देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खातों को फ्रॉड घोषित करने से पहले भारतीय बैंकों को लोन डिफॉल्टरों की बात सुननी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया कि भारतीय बैंकों को लोन खाते को फ्राड के रूप में वर्गीकृत करने से पहले डिफाल्टरों को सुनवाई का अवसर देना चाहिए.
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मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली एक शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि डिफॉल्टर को सुनवाई का अधिकार दिए बिना बैंक खाते को एकतरफा फ्राड घोषित नहीं कर सकते हैं.
बेंच ने यह आब्जर्व किया कि लोन खाते को फ्राड घोषित करने के लिए प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने से पहले ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है.
शीर्ष अदालत तेलंगाना उच्च न्यायालय और गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक (धोखाधड़ी वर्गीकरण और वाणिज्यिक बैंकों द्वारा रिपोर्टिंग और एफएलएस निर्देश 2016 का चयन करें) मास्टर सर्कुलर पर निर्णयों का एक्जामिन कर रही थी.
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मास्टर सर्कुलर में बैंकों से कहा गया है कि वे इरादतन डिफाल्टर्स के खातों को फ्राड वाले खातों के तौर पर वर्गीकृत करें. इस सर्कुलर को कई अदालतों में चुनौती दी गई थी.
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि सुनवाई का अधिकार नहीं देने से उधारकर्ताओं के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होता है.
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शीर्ष अदालत ने अपने मौखिक फैसले में कहा, “किसी खाते को फ्राड के रूप में वर्गीकृत करने से न केवल जांच एजेंसियों को अपराध की सूचना मिलती है, बल्कि उधारकर्ताओं के खिलाफ अन्य दंडात्मक और नागरिक परिणाम भी होते हैं.”
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की मांग है कि उधारकर्ताओं को फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट के निष्कर्ष की व्याख्या करने का अवसर देने के लिए एक नोटिस दिया जाना चाहिए और उनके खाते को मास्टर निर्देशों के तहत फ्राड के रूप में वर्गीकृत करने से पहले लोप्रदाताओं के सामने खुद का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
बैंक लोन डिफाल्ट क्या होता है?
बैंक लोन डिफ़ॉल्ट तब होता है, जब कोई उधारकर्ता लन पर आवश्यक भुगतान करना बंद कर देता है. सुरक्षित लोन पर चूक हो सकती है, जैसे कि घर द्वारा सुरक्षित बंधक लोन, या असुरक्षित लोन, जैसे क्रेडिट कार्ड या स्टूडेंट लोन. डिफ़ॉल्ट होने पर उधारकर्ताओं कानूनी कार्रवाई की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और भविष्य में किसी तरह के लोन के लिए उनके रास्ते बंद हो जाते हैं.