मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए शारदीय नवरात्र को शुभ माना जाता है। 07 अक्टूबर को शारदीय नवरात्र नवरात्र (Shardiya Navratri 2024 Day 5) का पांचवां दिन है। इस दिन स्कंदमाता की पूजा होती है। धार्मिक मान्यता है कि स्कंदमाता की पूजा करने से जातक को कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और मां दुर्गा की कृपा सदैव बनी रहती है। साथ ही संतान की प्राप्ति होती है।
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- शारदीय नवरात्र का पांचवा दिन स्कंदमाता को समर्पित है।
- स्कंदमाता की पूजा से सभी प्रयासों में सफलता मिलती है।
- स्कंदमाता की कथा के पाठ से संतान-सुख की प्राप्ति होती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शारदीय नवरात्र के अलग-अलग दिन मां दुर्गा के 9 रूपों को समर्पित है। शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनकी दाहिनी ओर की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। बाईं ओर की ऊपरी भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा में कमल हैं। मान्यता है कि स्कंदमाता की पूजा के दौरान व्रत कथा का न करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है। आइए पढ़ते हैं स्कंदमाता की व्रत ( Skandamata Vrat Katha) कथा। इससे संतान सुख के योग बनते हैं।
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स्कंदमाता की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर नाम का राक्षस था। उसने तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया था। उसने ब्रह्मा जी से अपने आप को अमर करने के लिए वरदान मांगा। इसके बाद ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि जिसका जन्म हुआ है उसे मरना ही होगा। इस बात से तारकासुर निराश हो गया और ब्रह्मा जी से कहा कि प्रभु ऐसा कर दें कि महादेव के पुत्र के हाथों ही मेरी मृत्यु हो। उन्होंने ऐसा इस वजह से किया, क्योंकि वो सोचता था कि कभी-भी भगवान शिव का विवाह नहीं होगा, तो उनका पुत्र कैसे होगा। इसलिए जीवन में कभी उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी।
इसके बाद उसने लोगों पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। उसके अत्याचार से देवी-देवता परेशान होकर शिवजी के पास पहुंचे। उन्होंने शिवजी से प्रार्थना की कि वो उन्हें तारकासुर से मुक्ति दिलाएं। ऐसे में भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें। बड़े होने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। भगवान कार्तिकेय की माता स्कंदमाता हैं।
इस मंत्र का करें जप
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम्।।
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