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दुनिया

107 साल पहले अगर नहीं लिखे जाते वो 67 शब्द, तो आज इजरायल-हमास में नहीं होती जंग

Israel-Hamas War:  इजरायल और हमास के बीच भीषण जंग जारी है. गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 7 अक्टूबर से पट्टी में 9,000 से अधिक लोग मारे गए हैं. 

Israel-Palestine Conflict: इजरायल और हमास के बीच जारी जंग ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है. 7अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया जिसमें 1400 इजरायली मारे गए. इसके जवाब में इजरायल ने हमास के कब्जे वाले गाजा पर पहले भीषण बमबारी शुरू कर दी और फिर जमीनी ऑपरेशन शुरू कर दिया. गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि 7 अक्टूबर से पट्टी में 9,000 से अधिक लोग मारे गए हैं. इजरायल फिलिस्तीन संघर्ष (जो अक्सर हिंसक रूप धारण कर लेता हैः की जड़ें एक एक 67 शब्दों के पन्ने में हैं.

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इस पन्ने को इतिहास में बालफोर घोषणापत्र के रूप में जाना जाता है. इस दस्तावेज को लेकर इजरायल और फिलिस्तीन की राय बंटी हुई है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर इजरायली यह स्वीकार करते हैं कि इजरायल राष्ट्र की नींव इसी घोषणापत्र के साथ पड़ी. वहीं अरब जगत में बहुत से लोग मानते हैं कि यह दस्तावेज दरअसल उनके साथ एक धोखा था. जानते हैं यह घोषणा पत्र क्या था, इसके पीछे का इतिहास क्या है और इसने कैसे मध्य पूर्व को बदल दिया.

बालफोर घोषणा नवंबर 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी एक सार्वजनिक बयान था, जिसमें फिलिस्तीन में ‘यहूदी लोगों के लिए राष्ट्रीय घर (देश)’ की स्थापना के लिए अपने समर्थन की घोषणा की गई थी. ये वो दौर था जब फलस्तीन के इलाके पर ब्रिटेन का नियंत्रण था.

2 नवंबर 1917 को यूनाइटेड किंगडम के विदेश सचिव आर्थर बालफोर ने ब्रिटिश यहूदी समुदाय के नेता लॉर्ड रोथ्सचाइल्ड को एक पत्र लिखा. इसमें लिखा था,

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विदेश कार्यालय

2 नवंबर, 1917

प्रिय लॉर्ड रोथ्सचाइल्ड,

मुझे आपको बताते हुए बहुत खुशी हो रही है. महामहिम सरकार की ओर से, यहूदी जायोनीवादी आकांक्षाओं के प्रति सहानुभूति की निम्नलिखित घोषणा, को कैबिनेट के सामने पेश किया गया और इसे मंजूरी भी प्राप्त हो गई.

महामहिम की सरकार फिलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिए एक नेशनल होम  (देश) की स्थापना के पक्ष में है. सरकार इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपने सर्वोत्तम प्रयासों का उपयोग करेगी. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए कि फिलिस्तीन में रह रहे गैर यहूदी लोगों के धार्मिक और नागरिक अधिकारों या फिर किसी अन्य देश में रह रहे यहूदी लोगों को मिल रहे अधिकारों और उनकी राजनीतिक स्थिति पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े.’

यदि आप इस घोषणा को जायोनी संघ की जानकारी में लाएंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा.

आपका अपना,

आर्थर जेम्स बालफोर

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कौन थे बालफोर और रोथ्सचाइल्ड
आर्थर जेम्स बालफोर तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज की कैबिनेट में विदेश मंत्री थे. वह 1902 से 1905 तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री भी रह चुके थे. वह यहूदियों के समर्थक थे और उन्हें यह क्रेडिट दिया जाता है कि उन्होंने वॉर कैबिनेट को इस घोषणापत्र के लिए मना लिया.

लियोनेल वॉल्टर रोथ्सचाइल्ड ब्रिटेन में रहने वाले यहूदी समुदाय के बड़े नेता थे. वह एक बैंकिंग कारोबारी परिवार के प्रमुख थे. उस दौर में उनके परिवार की गिनती दुनिया के सबसे अमीर परिवार में की जाती थी. एक यहूदी राष्ट्र की स्थापनी के इस परिवार ने अपनी दौलत के लिए दरवाजे खोल दिए थे.

अंग्रेजों ने क्यों कि यहूदी राष्ट्र का समर्थन
एक यहूदी राष्ट्र को ब्रिटेन के समर्थन के पीछे कई वजह मानी जाती है. इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि अंग्रेजों का मानना था कि यहूदी राष्ट्र को समर्थन व्यक्त करना जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका में यहूदियों को पसंद आएगा. माना जाता था अमेरिका राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के दो निकटतम सलाहकार उत्साही जायोनीवादी थे. अंग्रेजों रूस में यहूदियों के बड़ी आबादी से भी समर्थन की उम्मीद थी.

इसके अलावा, ब्रिटेन का इरादा मध्य पूर्व में पैर जमाए रखना और फिलिस्तीन में एक अंतरराष्ट्रीय प्रशासन के लिए अपेक्षित फ्रांसीसी दबाव को रोकने का था.

पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य की हार हुई. वहीं बालफोर घोषणा को लीग ऑफ नेशंस का भी समर्थन मिल गया. इसी अप्रूवल के जरिए ब्रिटेन को इस इलाके के प्रशासन का चार्ज मिल गया था. बता दें लीग ऑफ नेशंस  उस दौर में मौजूदा यूएन जैसी एक संस्था थी.

दुनिया भर से यहूदी फिलिस्तीन पहुंचने लगे. फिलिस्तीनियों ने इसका विरोध किया, दोनों समुदायों के बीच हिंसक झड़पें शुरू हो गईं. वहीं दूसरे विश्व युद्ध में हिटल ने जो कुछ यहूदियों के साथ किया उससे दुनिया के बड़े हिस्से में यहूदियों को लेकर हमदर्दी

बालफोर घोषणा के करीब 30 साल बाद 14 मई 1948 इजरायल राष्ट्र की नींव पड़ गई और फिलिस्तीनियों के संघर्ष का दौर शुरू गया.

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