अमेरिकी डॉलर में तेजी से मजबूती आई है, जिसका मुख्य कारण आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर बढ़ती अनिश्चितताएं और फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में कटौती की कम संभावना है। इस माहौल में कई मुद्राओं को भारी नुकसान हुआ। न्यूजीलैंड डॉलर, ब्राजीलियन रियल, जापानी येन, ऑस्ट्रेलियाई डॉलर और थाई भाट सभी में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई। हालांकि, इन सबकी तुलना में रुपये में गिरावट का दायरा सीमित रहा। आइए जानते हैं बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट में इस बारे में क्या कहा गया है।
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बैंक ऑफ बड़ौदा की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अक्तूबर में भारतीय रुपये में मामूली गिरावट आई है, वहीं अन्य प्रमुख मुद्राओं में भारी गिरावट देखी गई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि हालांकि रुपया 84.09 प्रति डॉलर के अपने सर्वकालिक निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है, लेकिन उसके बावजूद यह अमेरिकी डॉलर में महीने भर में 3.2 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि के मुकाबले मामूली गिरावट है।
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अक्तूबर के दौरान रुपये का कारोबार 83.82 और 84.09 प्रति डॉलर के बीच रहा। इसमें कहा गया है कि “अक्तूबर 2024 में रुपये में 0.3 प्रतिशत की गिरावट आई (सितंबर 2024 में 0.1 प्रतिशत की वृद्धि) और यह 84.09/ USD के अपने सर्वकालिक निम्नतम स्तर पर भी पहुंच गया। हालांकि, अन्य प्रमुख मुद्राओं में भारी गिरावट की तुलना में यह गिरावट मामूली ही थी।”
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अमेरिकी डॉलर में तेजी से मजबूती आई है, जिसका मुख्य कारण आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर बढ़ती अनिश्चितताएं और फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में कटौती की कम संभावना है। इस माहौल में कई मुद्राओं को भारी नुकसान हुआ। न्यूजीलैंड डॉलर, ब्राजीलियन रियल, जापानी येन, ऑस्ट्रेलियाई डॉलर और थाई भाट सभी में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई।
उदाहरण के लिए, जापान का येन देश के भीतर राजनीतिक अनिश्चितता से प्रभावित होकर तीन महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया। रिपोर्ट के अनुसार, “जिन मुद्राओं को सबसे अधिक नुकसान हुआ, वे हैं- न्यूजीलैंड डॉलर , ब्राजीलियन रियल, जापानी येन, ऑस्ट्रेलियाई डॉलर और थाई बहत। USD को मजबूत करने के अलावा, JPY ने घरेलू राजनीतिक अनिश्चितता के कारण अपने 3 महीने के निचले स्तर को छुआ।”
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रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि, शेयर सूचकांकों में तेज गिरावट के कारण भारत के बाजारों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) से इक्विटी बहिर्वाह देखा गया। अमेरिकी और भारतीय 10-वर्षीय बॉन्ड के बीच ब्याज दर के अंतर में कमी के कारण डेट सेगमेंट से भी बिकवाली हुई, जिसने विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय ऋण को कम आकर्षक बना दिया।
रिपोर्ट के अनुसार आगे रुपये पर दबाव जारी रहने की उम्मीद है, जिसके आने वाले पखवाड़े में इसके 83.9 से 84.2 प्रति डॉलर के दायरे में रहने का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया है, “हमें उम्मीद है कि रुपये पर दबाव बना रहेगा, लेकिन यह एक सीमित दायरे में रहेगा। भू-राजनीतिक घटनाक्रम (अमेरिकी चुनाव , मध्य पूर्व में तनाव) और घरेलू मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र पर बारीकी से नजर रखी जाएगी।”
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रिपोर्ट में कहा गया है कि भू-राजनीतिक कारक, विशेषकर अमेरिकी चुनावों से जुड़े घटनाक्रम और मध्य पूर्व में चल रहे तनाव, साथ ही घरेलू मुद्रास्फीति के रुझान निकट भविष्य में रुपये की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण साबित होंगे।