Kota News: राजस्थान के कोटा संभाग में भगवान भोलेनाथ का एक मंदिर अपनी अनूठी सुंदरता और इतिहास के लिए जाना जाता है . इस प्राचीन मंदिर को पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान महज एक दिन में बना दिया था. ये ही वो जगह है जहां खाटूश्यामजी के दादा-दादी का विवाह हुआ था.
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Kota News: राजस्थान के कोटा संभाग में भगवान भोलेनाथ का एक मंदिर अपनी अनूठी सुंदरता और इतिहास के लिए जाना जाता है . इस प्राचीन मंदिर को पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान महज एक दिन में बना दिया था. सावन में यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है. मंदिर का इतिहास इसको और खास बना देता है.
कोटा संभाग के इटावा उपखण्ड क्षेत्र के लक्ष्मीपुरा पंचायत क्षेत्र में बाणगंगा नदी के पास हांडीपाली पालेश्वर महादेव मंदिर में सावन में भक्तों की भीड़ रहती है. खासतौर पर सोमवार को भारी संख्या में भक्त यहा आते हैं और पालेश्वर महादेव के दर्शन करते हैं.
36 कलात्मक खंभों पर टिका पालेश्वर महादेव मंदिर शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है. जहां मंदिर के शिखर पर और खंभों पर महिषासुर मर्दिनी, कार्तिकेय, नटराज, मयूर जैसी कई कलाकृतियां हैं. यहा आने वाले भक्त इस शिल्पकला को कोणार्क और खुजराहो जैसी बताते हैं.
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स्थानीय लोगों को कहना है कि यहा महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास बिताया था. उस समय पांडव यहा आए थे और एक ही रात में शिव मंदिर का निर्माण हो गया था. इसके बाद से ही शिव मंदिर को हांडीपाली के पालेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्धि मिल गयी.
बताया जाता है कि उस समय जंगल में मौजूद राक्षस हिडिंबा का भीम से युद्ध हुआ था. यहीं पर राक्षसी हिडिंबा और भीम का विवाह हुआ. और उसी समय मंदिर के मंडप का निर्माण रातों रात हो गया था. इस दौरान सुबह हो जाने से शिखर का काम अधूरा ही रह गया. जो आज तक अधूरा है. हांडीपाली पालेश्वर महादेव का नाम पहले हिडिंबा-पांडवेश्वर था. बाद में भीम और हिडिम्बा के पोते खाटू श्याम बाबा ने प्रसिद्धि पायी और आज दुनिया भर में उनके भक्त है, जो हर साल खाटूश्याम दर्शन के लिए राजस्थान के सीकर पहुंचते हैं.
आस्था और प्राचीन इतिहास के बाद भी पुरातत्व विभाग के अधीन ये मंदिर सालों से उपेक्षा झेल रहा है. यहां लगी बेशकीमती मूर्तियां चोरी होती रही है. ना तो विभाग इस तरफ ध्यान देता है और ना ही पुलिस. देख रेख के अभाव में ये मंदिर अब अपना वैभव खो रहा है.
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हालांकि आज भी शिवरात्रि पर यहां बड़ा मेला लगता है. सिर्फ राजस्थान ही नहीं मध्यप्रदेश से भी यहां श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं. और फिर मंदिर के सामने ही बह रही बाणगंगा में डुबकी लगाकर पुण्य की प्राप्ति करते हैं.