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धर्म

Sawan 2024: पुत्र वियोग में जब शिव जी को लेना पड़ा था ज्योति रूप, ऐसी है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की महिमा

सावन का महीना बेहद कल्याणकारी माना जाता है। इस दौरान शिव भक्त पूर्ण समर्पण के साथ भगवान शंकर और देवी पार्वती की पूजा करते हैं। यह महीना शिव पूजन के लिए बहुत खास होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन माह में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का दर्शन अवश्य करना चाहिए क्योंकि भगवान शिव इसमें (Mallikarjuna Jyotirlinga Mythology Stories) स्वंय विराजमान हैं।

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धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सावन साल का पांचवां महीना है, जो शंकर भगवान को बेहद प्रिय है। यह माह भगवान शिव की पूजा-अर्चना के बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे श्रावण माह के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग इस महीने शिव-पार्वती की आराधना करते हैं, उन्हें मनचाहा वरदान मिलता है। वहीं, जो लोग शिव जी की पूर्ण कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें सावन माह में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का दर्शन जरूर करना चाहिए,

क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि देवों के देव महादेव स्वंय इस ज्योतिर्लिंग में विराजित हैं, तो आइए मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातों को जानते हैं –

कहां स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग?

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आपको बता दें, आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित है। इसे दक्षिण भारत का कैलाश भी कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शंकर और देवी पार्वती संयुक्त रूप में विराजमान हैं। यह धाम करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है, जहां भक्त दूर-दूर से दर्शन करने के लिए आते हैं।

पुत्र वियोग में जब भगवान शिव को लेना पड़ा था ज्योति रूप

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पवित्र ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, एक बार गणेश भगवान और कार्तिकेय जी के बीच विवाह हेतु झगड़ा हो रहा था कि सर्वप्रथम विवाह कौन करेगा? इस बात का समाधान निकालते हुए शिव जी ने अपने दोनों पुत्रों को एक कार्य सौंप कि जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा उसी का विवाह सबसे पहले किया जाएगा।

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इसके बाद भगवान कार्तिकेय संपूर्ण पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े और गणेश जी ने यह विचार किया की जब पूरा संसार ही हमारे माता-पिता शिव-शक्ति में विराजमान हैं, तो क्यों न इन्हीं की परिक्रमा कर ली जाए? इसके पश्चात उन्होंने अपने माता-पिता की 7 बार परिक्रमा की, जिससे वो उस कार्य के विजेता हो गए और इसी के साथ उनका विवाह सबसे पहले हो गया।

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वहीं, जब कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा कर वापस लौटे, तो उन्होंने गणेश जी को कार्य का विजेता पाया, जिससे वो नाराज होकर क्रोंच पर्वत पर चले गए। इसके बाद सभी देवी-देवताओं ने उन्हें बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माने, जिसके चलते स्वयं भगवान शंकर और माता पार्वती क्रोंच पर्वत पर गए। अपने माता-पिता के आने की खबर सुनकर कार्तिकेय जी वहां से चले गए।

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इसके बाद शिव जी ने भगवान कार्तिकेय को देखने के लिए एक ज्योति का रूप धारण किया, जिसमें उनके साथ मां पार्वती भी विराजमान हो गईं थीं। उनके इसी दिव्य स्वरूप को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। बता दें, इस पूर्ण घटना के दौरान शिव-शक्ति पुत्र वियोग में थे।

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