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भारत के इकोनॉमिक ग्रोथ की यात्रा: 1947 से लेकर 2024 तक आर्थिक विकास की सात बड़ी बातें

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India Economy Growth Journey: आजादी के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में कई बड़े बदलाव देखे गए. आजादी के शुरुआती दिनों में अर्थव्यवस्था बहुत बुरे दौर में थी, लेकिन समय के साथ सरकार ने कई तरह के बदलाव किए जिससे भारत विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ा.

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India Economy Growth Journey: दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारतीय अर्थव्यवस्था ने आजादी के बाद से कई बड़े बदलाव किए हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था का खस्ताहाल से आर्थिक महाशक्ति बनने का सफर आसान नहीं रहा है. साल दर साल, नागरिकों और सरकार के अथक प्रयासों ने आज के भारत का निर्माण किया है.

भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास अब 77 साल पुराना हो चुका है. इसलिए इसके बारे में जानकारी भी जरूरी हो जाती है.

1947 से लेकर 2024 तक भारतीय अर्थव्यवस्था की सात मुख्य बातें

अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण – 1947

देश के पहले वित्त मंत्री आरके शण्मुखम चेट्टी ने आयात प्रतिस्थापन औद्योगीकरण और सरकार द्वारा संचालित सार्वजनिक क्षेत्रों की स्थापना पर ध्यान केंद्रित किया.

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हरित क्रांति – 1965

स्वतंत्रता के बाद, हरित क्रांति ने भारत के कृषि विकास और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

बैंकों का राष्ट्रीयकरण- 1969

भारत में कोई बड़ा प्राइवेट सेक्टर नहीं था. इसलिए पब्लिक सेक्टर के जरिए ही जितना संभव हो सके उतना श्रम नियोजित करना था. सरकार ने भारी उद्योगों पर ध्यान देना शुरू कर दिया. 1969 तक, भारत में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो गया था, और सकल घरेलू उत्पाद बढ़कर 5,844.8 करोड़ रुपये हो गया था.

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प्राइवेट सेक्टर का उदय – 1980

1980 के दशक के मध्य तक, सरकार देश में रोजगार की दर को बढ़ाने के उपाय करने की कोशिश कर रही थी. भारत जल्द ही बढ़ती आबादी वाला देश बन गया, लेकिन रोजगार दरें उसके अनुरूप नहीं थीं. जो भारत के विकास के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी. निजी क्षेत्र के प्रति सरकार का रवैया आखिरकार बदलने लगा और उन्होंने कुछ प्रतिबंधों को उदार बनाना शुरू कर दिया.

आर्थिक उदारीकरण (LPG) – 1991

एलपीजी (Liberalization, Privatization, Globalization) 1990 में, चंद्रशेखर सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने. उस समय, भारत खराब आर्थिक नीतियों के कारण फिस्कल डेफिसिट से जूझ रहा था. भंडार खाली थे, और IMF और वर्ल्ड बैंक ने सहायता देना बंद कर दिया था.

सरकार ने अपने स्वर्ण भंडार को बिना किसी अन्य विकल्प के गिरवी के तौर पर इस्तेमाल किया. इसने 47 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड और 20 टन यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड को भेजा. चंद्रशेखर सरकार गिर गई, और पी.वी. नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री बनाया, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा बदल दी.

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महामंदी – 2008

LPG को जबरदस्त सफलता मिली और भारतीय अर्थव्यवस्था तेज रफ्तार से आगे बढ़ने लगी. लेकिन, 2008 में जब पूरी दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही थी तो भारत पर इसका कोई खास असर नहीं दिखाई दिया. लेकिन यह एक चेतावनी थी.

डिमोनेटाइजेशन – 2016

डिमोनेटाइजेशन ने भारत के लोगों को चौंका दिया. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा. इसने कई सेक्टर्स की विकास की गति को धीमा कर दिया. जिसकी वजह यह थी कि भारत में ज्यादातर काम कैश में होते थे.

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महामारी – 2020, 2021, और 2022

भारत के आर्थिक इतिहास में ताजा समावेश COVID-19 महामारी का भी है. जो फ्लू के रूप में शुरू हुआ था, जो कुछ हफ्तों से ज्यादा नहीं चलेगा, उसने एक साल से अधिक समय तक अपना असर दिखाया. देश में लॉकडाउन लगाना पड़ा. लेकिन, वायरस की दूसरी और तीसरी लहर ने स्थिति को और खराब कर दिया. इसने अर्थव्यवस्थाओं के धैर्य और क्षमता की ऐसी परीक्षा ली, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.

2020 में लगभग 40 करोड़ से अधिक लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा. यात्रा और पर्यटन,हास्पिटलिटी, ट्रांसपोर्टेशन, टेक्सटाइल्स आदि जैसे कई उद्योगों को झटका लगा. आर्थिक दृष्टिकोण से, महामारी ने भारत और दुनिया के विकास चार्ट को धो डाला. लेकिन वापसी हमेशा झटके से बड़ी होती है और 2022 की शुरुआत के साथ, टीकाकरण ने लोगों और व्यवसाय में सुधार के लिए एक उम्मीद भरी उमंग पैदा की.

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