सनातन धर्म में भगवान शंकर की पूजा बहुत शुभ मानी जाती है। उनकी पूजा करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन की मुश्किलों का अंत होता है। वहीं आज हम ये जानेंगे कि भगवान शिव को तीसरा नेत्र कैसे और क्यों प्राप्त हुआ? जिसके पीछे की कथा बेहद रहस्यमयी है तो चलिए जानते हैं –
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धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान शिव की पूजा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर की पूजा करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में खुशहाली आती है। वहीं, उन्हें देवों के देव महादेव, त्रिनेत्री, महेश, भोलेनाथ, नीलकंठ और गंगाधर आदि नामों से जाना जाता है। उनके हर एक नाम के पीछे कोई न कोई रहस्य और पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।
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आज हम ये जानेंगे कि भगवान शिव को तीसरा नेत्र (Lord Shiva Third Eye) कैसे और क्यों प्राप्त हुआ? जिसके पीछे की कथा बेहद रहस्यमयी है, तो आइए जानते हैं –
भोलेनाथ कैसे हुए त्रिनेत्री?
एक समय की बात है, जब भगवान शिव और माता पार्वती एक साथ बैठकर वातार्लाप कर रहे थे। उस दौरान देवी पार्वती ने मजाक करते हुए शिव जी की आंखों को बंद कर दिया था, जिसका असर पूरे संसार में देखने को मिला। दरअसल, आदिशक्ति की इस हंसी ठिठोली के परिणाम स्वरूप पूरे जगत में अंधेरा छा गया था। साथ ही सभी जीव-जंतु भयभीत हो गए थे और सृष्टि में हाहाकार मच गया था।
संसार के विनाश को रोकने के लिए भगवान शिव के दोनों नेत्रों के बीच एक ज्योतिपुंज प्रकट हुआ, जिससे सभी जगह की रोशनी वापस आ गई और फिर से सृष्टि का संचालन शुरू हो गया। वहीं, उनके त्रिनेत्र को लेकर यह भी कहा जाता है कि यह उनके क्रोध में आने पर खुलता है।
कितना अहम है महादेव का तीसरा नेत्र?
देवों के देव महादेव की तीसरी आंख को लेकर कहा जाता है कि यह भूतकाल, वर्तमान और भविष्य काल को दर्शाता है। साथ ही इसे स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताल लोक से भी जोड़ा जाता है। इसके साथ ही उनके तीनों नेत्रों को जगत के पालनहार के रूप में देखा जाता है,
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जिनके बंद होने पर चारों तरफ विनाश की स्थिति बन जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब-जब शंकर भगवान अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं, तब-तब नए युग का सूत्रपात होता है।