Mahakal Shahi Sawari 2024 उज्जैन सहित मध्य प्रदेश का सनातनी समाज इस मुद्दे पर एकजुट है और मुख्यमंत्री मोहन यादव को पत्र लिखने को लेकर विमर्श शुरू हो गया है। इसमें न केवल इस्लामिक और सामंतवादी गंध वाले शब्द शाही सवारी को हटाने की मांग की जाएगी बल्कि संस्कृत के पांच व हिंदी के पांच नए नाम भी सुझाए जाएंगे।
जेएनएन, उज्जैन। देवाधिदेव महाकाल के उज्जैन में नगर भ्रमण को इस्लामिक और सामंतवादी शब्द के साथ ‘शाही सवारी’ कहने को लेकर दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन ‘नईदुनिया’ द्वारा मुद्दा उठाए जाने का व्यापक असर हुआ है। मध्य प्रदेश के साधु, संतों, कथावाचकों, विद्वानों, संस्कृतज्ञों तथा आम जनता ने एक स्वर में कहा है कि हमारे आराध्य की यात्रा से ‘शाही’ जैसा फारसी शब्द हटाया जाना चाहिए।
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नया शब्द प्रयोग में लाया जाएगा:धर्मेंद्र लोधी
प्रदेशभर से उठी आवाज के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी सोमवार को जारी वक्तव्य में ‘शाही सवारी’ के स्थान पर ‘राजसी सवारी’ शब्द का उपयोग किया। राज्य सरकार के संस्कृति व धर्मस्व मंत्री धर्मेंद्र लोधी ने कहा कि मुख्यमंत्री से बात कर शाही शब्द के स्थान पर नया शब्द प्रयोग में लाया जाएगा। इसके लिए धर्माचार्यों, संस्कृतिविदों, पंडे-पुजारियों से विमर्श कर नया नाम तय करेंगे।
सोमवार को उज्जैन के जनसंपर्क कार्यालय द्वारा जारी विज्ञप्ति में महाकाल के नगर भ्रमण को ‘राजसी सवारी’ लिखा गया, जबकि इसके एक दिन पूर्व जारी प्रेस विज्ञप्ति में ‘शाही सवारी’ लिखा गया था।
मुख्यमंत्री को लिखेंगे पत्र
उज्जैन सहित मध्य प्रदेश का सनातनी समाज इस मुद्दे पर एकजुट है और मुख्यमंत्री मोहन यादव को पत्र लिखने को लेकर विमर्श शुरू हो गया है। इसमें न केवल इस्लामिक और सामंतवादी गंध वाले शब्द ‘शाही सवारी’ को हटाने की मांग की जाएगी, बल्कि संस्कृत के पांच व हिंदी के पांच नए नाम भी सुझाए जाएंगे।
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मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे का कहना है कि आध्यात्मिक चेतना से जुड़े आयोजन के लिए ‘शाही सवारी’ शब्द का प्रयोग शर्मनाक है। अपनी अस्मिता की रक्षा और स्वाभिमान के प्रकटीकरण के लिए यह नाम शीघ्र बदलना चाहिए। संतों व संस्कृत के प्रकांड विद्वानों ने इसके पर्याय स्वरूप अच्छे शब्द दिए हैं।
सवारी शब्द पर भी आपत्ति: डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला
भारतीय संस्कृति के अध्येता डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला ने कहा कि मुझे ‘शाही’ ही नहीं, ‘सवारी’ शब्द पर भी आपत्ति है। शाही सवारियां मुगल बादशाहों और बेगमों की निकलती थीं। महाकाल की कैसी शाही सवारी? जानकर अचरज होगा कि 16वीं-17वीं सदी में महाकाल मंदिर की व्यवस्थाएं मुस्लिम सत्ताधारियों के शाही फरमान पर निर्भर हो गईं थीं। ‘शाही’ शब्द का प्रयोग तब से होता आ रहा है। सिंहस्थ मेले के ‘शाही स्नान’ भी उसी दौर में प्रचलित हुए। ‘शाही सवारी’ सुनकर हिंदुओं को लज्जा आती है।
इस मुद्दे पर राजीनित पर भी तेज
भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने – शाही शब्द हटाने के मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। सोमवार को सांस्कृतिक धर्मस्व मंत्री ने मुख्यमंत्री से चर्चा करने की बात कही तो मंदसौर विधायक व भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता यशपाल सिंह सिसौदिया ने मुख्यमंत्री को संबोधित एक्स पर एक पोस्ट कर शाही शब्द हटाने की मांग की।
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कांग्रेस भी मैदान में कूद पड़ी है। उसके प्रदेश प्रवक्ता अभिनव बरोलिया के नाम से दिनभर यह बयान चलता रहा कि शब्दों और नामों में परिवर्तन भाजपा की राजनीति का पुराना तरीका है। भाजपा केवल नफरत की राजनीति करती है। धर्म में राजनीति सही नहीं। नाम बदलने से कुछ हासिल होने वाला नहीं।