भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। सरकार इसके लिए “Make in India” और प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम भी चला रही है। भारत की इकोनॉमिक ग्रोथ बढ़ जाने का असर निर्यात पर भी पड़ रहा है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष 24 में निर्यात 800 अरब डॉलर से अधिक हो सकता है। पढ़ें पूरी खबर…
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बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। भारत के आर्थव्यवस्था में लगातार तेजी देखने को मिल रही है। अर्थव्यवस्था में जारी तेजी का असर एक्सपोर्ट पर भी पड़ रहा है। बता दें कि सरकार द्वारा शुरू किये गए “Make in India” और प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम ने आर्थिक परिवर्तन की गति को बढ़ा दिया है।
सरकार की इन नीतियों से औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है और साथ ही विदेशी निवेश को भी आकर्षित कर रहा है। यह वैश्विक स्तर पर भारत को प्रमुख पहचान बनाने में मदद कर रहा है। यह भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
Moody’s ने बढ़ाया GDP दर का अनुमान
रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को 2024 के लिए 7.2 फीसदी और 2025 के लिए 6.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। निजी खपत में वृद्धि, यूपीआई (UPI) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म को तेजी जैसे बड़े पैमाने की वजह से जीडीपी ग्रोथ में तेजी आ सकती है।
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एक विकासशील अर्थव्यवस्था से वैश्विक आर्थिक ताकत बनने की भारत की राह निर्विवाद है। रणनीतिक सुधार, निर्यात विविधीकरण और राजकोषीय अनुशासन देश को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में स्थापित करने में मदद कर रहे हैं। जैसे-जैसे भारत इस रास्ते पर आगे बढ़ता रहेगा, वैश्विक व्यापार और आर्थिक परिदृश्य पर इसका प्रभाव और मजबूत होता जाएगा।
अमन वर्मा, निदेशक, धन्वंतरि कैपिटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड
निर्यात में आया उछाल
भारत के अर्थव्यवस्था में आई तेजी का असर निर्यात पर पड़ा है। उम्मीद जताई जा रही है कि वित्त वर्ष 24 में निर्यात 800 अरब डॉलर से अधिक हो सकता है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में निर्यात 200 बिलियन डॉलर से ज्यादा हो गया। निर्यात उत्पादों में विविधता लाने और वैश्विक व्यापार नेटवर्क को मजबूत करने पर सरकार का ध्यान बना हुआ है। इसके अलावा राजकोषीय घाटा और मजबूत राजस्व संग्रह सहित विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है।
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भारत को 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर के निर्यात के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में और अधिक एकीकृत होने की आवश्यकता है। भारत के डेट-टू-GDP अनुपात में धीरे-धीरे कमी आई है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष 27 तक यह 82फीसदी तक गिर सकता है।