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कभी सड़क पर पनीर बेचती थीं ऑस्कर विनर Guneet Monga, मां- बाप पर बहुत हुआ अत्याचार, दर्दनाक है कहानी

Who is Guneet Monga who won oscar: गुनीत मोंगा (Guneet Monga) एक ऐसा नाम है जो चमक रहा है और वर्तमान में सभी सुर्खियों में है. 39 वर्षीय भारतीय निर्माता, जो बाफ्टा नॉमिनेट हैं और अब उन्होंने 95वें अकादमी पुरस्कारों में भारतीय फिल्म निर्माण के लिए पहला ऑस्कर जीतकर अपने देश को गौरवान्वित किया. यह गुनीत के लिए एक अद्भुत क्षण था, जिनकी तेलुगू शॉर्ट फिल्म द एलिफेंट व्हिस्परर्स ने ऑस्कर जीता है. जिस मुकाम पर गुनीत आज हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने एक दर्दनाक बचपन देखा है. बहरहाल, यहां हम आपको गुनीत मोंगा के संघर्ष से बारे में बता रहे हैं जो हम सबके लिए एक प्रेरणा बन चुकी हैं.

 गुनीत मोंगा के दुखद बचपन पर: ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के साथ एक साक्षात्कार में गुनीत ने बात की कि संपत्ति विवाद के कारण वे एक मध्यवर्गीय पंजाबी घर के एक कमरे में कैसे पली-बढ़ी. उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनकी मां को इतना दबाया गया था कि एक बार उनके रिश्तेदारों ने उन्हें जिंदा जलाने की भी कोशिश की थी. गुनीत ने अपने जीवन के उस भयानक क्षण को याद करते हुए कहा कि भयानक घटना के बाद परिवार ने अपना घर छोड़ दिया था.

गुनीत मोंगा के दुखद बचपन पर: ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के साथ एक साक्षात्कार में गुनीत ने बात की कि संपत्ति विवाद के कारण वे एक मध्यवर्गीय पंजाबी घर के एक कमरे में कैसे पली-बढ़ी. उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनकी मां को इतना दबाया गया था कि एक बार उनके रिश्तेदारों ने उन्हें जिंदा जलाने की भी कोशिश की थी. गुनीत ने अपने जीवन के उस भयानक क्षण को याद करते हुए कहा कि भयानक घटना के बाद परिवार ने अपना घर छोड़ दिया था.

 गुनीत मोंगा कहती हैं, 'मैंने उधार सपनों का जीवन जीया है. मैं दिल्ली में एक पंजाबी मध्यवर्गीय परिवार में पली- बढ़ी हूं. दुनिया के लिए हम खुश थे- लेकिन बंद दरवाजों के पीछे क्या हुआ किसी को पता नहीं था. मेरे परिवार को एक बड़े घर में एक कमरा दिया गया था. संपत्ति को लेकर भाइयों के बीच लड़ाई के कारण- मेरी मां दवाब में आ गई. उन्होंने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और वे गालियां देते थे. एक बार, बहस इतनी बढ़ गई कि उन्होंने उसे जिंदा जलाने की कोशिश की तब मेरे पिता ने पुलिस को बुलाया और फिर हम वहां से भाग गए.'

गुनीत मोंगा कहती हैं, ‘मैंने उधार सपनों का जीवन जीया है. मैं दिल्ली में एक पंजाबी मध्यवर्गीय परिवार में पली- बढ़ी हूं. दुनिया के लिए हम खुश थे- लेकिन बंद दरवाजों के पीछे क्या हुआ किसी को पता नहीं था. मेरे परिवार को एक बड़े घर में एक कमरा दिया गया था. संपत्ति को लेकर भाइयों के बीच लड़ाई के कारण- मेरी मां दवाब में आ गई. उन्होंने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और वे गालियां देते थे. एक बार, बहस इतनी बढ़ गई कि उन्होंने उसे जिंदा जलाने की कोशिश की तब मेरे पिता ने पुलिस को बुलाया और फिर हम वहां से भाग गए.’

 गुनीत ने बताया कि एक नए घर में जाने के बाद परिवार ने अपनी दूसरी पारी शुरू की और उनकी मां ने 3-बेडरूम वाले घर का सपना देखा था. अपनी मां के सपने को पूरा करने के लिए गुनीत ने 16 साल की उम्र से ही कई तरह के काम करना शुरू कर दिया था. गुनीत ने अपने द्वारा किए गए कामों को याद करते हुए कहा, 'हमने अपना जीवन नए सिरे से बनाया है. आखिरकार, मेरी मां ने 3 बेडरूम का घर बनाने का सपना देखना शुरू कर दिया- इतना स्पेसिफिक! मैंने उनके लिए एक घर लेने का दृढ़ संकल्पित लिया. 16 साल की उम्र में मैंने स्कूल के काम को बैलेंस करते हुए काम करना शुरू किया. तब मैंने सड़कों पर पनीर बेचा, पीवीआर में एक एनाउंसर बन गई आर उसे एक डीजे एंकर कह सकते हैं. कॉलेज में मैं फिल्मों में काम करने के लिए मुंबई आने लगी. मैं एक कॉर्डिनेटर से प्रोडक्शन मैनेजर बन गई. मैं जो भी कमाऊंगी, अपने माता-पिता को हमारे सपने के लिए दूंगा.'

गुनीत ने बताया कि एक नए घर में जाने के बाद परिवार ने अपनी दूसरी पारी शुरू की और उनकी मां ने 3-बेडरूम वाले घर का सपना देखा था. अपनी मां के सपने को पूरा करने के लिए गुनीत ने 16 साल की उम्र से ही कई तरह के काम करना शुरू कर दिया था. गुनीत ने अपने द्वारा किए गए कामों को याद करते हुए कहा, ‘हमने अपना जीवन नए सिरे से बनाया है. आखिरकार, मेरी मां ने 3 बेडरूम का घर बनाने का सपना देखना शुरू कर दिया- इतना स्पेसिफिक! मैंने उनके लिए एक घर लेने का दृढ़ संकल्पित लिया. 16 साल की उम्र में मैंने स्कूल के काम को बैलेंस करते हुए काम करना शुरू किया. तब मैंने सड़कों पर पनीर बेचा, पीवीआर में एक एनाउंसर बन गई आर उसे एक डीजे एंकर कह सकते हैं. कॉलेज में मैं फिल्मों में काम करने के लिए मुंबई आने लगी. मैं एक कॉर्डिनेटर से प्रोडक्शन मैनेजर बन गई. मैं जो भी कमाऊंगी, अपने माता-पिता को हमारे सपने के लिए दूंगा.’

 गुनीत मोंगा ने 6 महीने के अंतराल में अपने माता-पिता दोनों को खो दिया: कुछ पैसे कमाने के बाद, परिवार ने आखिरकार अपने सपनों का घर बुक कर लिया. हालांकि, जैसा कि नियति में था, जब तक घर ट्रांसफर होने के लिए तैयार हुआ, तब तक गुनीत ने अपने माता-पिता दोनों को 6 महीने की ड्यूरेशन में खो दिया. इस त्रासदी से आहत होकर गुनीत मुंबई चली गई और अपने दूसरे काम पर फोकस करने लगीं.

गुनीत मोंगा ने 6 महीने के अंतराल में अपने माता-पिता दोनों को खो दिया: कुछ पैसे कमाने के बाद, परिवार ने आखिरकार अपने सपनों का घर बुक कर लिया. हालांकि, जैसा कि नियति में था, जब तक घर ट्रांसफर होने के लिए तैयार हुआ, तब तक गुनीत ने अपने माता-पिता दोनों को 6 महीने की ड्यूरेशन में खो दिया. इस त्रासदी से आहत होकर गुनीत मुंबई चली गई और अपने दूसरे काम पर फोकस करने लगीं.

 फिल्म निर्माण कुछ ऐसा था जिसे गुनीत हमेशा पसंद करती थीं लेकिन काम कभी आसान नहीं था. क्राउड-फंडिंग से लेकर अंतरराष्ट्रीय बिक्री तक, उन्होंने चेहरे पर मुस्कान के साथ हर चुनौती का सामना किया. लेकिन एक चीज जिसके लिए वह हमेशा तरसती थी, वे थे उनके माता-पिता की प्रशंसा और उनकी उपस्थिति. उसी के बारे में बात करते हुए, गुनीत ने कहा, 'मुझे अभी भी याद है कि मेरे पिता ने मुझे USA की पहली स्कूल यात्रा पर भेजने के लिए अपना सोने का कड़ा बेचा था- वो चाहते थे कि मैं दुनिया को देखूं, चाहे यह उनके लिए कितना भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो. इसलिए मेरे सबसे खुशी के समय में- चाहे वह ऑस्कर में हो या जब हमने गैंग्स ऑफ वासेपुर और द लंचबॉक्स का निर्माण किया हो.. या जब मैंने अपना प्रोडक्शन हाउस लॉन्च किया हो... मैं चाहती थी कि मेरे माता-पिता मेरे साथ हों.'

फिल्म निर्माण कुछ ऐसा था जिसे गुनीत हमेशा पसंद करती थीं लेकिन काम कभी आसान नहीं था. क्राउड-फंडिंग से लेकर अंतरराष्ट्रीय बिक्री तक, उन्होंने चेहरे पर मुस्कान के साथ हर चुनौती का सामना किया. लेकिन एक चीज जिसके लिए वह हमेशा तरसती थी, वे थे उनके माता-पिता की प्रशंसा और उनकी उपस्थिति. उसी के बारे में बात करते हुए, गुनीत ने कहा, ‘मुझे अभी भी याद है कि मेरे पिता ने मुझे USA की पहली स्कूल यात्रा पर भेजने के लिए अपना सोने का कड़ा बेचा था- वो चाहते थे कि मैं दुनिया को देखूं, चाहे यह उनके लिए कितना भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो. इसलिए मेरे सबसे खुशी के समय में- चाहे वह ऑस्कर में हो या जब हमने गैंग्स ऑफ वासेपुर और द लंचबॉक्स का निर्माण किया हो.. या जब मैंने अपना प्रोडक्शन हाउस लॉन्च किया हो… मैं चाहती थी कि मेरे माता-पिता मेरे साथ हों.’

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