ओडिशा के तटीय जिलों में चक्रवात तूफान दाना का कहर देखने को मिल रहा है। इसके चलते भारी बारिश हो रही है और हवाएं भी काफी तेज चल रहीं हैं। वह भी ऐसे समय जब धान की फसल लगभग पककर तैयार है। इसके चलते अब किसानों को खड़ी धान की फसल चौपट होने का डर सताने लगा है। इस बीच, कृषि वैज्ञानिकों ने धान की फसल पर होने वाले नुकसान को कम करने का उपाय बताया है। आइए समझते हैं…
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इन जिलों में सबसे ज्यादा असर
तूफान दाना का सबसे असर ओडिशा के गंजम, पुरी, जगतसिंहपुर, जाजपुर, केंद्रपाड़ा, भद्रक, बालासोर और मयूरभंज में है। यहां भारी बारिश होने की संभावना है और इन क्षेत्रों में खड़ी धान की फसलें जलमग्न हो सकती हैं।
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वैज्ञानिकों ने क्या कहा?
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (एनआरआरआई) ने एक सलाह जारी की है जिसमें वैज्ञानिकों ने धान किसानों से फसल के नुकसान को कम करने के लिए एहतियाती उपाय करने का आग्रह किया है। एनआरआरआई के निदेशक डॉ. ए के नायक ने कहा कि किसानों को स्थिति से घबराना नहीं चाहिए और सलाह का ईमानदारी से पालन करना चाहिए।
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- धान की फसल के पकने के बाद भी जल निकासी के लिए नालियां खुली रखें, ताकि जलभराव के कारण होने वाले नुकसान को कम से कम किया जा सके।
- काटे गए धान को भी सुरक्षित स्थानों पर ठीक से रखें और तिरपाल से ढक दें।
- बारिश रुकने के बाद धान के दानों को तुरंत एक या दो दिन धूप में सुखाएं, ताकि नमी कम हो जाए और फिर अनाज को अच्छी गुणवत्ता वाले बैग में भरकर लंबे समय तक उनकी गुणवत्ता, बनावट, रंग, सुगंध और स्वाद बनाए रखा जा सके।
- भंडारित अनाज में कीट लगने की स्थिति में, बेहतर परिणाम के लिए कम से कम सात से दस दिनों तक बैग को बिना किसी अंतराल या रिसाव के मोटे तिरपाल से ढककर एल्युमिनियम फॉस्फाइड की गोलियों का उपयोग करके वायुरोधी कंटेनर में रखकर धूम्रीकरण करें।