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हेल्थ

इस बीमारी से जूझ रहे 12 हजार बच्चों का हर साल मुफ्त इलाज करेगा एम्स दिल्‍ली, अस्‍पताल में बन रहा सेंटर

न्‍यूरो संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हजारों बच्‍चों के हर साल इलाज के लिए हंस फाउंडेशन और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एंड एडवांस्ड रिसर्च फॉर चाइल्डहुड न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर, चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिवीजन, बाल रोग विभाग, एम्स ने मिलकर काम करने के लिए समझौता किया है.

नई दिल्‍ली. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज दिल्‍ली हर साल न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स से जूझ रहे हजारों बच्‍चों का इलाज करेगा. हंस फाउंडेशन और एम्स दिल्‍ली ने इस बीमारी से पीड़‍ित बच्‍चों के लिए साथ मिलकर काम करने का फैसला किया है. इसके लिए जादुई वर्षों में हाथ पकड़ना नाम से एक प्रोजेक्‍ट शुरू किया गया है. वहीं अस्‍पताल में अर्ली चाइल्डहुड डिवेलपमेंट एंड न्यूरो रिहैबिलिटेशन सेंटर भी बनाया जा रहा है, जहां नई तकनीक और आधुनिक सुविधाओं से मरीजों का इलाज किया जाएगा.

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एम्‍स की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक होल्डिंग हैंड्स इन मैजिकल ईयर नाम के प्रोजेक्‍ट के तहत विकासात्‍मक देरी और अन्य न्यूरोडेवलपमेंटल परेशानियों वाले बच्चों और किशोरों पर ध्यान केंद्रित करेगी. इस प्रोजेक्‍ट के तहत हर साल अस्‍पताल में 10 से 12 हजार मरीजों का इलाज किया जाएगा.

बता दें कि इस प्रोजेक्‍ट के लिए हंस फाउंडेशन और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एंड एडवांस्ड रिसर्च फॉर चाइल्डहुड न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर, चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिवीजन, बाल रोग विभाग, एम्स ने मिलकर काम करने के लिए समझौता किया है. इससे भारत में बड़ी संख्‍या में इलाज से वंचित बच्‍चों को फायदा मिलेगा.

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भारत में 12 फीसदी बच्‍चे पीड़‍ित
द हंस फाउंडेशन के सीईओ संदीप जे कपूर के मुताबिक, ‘भारत में न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर का कुल प्रसार लगभग 12 फीसदी है, जिनमें से लगभग पांचवें हिस्से में एक से अधिक एनडीडी हैं. एनडीडी वाले इन बच्चों में से लगभग 45 फीसदी बच्‍चों में बीमारी की पहचान न होने और इलाज न मिलने की वजह से विकास की कमी या खराब विकास होने का खतरा है.’

कपूर कहते हैं, ‘एम्स के साथ इस पहल में विकासात्मक देरी, ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी जैसे अन्य न्यूरोडेवलपमेंटल विकारों वाले बच्चों की स्क्रीनिंग और शीघ्र पहचान की जाएगी. अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) और विशिष्ट शिक्षण विकलांगता का इलाज तत्‍काल किया जाएगा. हमारा अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि विकलांग लोग समाज में सार्थक जीवन का आनंद लें.’

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14 तरह की दी जाएंगी सुविधाएं
इस प्रोजेक्‍ट के लिए एम्‍स की नोडल अधिकारी प्रोफेसर शेफाली गुलाटी बताती हैं कि इस पहल में खास बात है कि पीड़‍ितों के इलाज के दौरान उनकी निजी जरूरतों के अनुसार ही व्‍यवस्‍था की जाएगी. सम्‍पूर्ण इलाज के दौरान करीब 14 तरीके की मेडिकल और सामाजिक सुविधां दी जाएंगी. जिनमें भाषण और भाषा सेवाएं, परिवार के लिए परामर्श और प्रशिक्षण, निदान और उपचार, नर्सिंग सेवाएं, पोषण सेवाएं, व्यावसायिक चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक सेवाएं जैसी बहु-विषयक सेवाएं भी शामिल होंगी. इनके अलावा एडीआईपी योजना या टीएचएफ माध्यम से सहायक सहायता का प्रावधान, देखभाल करने वालों का प्रशिक्षण, घर-आधारित हस्तक्षेप के लिए माता-पिता के लिए उपयोगी उपकरण, सामुदायिक सहभागिता और निगरानी शामिल होगी.

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