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डिजिटल बैंकिंग के युग में एक नई चुनौती: रिजर्व बैंक के सख्त लिक्विडिटी नियम

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रन-ऑफ फैक्टर की स्थिति से निपटने के लिए RBI ने बैंकों को डिजिटल रिटेल डिपॉजिट्स के लिए अधिक नकदी बफर रखने का निर्देश दिया.

फाइनेंशियल सेक्टर में, एक नई उथल-पुथल की लहर उठ रही है. इस साल जुलाई में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया, जिसने बैंकों के लिए लिक्विडिटी से जुड़े नियमों में कड़े बदलाव की बात की. यह कदम डिजिटल बैंकिंग के तेजी से बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखते हुए उठाया गया था, जिसमें बैंकिंग सेवाओं की डिजिटल पहुंच ने नई चुनौतियां पैदा की हैं.

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डिजिटल युग की चुनौतियां

बैंकिंग सेक्टर में तेजी से डिजिटल परिवर्तन के साथ, बैंकों को अचानक पैसे निकालने की मांग से निपटने के लिए एक नई रणनीति की आवश्यकता महसूस हुई. रिजर्व बैंक ने बैंकों के लिए डिजिटल रिटेल डिपॉजिट्स पर 5 फीसदी अतिरिक्त रन-ऑफ फैक्टर का प्रस्ताव दिया. इसका मकसद यह था कि अगर बड़ी संख्या में ग्राहक अचानक अपने पैसे निकालने की कोशिश करें, तो बैंकों के पास पर्याप्त नकदी का बफर हो.

क्या है रन-ऑफ फैक्टर?

रन-ऑफ फैक्टर वह स्थिति है जहां अचानक भारी संख्या में ग्राहक पैसे निकालने बैंक पहुंच जाते हैं, जिससे बैंकों को नकदी की समस्या का सामना करना पड़ता है. इस जोखिम को कम करने के लिए, RBI ने बैंकों को डिजिटल रिटेल डिपॉजिट्स के लिए अधिक नकदी बफर रखने का निर्देश दिया.

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आईबीए की आपत्ति

इस प्रस्ताव के बाद, इंडियन बैंक एसोसिएशन (IBA) ने अपनी चिंता व्यक्त की. उनका कहना था कि नए नियम बैंकों की नकदी स्थिति पर भारी असर डाल सकते हैं. बैंकों को अधिक नकदी बफर के रूप में रखना पड़ सकता है, जिससे उनकी लिक्विडिटी पर दबाव बढ़ सकता है. आईबीए ने इस समस्या को हल करने के लिए रन-ऑफ फैक्टर को 2 से 3 फीसदी तक कम करने की मांग की थी.

RBI का निर्णय

रॉयटर्स की एक स्पेशल रिपोर्ट में बताया गया कि रिजर्व बैंक ने बैंकों की मांग को मानने से इनकार कर दिया है. सूत्रों के अनुसार, RBI ने 5 फीसदी की सीमा को बरकरार रखने का निर्णय लिया है. हालांकि, एक सूत्र ने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक इस सीमा को चरणबद्ध तरीके से लागू करने पर सहमत हो सकता है, जिससे बैंकों को समय समय पर इस सीमा तक पहुंचने का अवसर मिलेगा.

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संभावित प्रभाव

मूडीज के अनुमान के मुताबिक, बैंकों के कुल डिपॉजिट का दो तिहाई हिस्सा रिटेल और छोटे कारोबारियों का है, जिसमें से आधे डिपॉजिट डिजिटल तरीके से ग्राहकों के लिए उपलब्ध हैं. नए नियम बैंकों की लिक्विडिटी मैनेजमेंट स्ट्रैटेजीज को प्रभावित कर सकते हैं और उन्हें अधिक सरकारी बॉन्ड्स की मांग करनी पड़ सकती है. यह कदम बैंकों को भविष्य में संभावित नकदी संकट से बचाने के लिए उठाया गया है, लेकिन इससे उनकी नकदी की स्थिति पर असर पड़ने की संभावना है.

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