लोहे और पानी में करंट फैलने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है फिर भी बिजली से दौड़ने वाली रेल में करंट नहीं फैलता है. इसकी एक खास वजह है ट्रेन के ऊपर लगा एक पुर्जा, आइये आपको बताते हैं कैसे करता है ये काम?
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Railway Knowledge: एक जमाना था जब ट्रेन कोयले से चलती थी और रफ्तार भी कम हुआ करती थी. लेकिन, अब ट्रेनें बिजली से चलती हैं और करंट दौड़ते ही स्पीड पकड़ लेती हैं. लेकिन, सोचने वाली बात है कि रेल पूरी तरह लोहे से बनी होती है फिर भी करंट नहीं लगता है. क्या आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है?
यह सवाल इसलिए है कि आमतौर पर लोहे और पानी में करंट फैलने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है फिर भी बिजली से दौड़ने वाली रेल में करंट नहीं फैलता है. दरअसल इसकी एक खास वजह है. आइये आपको बताते हैं.
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पेंटोग्राफ है ट्रेन का ‘करंट रक्षक’!
बिजली से चलने के बावजूद ट्रेन में करंट नहीं फैलता है, क्योंकि जिस हाईवोल्टेज लाइन से ट्रेन पटरी पर दौड़ती है उसका यात्री कोच से सीधा संपर्क नहीं होता है. वहीं, ट्रेन को हाईवोल्टेज लाइन से करंट की सप्लाई इंजन के ऊपर लगे एक पेंटोग्राफ से मिलती है. आपने देखा होगा कि ट्रेन के इंजन के ऊपर लगा यह पेंटोग्राफ हमेशा हाईवोल्टेज लाइन से कनेक्ट रहता है.
इंजन में भी इसलिए नहीं फैलता करंट
ट्रेन के कोच, हाईवोल्टेज लाइन के संपर्क में नहीं होने के कारण करंट से बच जाते हैं लेकिन इंजन का क्या, उसमें तो करंट उतरता है फिर बिजली के झटके क्यों नहीं लगते हैं. इंजन में करंट नहीं लगने की बड़ी वजह उसके पेंटोग्राफ के नीचे लगाए जाने वाले Insulators हैं जो करंट को इंजन की बॉडी में जाने से रोकते हैं. इसके अलावा ट्रैक्शन ट्रांसफर्मर, मोटर आदि इलेक्ट्रिकल डिवाइसेज से निकलने के बाद रिटर्न करंट पहियों और एक्सल से होते हुए रेल में और अर्थ पोटेंशियल कंडक्टर से होते हुए वापस चला जाता है.
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बता दें कि ट्रेन, भारत में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सबसे बड़ा साधन है. हर रोज देश में करीब ढाई करोड़ लोग ट्रेनों से सफर करते हैं. यह आबादी ऑस्ट्रेलिया जैसे देश के बराबर है. इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इसलिए भारतीय रेलवे को देश की लाइफ लाइन कहा जाता है.