हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने रिश्वतखोरी के एक मामले में 16 साल बाद पटवारी को दोषी ठहराते हुए 2 साल की सजा सुनाई है। पटवारी ने जमीन से जुड़े कुछ कागज बनाने की एवज में 1000 रुपये की रिश्वत ली थी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए पटवारी को दोषी ठहराया है। हाईकोर्ट ने कहा ऐसे अपराधों को हल्के में नहीं देखा जा सकता।
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विधि संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने रिश्वतखोरी के जुर्म में पटवारी को वारदात के 16 साल बाद दोषी ठहराते हुए 2 वर्ष के साधारण कारावास की सजा सुनाई। कोर्ट ने पटवारी को जमीन से जुड़े कुछ कागज बनाने की एवज में 1000 रुपये की रिश्वत लेने का दोषी ठहराते हुए निचली अदालत के फैसले को पलट दिया था।
न्यायाधीश राकेश कैंथला ने यह सजा सुनाते हुए कहा कि दोषी पटवारी के पद पर तैनात था। उसने उन दस्तावेजों को तैयार करने के लिए रिश्वत की मांग की थी जिन्हें वह अपने आधिकारिक कर्तव्य के हिस्से के रूप में तैयार करने के लिए बाध्य था।
ऐसे अपराधों को हल्के में नहीं देखा जा सकता। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए बनाया गया है, जो लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है और इससे हल्के ढंग से नहीं निपटा जा सकता है। ऐसे मामलों में कोई भी अनुचित सहानुभूति सार्वजनिक अधिकारियों को बेधड़क रिश्वत मांगने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
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हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश हमीरपुर के 17 अगस्त 2010 के फैसले को कानून के विपरीत पाते हुए रद्द कर दिया था। अभियोजन पक्ष के द्वारा न्यायालय के समक्ष रख तथ्यों के अनुसार शिकायत कर्ता होशियार सिंह आईटीबीपी में कार्यरत था। वह 2 अक्टूबर 2008 को अपनी दो महीनों की वार्षिक छुट्टी पर अपने हमीरपुर जिला के गांव दलचेहडा आया था।
उस समय उसके गांव में बंदोबस्त का काम चल रहा था। इस दौरान उसकी भूमि की तकसीम नहीं की गई। उसने अपने वकील से इस बाबत बात की तो वकील ने कुछ जरूरी कागजात एकत्रित करने की सलाह दी ताकि तकसीम का मामला दायर किया जा सके। होशियार सिंह जमाबंदी, ततीमा जैसे कागजात बनवाने के लिए दलसेहड़ा के तत्कालीन पटवारी सीता राम से 22 अक्टूबर को मिला।
पटवारी ने उसे कहा कि कागज तैयार करने का बहुत बड़ा काम है जिसके लिए उसकी पूरी रात भी लग सकती है। वह अगले दिन दोपहर 12 से 1 बजे तक कागजात तैयार करके रखेगा। पटवारी ने कागज तैयार करने की एवज में 1000 रुपये रिश्वत की मांग भी की। शिकायतकर्ता ने इसे बड़ी रकम बताते हुए इंकार किया तो पटवारी ने कहा कि 1000 रुपये दिए बगैर कागज तैयार करने का काम पूरा नहीं होगा।
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शिकायत कर्ता रिश्वत नहीं देना चाहता था इसलिए उसने इसकी शिकायत विजिलेंस के पास की। जिसके बाद पटवारी को अगले दिन रंगे हाथों 1000 रुपये की रिश्वत के साथ विजिलेंस टीम ने पकड़ लिया। मामला विशेष न्यायाधीश हमीरपुर के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
अभियोजन पक्ष ने कुल 10 गवाह पेश किए। विशेष न्यायाधीश हमीरपुर ने शिकायतकर्ता को आरोपी का सहयोगी बताते हुए उसे बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश हमीरपुर के फैसले को त्रुटिपूर्ण पाते हुए उस फैसले को पलटने के बाद दोषी पटवारी को उपरोक्त सजा सुनाई।