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इतिहास बन जाएंगे ट्रेनों के नीले रंग के डिब्‍बे, रेलवे ने क्‍यों लिए बड़ा फैसला? जानें वजह

Indian Railways

मौजूदा समय भारतीय रेलवे में दो तरह के कोच चल रहे हैं. आईसीएफ (इंटीग्रल कोच फैक्ट्री) नीले रंग और एलएचबी (लिंक हॉफमेन बुश) लाल रंग के होते हैं. मार्च 2025 तक 100 ट्रेनों में कोच बदलने का फैसला लिया गया है.

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नई दिल्‍ली. अगर आप ट्रेनों में सफर करते होंगे तो जरूर इस पर गौर किया होगा कि नीले और लाल दो रंग के ( वंदेभारत को छोड़कर) कोच होते हैं. आम लोगों को यही लगता होगा कि केवल रंग ही बदला है, लेकिन ऐसा नहीं है. रंगों के साथ दोनों कोचों में तकनीक भी अलग-अलग है. नीले कोच पुराने हैं और लाल कोच नई तकनीक से बने हैं. भारतीय रेलवे नीले रंग के कोचों को हटाकर लाल रंग ( तकनीक) में बदलने जा रही है. आइए जानें दोनों में क्‍या अंतर है और कब तक सभी कोच बदले जाएंगे?

मौजूदा समय भारतीय रेलवे में दो तरह के कोच चल रहे हैं. आईसीएफ (इंटीग्रल कोच फैक्ट्री) और एलएचबी (लिंक हॉफमेन बुश). आईसीएफ पुरानी तकनीक है जबकि एलएचबी नई तकनीक है. आईसीएफ के कोच नीले और एलएचबी के लाल रंग के ( राजधानी) जैसे होते हैं. भारतीय रेलवे धीरे-धीरे सभी पुरानी तकनीक वाले को हटाकर नई तकनीक वाले एलएचबी कोचों में बदलने का प्‍लान बना लिया है.

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भारतीय रेलवे के अनुसार मार्च तक 2000 के करीब एलएचबी कोचों का निर्माण किया जा रहा है. ये स्‍लीपर और जनरल श्रेणी के होंगे. इनमें से प्रत्‍येक मेल/एक्‍सप्रेस में चार -चार कोच लगाए जाएंगे, इस तरह 1300 कोच इन ट्रेनों में लग जाएंगे. इसके लिए डेड लाइन दिसंबर 2023 तय की गयी है. बचे हुए 700 एलएचबी कोचों को मेल एक्‍सप्रेस के आईसीएफ से रिप्‍लेस किया जाएगा, इसके लिए डेडलाइन मार्च 2024 तय की गयी है.

सभी आईसीएफ ट्रेनों को बदलने की भी डेडलाइन तय

मौजूदा समय कुल 740 रेक ( ट्रेन) आईसीएफ के दौड़ रहे हैं. रेलवे ने इस सभी कोचों को बदलने के लिए डेडलाइन तय कर दी है. वित्‍तीय वर्ष 2026-27 तक इनके बदलने का लक्ष्‍य रखा गया है.

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ये होता है नीले और लाल रंग के कोच में अंतर

नीले रंग के कोच आईसीएफ हैं. इंटीग्रल कोच फैक्ट्री , चेन्‍नई में 1952 में शुरू हुई थी. आईसीएफ कोच स्‍टील के बने होते हैं, इस वजह से भारी होते हैं. वहीं इसमें एयर ब्रेक का प्रयोग होता है. इसके अलावा इसके रखरखाव में भी ज़्यादा खर्चा होता है. इसमें इसमें यात्रियों की क्षमता कम होती है. स्पीलर में कुल सीट 72 और थर्ड एसी में 64 होती है. ये कोच एलएचबी कोच से 1.7 मीटर छोटे होते होते हैं. दुर्घटना के समय डिब्बे एक के ऊपर एक चढ़ जाते हैं. आईसीएफ कोचों को 18 महीनों में ओवरहाल की भी जरूरत होती है.

24 साल पुरानी है एलएचबी कोच की तकनीक

लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच को बनाने की फैक्ट्री कपूरथला, पंजाब में स्थित है. ये तकनीक 2000 में जर्मनी से भारत लाई गई है. ये स्टेनलेस स्टील से बनाए जाते हैं, इस वजह से हल्के होते हैं. इसमें डिस्क ब्रेक का इस्‍तेमाल होता है. इनकी अधिकतम स्‍पीड 200 किमी. प्र‍ति घंटे होती है. इसके रखरखाव में कम खर्चा होता है. इसमें बैठने की क्षमता ज़्यादा होती है स्‍लीपर में 80, थर्ड एसी में 72, क्योंकि ये कोच आईसीएफ कोच से 1.7 मीटर ज़्यादा लंबे होते हैं. दुर्घटना के बाद इसके डिब्बे एक के ऊपर एक नहीं चढ़ते हैं . एलएचबी कोच को 24 महीनों में एक बार ओवरहाल की आवश्यकता होती है.

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