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बिहार

बिहार के इस मंदिर की अद्भुत महिमा, माता के दर्शन करने से मिल जाती है मनचाही नौकरी!

लोगों की मनोकामनाएं पूरी करने के कारण यहां विराजमान माता को महामाया माता कहा जाता है. कहते हैं जिन भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है, वो चढ़ावा चढ़ाने जरूर आते हैं.

Bihar Historical Temples: बिहार में कई प्राचीन और दिव्य मंदिर मौजूद हैं. इनमें से कुछ मंदिरों के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन कई मंदिरों के बारे में आज भी ज्यादा जानकारी नहीं है. ऐसा ही एक अद्भुत मंदिर बिहार के आरा जिले में मौजूद है. यहां मौजूद महामाया माता के मंदिर की महिमा काफी दूर-दूर तक है. मान्यता है कि जो भी यहां सच्चे मन से कुछ मांगता है, उसे जरूर मिलता है. बेरोजगार युवाओं को माता के दर्शन करने पर मनचाही नौकरी मिलती है. मंदिर के प्रभाव के देखते हुए यहां पूरे बिहार से बेरोजगार युवा आते हैं. यह मंदिर आरा से 20 किलोमीटर के दूरी पर पिपरा गांव में मौजूद है.

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लोगों की मनोकामनाएं पूरी करने के कारण यहां विराजमान माता को महामाया माता कहा जाता है. कहते हैं जिन भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है, वो चढ़ावा चढ़ाने जरूर आते हैं. मंदिर की साफ-सफाई से लेकर बाकी सारी व्यवस्थाएं भक्तों के द्वारा ही देखी जाती हैं. स्थानीय लोग कहते हैं कि पहले मंदिर काफी छोटा था, लेकिन भक्तों के चढ़ावे से इसका विस्तार होता गया. जिन भक्तों को मनचाही नौकरी मिल जाती है, उनमें से अधिकांश मंदिर में अपनी पहली सैलरी दान कर जाते हैं.

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मन्दिर के पुजारी ने बताया कि मां ने यहां कब अवतार लिया, इसका कोई इतिहास नहीं है. कोई आज तक नहीं बता पाया है की ये माता कब से यहां विराजमान हैं. हम लोग इतना सुने है कि सैकड़ों वर्ष पहले यहां बहुत घना जंगल था. उस समय भी जगंल के बीच महामाया माई विराजमान थीं. उन्होंने सरकार पर मंदिर की अनदेखी करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि मंदिर का इतना महत्व होने के बाद भी मंदिर को उस हिसाब से विकसित नहीं किया गया. जिला प्रसाशन के द्वारा कभी ध्यान नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि यदि मंदिर को तीर्थ स्थल घोषित कर दिया जाता तो ख्याति के साथ रोजगार का भी साधन बढ़ता.

बक्सर जिले में भी काली मां का एक दिव्य मंदिर मौजूद है. यह मंदिर चरित्रवन के श्मशान घाट परिसर में स्थित है, इसीलिए मां काली को श्मशामवासिनी माता भी कहते हैं. कहते हैं कि मंदिर में मां की आरती के समय इंसान ही नहीं बल्कि इलाके के कुत्ते भी हिस्सा लेते हैं. लोगों का कहना है कि मंदिर की आरती शुरू होते ही इलाके से सारे कुत्ते मंदिर में पहुंच जाते हैं. आरती के वक्त इंसान मंदिर की घंटियां बजाते हैं, तो कुत्ते मुंह से आवाज निकालते हैं. आरती के बाद प्रसाद खाकर सभी कुत्ते वहां से चले जाते हैं. 

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