Nepal News in Hindi: भारत का पड़ोसी देश नेपाल क्या फिर से हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा है. वहां पर ज्ञानेंद्र को फिर से राजा बनाने के लिए आंदोलन तेज हो गए हैं.
Why demand for monarchy in Nepal: नेपाल में क्या इतिहास फिर से खुद को दोहरा रहा है. करीब 16 साल पहले इस हिमालयी राष्ट्र में राजशाही खत्म करके गणतंत्र स्थापित करने के लिए जनता सड़कों पर उतर आई थी. अब एक बार फिर भारत के इस पड़ोसी देश में वैसे ही हालात हैं. नेपाल की जनता सड़कों पर है और उसके आंदोलन के केंद्र में फिर से नेपाल की राजशाही है लेकिन इस बार वजह अलग है. 16 साल पहले नेपाली जनता राजशाही को हटाने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरी थी और अब उसे बहाल करने की मांग को लेकर आंदोलन कर रही है. तो क्या नेपाल एक बार फिर से हिंदू राष्ट्र बन जाएगा और राजा ज्ञानेन्द्र वहां का सिंहासन सम्भालेंगे सिंहासन. आखिर जनता का मन 16 साल में ही गणतंत्र से क्यों उचट गया.
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राजशाही की मांग पर सड़कों पर उतरे लोग
नेपाल में फिर से राजशाही लाने के लिए पिछले की सालों से छिटपुट आंदोलन चल रहे थे लेकिन पिछले महीने दुनिया तब चौंक उठी, जब राजा ज्ञानेंद्र को दोबारा गद्दी पर बिठाने की मांग को लेकर हजारों लोग नेपाल की सड़कों पर उतर आए. लोगों ने राजा ज्ञानेंद्र की गद्दी पर वापसी और हिंदू धर्म को राज्य धर्म का दर्जा दिलाने की मांग की.
लोगों ने लगाए ‘राजा वापस आओ’ के नारे
काठमांडू की सड़कों पर उतरे राजशाही समर्थक आंदोलकारियों ने ‘राजा वापस आओ, देश बचाओ’. ‘हमारे प्यारे राजा लंबे समय तक जीवित रहें, ‘हम एक राजशाही चाहते हैं’, जैसे नारे लगाए. लोगों ने नेपाल के राजनीतिक दलों पर भ्रष्टाचार में शामिल होने और विफल शासन करने के आरोप लगाए. आंदोलनकारियों ने कहा कि वे राजनीतिक पार्टियों से निराश हो चुके हैं, लिहाजा फिर से राजा की वापसी चाहते हैं.
जब नेपाल के राजा बन गए थे विलेन
नेपाल में ज्ञानेंद्र वर्ष 2005 तक राजा और संवैधानिक प्रमुख थे. उनके अधीन संसद और प्रधानमंत्री काम करते थे.उन्हें हटाने के लिए हथियारबंद कम्युनिस्ट संगठन लगातार हिंसात्मक आंदोलन चला रहे थे. जब देश में हिंसा बढ़ी तो राजा ज्ञानेंद्र ने 2005 में कार्यकारी और राजनीतिक शक्तियां जब्त करके सरकार और संसद को भंग कर दिया. इसके साथ ही इमरजेंसी की घोषणा करके विरोधी राजनेताओं और पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया.
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विरोधी पार्टियों ने 2006 में सिंहासन से हटाया
राजा ज्ञानेंद्र ने जनता से वादा किया कि वे 3 साल के भीतर देश में शांति और प्रभावी लोकतंत्र की बहाली कर देंगे. हालांकि नेपाल में 7 पार्टियों को मिलाकर बने गठबंधन और उस वक्त प्रतिबंधित रही सीपीएन माओवादी पार्टी के लगातार विरोध प्रदर्शन के बाद वर्ष 2006 में राजा ज्ञानेंद्र को सिंहासन से हटा दिया गया.
2008 में नेपाल से खत्म हो गई थी राजशाही
इसके बाद नेपाल की संसद ने वीटो पावर समेत राजा की सभी प्रमुख शक्तियों को ख़त्म कर दिया. इस वीटो पावर का इस्तेमाल राजा संसद के किसी भी अधिनियम को मंजूरी से इनकार करने के लिए कर सकता था. वर्ष 2007 में राजा की सभी शाही संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया. फिर 2008 में नेपाल में राजशाही को खत्म करके उसे गणतंत्र देश घोषित कर दिया गया.
गुमनामी के अंधेरे में खो गए ज्ञानेंद्र
अपनी शक्तियां छिनने और राजशाही खत्म होने के बाद राजा ज्ञानेंद्र गुमनामी के अंधेरे में खो गए. वे राजनीति से पूरी तरह दूर हो गए और पिछले 16 साल से कॉमन मैन की तरह जिंदगी गुजार रहे हैं. नेपाल में राजशाही समर्थक आंदोलन शुरू होने के बाद से राजा ज्ञानेंद्र शांत हैं और उनकी ओर से इस संबंध में अब तक कोई टिप्पणी सामने नहीं आई है.
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16 साल में गणतंत्र से क्यों हो गया मोहभंग?
नेपाल में वर्ष 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद वहां पर अब तक 13 सरकारें रही हैं. लोग उनमें से अधिकांश सरकारों से नाखुश रहे हैं. वे अपने देश में स्थिर और मजबूत सरकार चाहते हैं, जिसके लिए देश प्रथम हो. वह भारत और चीन के बीच नेपाल को सैंडविच की तरह पिसते नहीं देखना चाहते. लेकिन नेपाल में गठबंधन सरकारें लोगों की इन आकांक्षाओं को पूरा करने में विफल रही हैं, जिससे लोगों में उनके प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा है.
राजशाही की मांग राजनीतिक दलों को नहीं आ रही पसंद
हालांकि नेपाल के राजनीतिक दलों को यह राजशाही समर्थक आंदोलन रास नहीं आ रहा है. उन्होंने देश में फिर से राजशाही स्थापित करने की मांग को खारिज कर दिया है और कहा है कि नेपाल में राजशाही कभी बहाल नहीं होगी.