All for Joomla All for Webmasters
समाचार

21June 2024: आज है साल का सबसे लंबा दिन, 12 नहीं बल्कि 14 घंटे का..रोज ऐसा क्यों नहीं होता

Longest day

21 जून को हर साल सबसे लंबा दिन होता है. आमतौर पर इसकी लंबाई 14 घंटे के आसपास होती है लेकिन बस अगले ही दिन से ये घटने लगता है. आखिर क्या वजह होती है दिनों के छोटा और बड़ा होने की.

ये भी पढ़ें:- Monsoon Weather Report: दिल्‍लीवालों अलर्ट हो जाओ…आज आएगी आंधी, इस राज्‍य में 35 गांव डूबे, मुंबई की हालत खराब

21 जून (21 June) सालभर का सबसे लंबा दिन (Longest day of Year) होता है. क्या आपको मालूम है कि आज का दिन दिल्ली या उत्तर भारत में आमतौर पर कितने घंटे का होगा. यूं तो सामान्य दिनों जब दिन और रात बराबर होते हैं तो ये 12-12 घंटे के होते हैं लेकिन 21 दिसंबर के बाद रातें छोटी होने लगती हैं और दिन बड़े. 21 जून को दिन सबसे बड़ा होता है. इसके बाद दिन की लंबाई धीरे धीरे कम होनी शुरू होती है.

दिल्ली में 21 जून 2021 का दिन कितने घंटे का होने वाला है. ये दिन करीब 14 घंटे का होगा. अगर सही सही कहा जाए तो 13 घंटे 58 मिनट और 14 सेकेंड का. 22 जून को ये कम होकर 13 घंटे 58 मिनट 11 सेकेंड का होगा. 21 जून 2024 को दिल्ली और उत्तर भारत में सूर्योदय 05 बजकर 23 मिनट पर हुआ है और सूर्यास्त 07 बजकर 22 मिनट पर होगा.

ये भी पढ़ें:– दिल्‍ली शराब घोटाला: सीएम केजरीवाल को ED ने भेजा 9वां समन, पूछताछ के लिए 21 मार्च को तलब किया

21 जून का दिन खासकर उन देश या हिस्से के लोगों के लिए सबसे लंबा होता है जो भूमध्यरेखा यानि इक्वेटर के उत्तरी हिस्से में रहते हैं. इसमें रूस, उत्तर अमेरिका, यूरोप, एशिया, आधा अफ्रीका आते हैं. तकनीकी रूप से समझें तो ऐसा तब होता है जब सूरज की किरणें सीधे, कर्क रेखा/ट्रॉपिक ऑफ कैंसर पर पड़ती हैं. इन दिन सूर्य से पृथ्वी के इस हिस्से को मिलने वाली ऊर्जा 30 फीसदी ज्यादा होती है.

पृथ्वी अपना खुद का चक्कर 24 घंटे में पूरा करती है जिसकी वजह से दिन और रात होती है. वहीं सूरज का पूरा एक चक्कर लगाने में उसे 365 दिन का वक्त लगता है. जब पृथ्वी खुद में घूम रही होती है और आप उस हिस्से पर है जो सूरज की तरफ है, तो आपको दिन दिखता है. अगर उस हिस्से की तरफ हैं जो सूरज से दूर है, तो आपको रात दिखती है.

ये भी पढ़ें:– Budget 2024: व‍ित्‍त मंत्री न‍िर्मला सीतारमण टैक्‍स पेयर्स को देंगी बड़ी राहत! आयकर छूट की सीमा बढ़कर हो जाएगी इतनी

तब दिन लंबे होने लगते हैं
पृथ्वी सूरज का चक्कर लगा रही होती है तब मार्च से सितंबर के बीच पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध यानि नॉर्थ हेमिस्फेयर के हिस्से को सूरज की सीधी किरणों का सामना करना पड़ता है, तब यहां दिन लंबे होते हैं. बाकी के वक्त दक्षिण गोलार्ध यानि सदर्न हेमिस्फेयर पर सूरज की किरणें सीधी पड़ती हैं. गर्मी, सर्दी यह सारे मौसम पृथ्वी के इस तरह चक्कर लगाने की ही देन है. उत्तरी गोलार्ध पर सबसे ज्यादा सूर्य की किरण 20,21,22 जून को पड़ती है. यानि इस वक्त हम सूरज के सबसे ज्यादा करीब होते हैं. पश्चिम में कई जगहों पर इसे ग्रीष्मकालीन संक्रांति भी कहा जाता है. वहीं दक्षिणी गोलार्ध में यह दिन 21,22,23 दिसंबर को आता है.

ये भी पढ़ें:– Summer Special Train: मुंबई से बनारस, छपरा जाना हुआ आसान, 6 स्पेशल ट्रेनों का हो गया इंतजाम, देखिए पूरा शेड्यूल

पहले और तेज गति से घूमती थी पृथ्वी
समुद्र और चांद जब से पृथ्वी के जीवन का हिस्सा बने, तब से उसका अपनी धुरी पर घूमने का वक्त धीमा होता चला गया. इसे टाइडल फ्रिक्शन कहते हैं यानि ज्वार भाटा से होने वाला घिसाव. ज्वार भाटा से समुद्र में खिंचाव आता है और बहुत हद तक पृथ्वी के सॉलिड हिस्से भी खिंचाव महसूस करते हैं.

इन्हीं रुकावटों की वजह से अपने आप में एक चक्कर पूरा करने के दौरान पृथ्वी के कई तत्व बिगड़ते रहे हैं. इस दौरान पृथ्वी की काफी ऊर्जा चक्कर लगाने में खर्च न होकर, गर्मी में बदल जाती है. पृथ्वी और उसके महासागर लगातार ज्वार भाटा से बिगड़ते हैं जिससे पृथ्वी की चक्कर लगाने की रफ्तार कम होती जाती है.

क्या तब दिन 24 नहीं बल्कि 25 घंटे का होगा
कम ऊर्जा होने की वजह से पृथ्वी की चक्कर लगाने की रफ्तार कम हो जाती है. दिन लंबे होते जाते हैं. हर सदी में दिन 3 मिलीसेकंड से बढ़ जाता है. सुनने में कम लगता है लेकिन 1 करोड़ साल बाद हमारा एक दिन, एक घंटे से बढ़ जाएगा. यानि 24 की जगह 25 घंटे भी हो सकते हैं.

वैसे 400 करोड़ साल पहले पृथ्वी अपनी धुरी पर छह घंटे में एक चक्कर पूरा कर लेती थी. फिर 35 करोड़ साल पहले उसे 23 घंटे लगा करते थे. अब 24 घंटे लगते हैं.

ये भी पढ़ें– एयर इंडिया खोलेगी पायलट ट्रेनिंग स्कूल, हर साल 180 पायलटों को मिलेगी ट्रेनिंग, जल्द शुरू होगा परिचालन

अभी तक का सबसे लंबा दिन कौन सा था
वैसे ज्वार भाटा से उलट कुछ ऐसी बातें हैं जो पृथ्वी की रफ्तार को तेज़ कर देती हैं. जैसे ग्लेशियल बर्फ का पिघलना जो कि 12 हजार साल पहले आए आखिरी हिम युग के बाद से शुरू हुआ था और अब ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से और बढ़ता जा रहा है. बर्फ के पिघलने से धरती के चक्कर लगाने की रफ्तार थोड़ी बढ़ रही है और दिन कुछ मिलिसेकंड के अंश से छोटे हो रहे हैं. इसी तरह भूकंप, हवाओं में मौसमी बदलाव, महासागर का प्रवाह भी धरती की परिक्रमा की स्पीड को कम या ज्यादा करता है.

इन तमाम पहलूओं को एक साथ जोड़कर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि पृथ्वी की इतिहास में अभी तक का सबसे लंबा दिन 1912 में आया है. उस साल गर्मियों में सूरज की रोशनी, उत्तरी गोलार्ध पर सबसे ज्यादा देर तक रही थी और उसी साल सर्दियों में भी सबसे लंबी रात देखी गई थी. हालांकि ऐसा बताया जाता है कि ज्वार भाटा से होने वाला घिसाव इन बाकी के पहलूओं को पीछे छोड़ देगा और पृथ्वी पर दिन छोटे नहीं लंबे ही होते जाएंगे. यानि आने वाले वक्त में आपको एक नहीं, कई लंबे दिन देखने को मिलने वाले हैं.

Source :
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय

To Top