धार्मिक मत है कि करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है। इस दिन पूजा थाली में विशेष सामग्री को शामिल किया जाता है। इनमें मिट्टी का करवा भी शामिल है। ऐसे में आइए जानते हैं कि मिट्टी के करवा (Karwa Chauth Clay Pots Importance) का धार्मिक महत्व के बारे में।
ये भी पढ़ें:- दिवाली से पहले SBI का छोटे बिजनेस को तोहफा, Instant Loan की बढ़ेगी सीमा, जानिए कितनी
- करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं करती हैं।
- इस व्रत को निर्जला किया जाता है।
- पर्व के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही शुभ मानी जाती है। इस पर्व का सुहागिन महिलाएं बेसब्री से इंतजार करती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल करवा चौथ का पर्व 20 अक्टूबर (Kab Hai Karwa Chauth 2024) को मनाया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ (Karwa Chauth 2024) के दिन पूजा-अर्चना और व्रत करने से सुहागिन महिलाओं का वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है। साथ ही पति-पत्नी के रिश्ते में मधुरता आती है। इस खास तिथि पर महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत करती हैं और रात को चंद्र दर्शन कर व्रत का पारण करती हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए मिट्टी के करवे का इस्तेमाल किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए मिट्टी के करवे का इस्तेमाल क्यों होता है? अगर नहीं पता है, तो आइए जानते हैं इसकी वजह के बारे में।
ये भी पढ़ें:- अब इस Bank से Loan लेना हुआ महंगा, बढ़ गए Interest Rates, जानिए क्या हो गईं नई ब्याज दरें
कैसे होता है इसका प्रयोग
करवा चौथ के दिन व्रत कथा का पाठ किया जाता है। कुछ लोग इसकी कथा दिन में सुनते हैं। वहीं, कुछ लोग रात को पूजा के दौरान कथा का पाठ करते हैं। पूजा (Karwa Chauth Puja Vidhi) के दौरान मिट्टी के करवे (Mitti Ka Karwa) में जल और अक्षत डालकर रखा जाता है। करवे पर कलावा बांधा जाता है। रात्रि में चंद्रमा का दर्शन कर मिट्टी के करवे से अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद मिट्टी के करवे से पति के द्वारा पत्नी को जल पिलाया जाता है।
ये भी पढ़ें:- बस सिर्फ 7 रुपये जमा करें रोजाना, जिंदगीभर पाएं 60,000 रुपये पेंशन, सरकार देती है गारंटी
मिट्टी के करवे का धार्मिक महत्व
सनातन धर्म करवा पंच तत्वों का प्रतीक माना गया है। जिनसे व्यक्ति का शरीर भी बना है। जैसे- जल, मिट्टी, अग्नि, आकाश और वायु। मान्यता है कि यह सभी तत्व दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए प्रार्थना करते हैं। यह करवा मटके की तरह होता है। करवा चौथ के शुभ अवसर पर करवे को मां देवी का प्रतीक मानकर सुहागिन महिलाएं पूजा-अर्चना करती हैं।
कैसे हुई इस परंपरा की शुरुआत
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब माता सीता और माता द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत किया था, तब उन्होंने भी मिट्टी के करवे का ही इस्तेमाल किया था।
पूजा थाली में इन चीजों को करें शामिल
पानी का लोटा, मिट्टी का करवा, फूल, कच्चा दूध, दही, देसी घी, चंदन, कुमकुम, गंगाजल, दीपक, रूई, रोली, हल्दी, चावल, मिठाई, बूरा, लकड़ी का आसन, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और छलनी आदि।
ये भी पढ़ें:- Pradhan Mantri Awas Yojana: इन तीन नियमों का रखें ध्यान, नहीं तो सब्सिडी के पैसे वसूल लेगी सरकार
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।