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प्रचंड का पैंतरा! कुर्सी जाने से एक दिन पहले नेपाल-चीन रेल डील पर किया साइन, क्या ओली मानेंगे भारत की बात?

पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ ने संसद में विश्वास मत हारने से ठीक एक दिन पहले चीन के साथ बड़ी रेल डील पर साइन किया है. नेपाल इस रेल लाइन समझौते के पीछे भले ही कारोबारी महत्व पर जोर दे रहा है. हालांकि चीन की शातिराना मंशा से कौन वाकिफ नहीं. भारत के इतने पड़ोस में ड्रैगन की ऐसी आसान पहुंच चिंता का कारण बन सकती है…

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काठमांडू. नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ ने पीएम पद छोड़ चुके हैं. हालांकि पीएम पद छोड़ने से ठीक पहले एक नया पैंतरा चल दिया. दरअसल संसद में विश्वास मत हारने से ठीक एक दिन पहले चीन के साथ बड़ी रेल डील पर साइन किया है. यह रेल लाइन ड्रैगन की महत्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ (बीआरई प्रोजेक्ट) का हिस्सा है, जिससे चीन के लिए नेपाल पहुंचना आसान हो जाएगा.

नेपाल इस रेल लाइन डील के पीछे भले ही कारोबारी महत्व पर जोर दे रहा है. हालांकि चीन की शातिराना मंशा से कौन वाकिफ नहीं. भारत के इतने पड़ोस में ड्रैगन की ऐसी आसान पहुंच चिंता का कारण बन सकती है और यही वजह है कि नई दिल्ली इस रेल डील पर आपत्ति जताता रहा है. ऐसे में अब देखना होगा कि नेपाल में अगले पीएम बनने वाले केपी ओली भारत की बात मानेंगे या एक बार फिर बीजिंग से ही गलबहिया करते दिखेंगे.

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चीनी प्रोजेक्ट पर नेपाल की आना-कानी
दरअसल ‘मायरिपब्लिका’ न्यूज़ पोर्टल ने नेपाल सरकार से जुड़े सूत्रों के हवाले से बताया कि इस निर्णय का राजनीतिक महत्व से अधिक परिचालनात्मक महत्व है और यह चीन की अरबों डॉलर की इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में नेपाल की भागीदारी के अनुरूप है. खबर में टेलिकॉम मंत्री और सरकार की प्रवक्ता रेखा शर्मा के हवाले से कहा गया, ‘गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक में नेपाल और चीन के बीच ‘ट्रांस-हिमालय मल्टीडाइमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क’ के निर्माण में विकास सहयोग को मजबूत करने के समझौते को मंजूरी देने का फैसला किया गया.’

हालांकि, एक मंत्री ने इसके तत्काल प्रभाव को अधिक तवज्जो नहीं देते हुए कहा, ‘यह एक शुरुआती निर्णय है; परियोजना क्रियान्वयन और बीआरआई के तौर-तरीकों के डिटेस को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.’

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नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल ‘प्रचंड’ शुक्रवार को संसद में विश्वासमत हासिल नहीं कर पाए. पिछले सप्ताह उनकी सरकार से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड मार्क्सवादी लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) ने अपना समर्थन वापस ले लिया था. इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में नई सरकार के गठन का रास्ता साफ हो गया है.

देश की 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 69 वर्षीय प्रचंड को 63 वोट मिले, जबकि विश्वासमत प्रस्ताव के विरोध में 194 वोट पड़े. विश्वासमत हासिल करने के लिए कम से कम 138 वोट की जरूरत थी. प्रतिनिधि सभा के 258 सदस्यों ने मतदान में भाग लिया, जबकि एक सदस्य गैरहाजिर रहा.

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