किसान भाइयों के लिए अच्छी खबर है. इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरएआरआई-पूसा) ने किसानों को लाभ देने के लिए धान की दो नई किस्मों की बिक्री शुरू कर दी है. इससे किसानों का श्रम बचेगा और करीब 6000 रुपये प्रति हेक्टेयर आर्थिक लाभ होगा.
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नई दिल्ली. किसान भाइयों के लिए अच्छी खबर है. धान बोने में उन्हें पहले के मुकाबले ज्यादा फायदा होगा. इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरएआरआई-पूसा) ने किसानों को लाभ देने के लिए धान की दो नई किस्मों बिक्री शुरू कर दी है. इन बीज की खासियत यह है कि गेंहू की तरह सीधी बुआई की जा सकती है. यानी अब नर्सरी में पौध तैयार करने की जरूरत नहीं होगी. इससे किसानों का श्रम बचेगा और करीब 6000 रुपये प्रति हेक्टेयर आर्थिक लाभ होगा.
पूसा संस्थान दिल्ली ने बासमती की रोबीनोवीड किस्म पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 किसानों के लिए बिक्री शुरू कर दी है. पूसा निदेशक डॉ अशोक कुमार सिंह के अनुसार उत्तर पश्चिमी भारत में धान की खेती में मुख्य समस्याए गिरता जलस्तर, धान की रोपाई में लगने वाले श्रमिकों की कमी और जलभराव के साथ रोपाई विधि के दौरान होने वाले ग्रीनहाउस गैस मीथेन का उत्सर्जन हैं.
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इन दो किस्मों में लगातार जलभराव की आवश्यकता नहीं होगी. अध्ययन बताते हैं कि सीधी बीजाई विधि से लगभग 33 फीसदी जल की बचत हो सकती है. इन दोनों किस्मों में खतपतवार की समस्या नहीं होगी. फसल 130-133 दिन की है और औसत उपज 45.77 कुंटल प्रति हेक्टयर है.
इन बीजों से बासमती धान की खेती की लागत घटेगी. साथ ही, ये किस्में न केवल निराई गुड़ाई से जुड़ी हुई मजदूरी को कम करेंगी, बल्कि धान खेती की पारंपरिक विधियों के पर्यावरणीय प्रभावों को भी कम करती हैं. इस तरह किसानों को प्रति हेक्टेयर 6000 रुपये तक का फायदा होगा. किसान भाई इस बीज को पूसा संस्थान दिल्ली से खरीद सकते हैं.
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कृषि आयुक्त डॉ पी.के. सिंह के अनुसार ये किस्में संस्थान जल बचाने, उपज बढ़ाने और बेहतर जलवायु के लिए बेहतर हैं. इस मौके पर एडीजी बीज डॉ डी.के. यादव, डॉ सी. विश्वनाथन (संयुक्त निदेशक, अनुसंधान), डॉ आर.एन. पड़ारिया (संयुक्त निदेशक, प्रसार), डॉ गोपाल कृष्णन (अध्यक्ष, आनुवंशिकी संभाग), डॉ ज्ञानेंद्र सिंह (प्रभारी, बीज उत्पादन इकाई) मौजूद रहे.