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.
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मंदी के बीच आएगा अगला बजट
इस खबर पर सवाल किए जाने पर वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है. इस बीच मोदी सरकार अगले वित्त वर्ष के लिए बजट बनाने का काम भी शुरू कर दिया है जिसे फरवरी में पेश किया जाना है. बता दें आगामी बजट ऐसे समय में पेश किया जाएगा, जब दुनिया में मंदी आने की आशंका तेज हो गई है. वहीं घरेलू ग्रोथ भी धीमी हुई है और महंगाई दर ऊंचे स्तर पर है, जिसके चलते कर्ज की लागत बढ़ गई है.