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दिल्ली/एनसीआर

Delhi News: न्यायिक मजिस्ट्रेट ने SHO को लगाई लताड़, दर्ज होगी FIR; सबूत पीड़ित नहीं जुटाएगा, पुलिस करें जांच

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Delhi New दिल्ली पुलिस के एसएचओ को न्यायिक मजिस्ट्रेट ने फटकार लगाई। साथ ही उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे दिया। हालांकि एसएचओ ने रोहिणी कोर्ट का दरावाजा खटखटाया और राहत मिल गई। कोर्ट ने अगली सुनवाई तक मजिस्ट्रेट के आदेश पर रोक लगा दी है। मजिस्ट्रेट ने एसएचओ को अन्य नामजद लोगों को दो साल तक शिकायत दर्ज न करने पर फटकार लगाई।

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  1. समयपुर बादली के एसएचओ ने मुकदमा दर्ज करने के निर्देश के बाद राहत के लिए सत्र अदालत में की अपील।
  2. शिकायत के दो साल बाद तक केस दर्ज नहीं करने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने एसएचओ को लगाई थी फटकार।

रीतिका मिश्रा, नई दिल्ली। दो साल तक शिकायत दर्ज न करने और पीड़ित को धमकाने के मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट ने समयपुर बादली के तत्कालीन एसएचओ और अन्य नामजद लोगों को लताड़ लगाई। साथ ही एसएचओ सहित उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश दिए।

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अदालत ने अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा कि साक्ष्य जुटाने की जिम्मेदारी शिकायतकर्ता की नहीं है। शिकायतकर्ता अकेले आरोपों को साबित नहीं कर सकता, पुलिस द्वारा उचित जांच की भी आवश्यकता है।

मजिस्ट्रेक के आदेश को दी चुनौती

न्यायिक मजिस्ट्रेट के इस आदेश को समयपुर बादली के तत्कालीन एसएचओ ने रोहिणी स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुशील कुमार की अदालत में चुनौती दी है। जहां से उन्हें व अन्य नामजद आरोपियों को फिलहाल के लिए राहत मिल गई है।

न्यायाधीश सुशील कुमार ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश पर अगली सुनवाई तक के लिए रोक लगा दी है। अब आरोपियों और शिकायतकर्ता की ओर से मामले में सत्र न्यायाधीश की अदालत में 25 सितंबर को बहस होगी।

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न्यायिक मजिस्ट्रेट ने फाइनल रिपोर्ट दाखिल करने का दिया था आदेश

रोहिणी स्थित न्यायिक मजिस्ट्रेट गरिमा जिंदल की अदालत ने मामले में समयपुर बादली के एसएचओ को तत्कालीन एसएचओ और अन्य नामजद लोगों के खिलाफ प्राथमिकी करने और जल्द जांच पूरी कर मामले में फाइनल रिपोर्ट या आरोप पत्र दाखिल करने के निर्देश दिए थे। अदालत ने कहा था कि प्रथमदृष्ट्या मामला गंभीर है।

ऐसे में पुलिस को शिकायत के आधार पर सुसंगत धाराएं लगाकर मुकदमा दर्ज करना चाहिए और बिना प्रभावित हुए जांच कर अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपनी चाहिए।

ये था मामला

शिकायतकर्ता अनिल जैन के अधिवक्ता संजय शर्मा ने बताया कि पूरा मामला उनके मुवक्किल का उनके पारिवारिक सदस्यों से संपत्ति को लेकर विवाद था। इस विवाद में वर्ष 2012 में परिवार में मौखिक तौर पर समझौता हुआ था, लेकिन वर्ष 2018 के बाद विवाद बढ़ गया। इसको लेकर उन्होंने समयपुर बादली थाने में वर्ष 2022 में शिकायत दी थी।

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कई माह तक भटकने के बाद भी प्राथमिकी नहीं हुई और शिकायत के अनुसार तत्कालीन एसएचओ ने पीड़ितों को फर्जी केस में फंसाने और थाने से निकल जाने की धमकी दी थी। हालांकि, अदालत में पुलिस द्वारा पेश रिपोर्ट के अनुसार एसएचओ द्वारा सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं होने की बात कही गई थी।

चार से छह हफ्ते में शिकायत निस्तारण की है गाइडलाइन

अधिवक्ता संजय शर्मा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारिवारिक विवाद और धोखाधड़ी जैसे मामलों में शिकायत को चार से छह सप्ताह में स्पष्टीकरण के साथ निस्तारित करने की गाइडलाइन दी है। इसके अतिरिक्त संज्ञेय अपराधों में तुरंत प्राथमिकी करने के निर्देश हैं। इसके बावजूद पुलिस ने दो साल शिकायत को टाला और पीड़ित को धमकी भी दी।

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