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इस गांव का है अपना कानून, पर्यटकों ने छुई कोई भी चीज तो देना पड़ता है 2500 रुपये जुर्माना, और भी हैं खूबियां

हिमाचल प्रदेश के एक गांव को लिटिल ग्रीस के नाम से भी जाना जाता है. दुनिया के सबसे पुराने संविधान के कारण इसे देश का सबसे पुराना लोकतांत्रिक गांव माना जाता है. हालांकि, यहां के लोग सबसे ज्यादा हशीश पैदा करते हैं, जो सरकार के लिए बड़ी समस्‍या है.

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Malana Village: भारत में हर क्षेत्र की अपनी अलग-अलग परंपराएं हैं. ऐसा ही एक अलग परंपराओं वाला गांव हिमाचल प्रदेश के कुल्‍लू जिले में है. कुल्‍लू जिले के मलाणा गांव का अपना अलग ही कानून है. इस गांव में पर्यटकों के कुछ भी छूने पर प्रतिबंध लागू है. यहां लगाए गए नोटिसों में लिखा गया है कि अगर बाहरी लोगों ने यहां की किसी भी चीज को छुआ तो उन्‍हें 1,000 रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा. ये जुर्माना 2,500 रुपये तक लगाया जा सकता है.

मलाणा गांव में ये पाबंदी इतनी सख्‍ती से लागू है कि बाहर से घूमने आए लोग यहां की दुकानों में रखे सामान तक को नहीं छू सकते हैं. यहां आने वाले पर्यटक खाने-पीने का सामान खरीदने के लिए भी पैसे दुकान के बाहर रख देते है. इसके बाद दुकानदार पर्यटक की बताई चीज दुकान के सामने जमीन पर रख देता है.

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दुनिया का सबसे पुराना संविधान मलाणा का है
मलाणा गांव की सिर्फ यही एक खासियत नहीं है. यहां का संविधान सबसे पुराना माना जाता है. इनके अपने कानून हैं, जो इतने सख्‍त हैं कि अपराधी खौफ खाते हैं. इसलिए यहां के लोग भारतीय संविधान को नहीं मानते हैं. इसे दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक गांव कहा जाता है. पहाड़ियों से घिरा मलाणा गांव हिमाचल प्रदेश के कुल्‍लू जिले में है. इस गांव की अपनी संसद भी है. यहां की संसद के छोटे और बड़े दो सदन हैं. बड़े सदन में 11 सदस्‍य होते हैं, जिसमें गांव वाले 8 सदस्‍यों का चुनाव करते हैं. बाकी के तीन स्‍थायी सदस्‍य कारदार, गुर और पुजारी होते हैं. सदन में हर घर से एक सबसे बुजुर्ग सदस्‍य होता है.

कैसे होती है संसद की कार्यवाही
कुल्‍लू जिले के मलाणा गांव की संसद के बड़े सदन में अगर किसी सदस्‍य का निधन हो जाता है तो पूरे सदन का दोबारा गठन होता है. इसके अलावा मलाणा गांव में कानून व्‍यवस्‍था को बनाए रखने के लिए अपना कानून, थानेदार और बाकी प्रशासनिक अधिकारी होते हैं. मलाणा में संसद की कार्यवाही चौपाल के तौर पर होती है. इसमें बड़े सदन के सभी 11 सदस्‍य ऊपर की तरफ बैठते हैं, जबकि छोटे सदन के सदस्‍य नीचे बैठते हैं. गांव से जुड़े सभी मसलों का फैसला सदन की कार्यवाही के दौरान ही हो जाता है. अगर सदन किसी मामले में फैसला नहीं ले पाता तो जमलू देवता ही इसका फैसला करते हैं. यहां के लोग जमलू ऋषि को ही देवता मानकर पूजते हैं. गांव के लोगों के लिए इनका फैसला अंतिम होता है.

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क्‍यों गांव को कहा जाता है ‘लिटिल ग्रीस’?
भारत और यूनान के विद्वानों का एक समूह मलाणा गांव पर शोध कर रहा है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, मलाणा गांव का महान यौद्धा सिकंदर से सीधा संबंध है. सिकंदर ने 326 ईसापूर्व जब भारत पर आक्रमण किया तो उसे पोरस से संधि करनी पड़ी. सिकंदर तो यूनान लौट गया, लेकिन उसकी सेना के कुछ सैनिक हिमाचल प्रदेश के मलाणा गांव में बस गए. लिहाजा, यहां के लोग खुद को सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानाते हैं. लिहाजा, इसे सिकंदर के सैनिकों का गांव भी कहा जाता है. हालांकि, इस बात के ऐतिहासिक सबूत नहीं मिलते हैं कि ये सिकंदर के सैनिकों का गांव है. यहां की बोलचाल में कुछ ग्रीक शब्‍दों का इस्‍तेमाल भी काफी होता है.

ऋषि जमलू के चमत्‍कार और बादशाह अकबर
भारत में एक समय तक राजा-महाराजाओं, नवाबों और बादशाहों को सिर आखों पर बैठाया जाता रहा है. आज भी ग्‍वालियर, जयपुर या दूसरी जगहों के कुछ राजघराने के लोगों को पहले की ही तरह सम्‍मान दिया जाता है. मलाणा एक ऐसा गांव है, जहां अकबर की आज भी पूजा की जाती है. हालांकि, इसका कारण अकबर की महानता नहीं है, बल्कि लोगों के बीच मान्‍यता है कि बादशाह ने एक बार जमलू ऋषि की परीक्षा लेने के लिए दिल्‍ली में बर्फबारी करने को कहा. इस पर ऋषि जमलू ने चमत्‍कार दिखाते हुए बर्फवारी करा दी. इसके बाद से मलाणा के लोग हर साल फागली उत्‍सव में अकबर की पूजा करते हैं.

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मलाणा में नशे का जमकर होता है कारोबार
हिमाचल प्रदेश के इस गांव में जमकर नशे का कारोबार होता है. ये गांव हशीश और चरस के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. दुनियाभर में यहां के चरस को ‘मलाणा क्रीम’ कहा जाता है. मलाणा में होने वाले नशे के कारोबार को रोकना हिमाचल प्रदेश सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. कई अभियानों के बाद भी इस गांव में इस कारोबार पर पूरी तरह से रोक लगा पाना संभव नहीं हो पाया है. इस गांव में एक अजीब परंपरा भी है. अगर दो पक्षों में कोई विवाद हो जाए तो दो बकरे मंगाए जाते हैं. इसके बाद दोनों पक्षों के लाए बकरों के पैर में चीरा लगाकर जहर भर दिया जाता है. इसके बाद जिस पक्ष का बकरा पहले मरता है, उसे ही दोषी माना जाता है. यही नहीं, इस फैसले पर गांव का कोई भी व्‍यक्ति सवाल नहीं उठाता है.

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