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संभलकर करें क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल, डिफॉल्ट हुए तो 50% तक देना होगा ब्याज, सुप्रीम कोर्ट ने भी लगा दी है मुहर

Credit Card

नई दिल्ली: क्रेडिट कार्ड एक ऐसा शेर है जिसे काबू में रखा जाए तो ठीक है। अगर यह बेकाबू हुआ तो बड़ी मुसीबत बन जाता है। क्रेडिट कार्ड का बिल समय पर न चुकाने पर बैंक बहुत ज्यादा ब्याज लगाते हैं। यह मामला राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत (NCDRC) पहुंचा था जहां ब्याज दर को 30 फीसदी तक सीमित कर दिया था। लेकिन अब नेशनल कंज्यूमर फोरम के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।एनसीडीआरसी ने अपने एक फैसले में कहा था कि क्रेडिट कार्ड पर उपभोक्ताओं से 36 से 50 फीसदी सालाना ब्याज लेना बहुत ज्यादा है। एनसीडीआरसी ने इसे गलत कारोबारी प्रथा बताया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के इस फैसले पर रोक लगा दी है। इससे बैंकों को राहत मिली है। बैंक अब क्रेडिट कार्ड पर 30 फीसदी से ज्यादा यानी 50 फीसदी तक ब्याज ले सकेंगे।

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क्या कहा था एनसीडीआरसी ने?

उपभोक्ता अदालत ने क्रेडिट कार्ड पर ब्याज दर को अधिकतम 30% पर सीमित कर दिया था। उपभोक्ता आयोग ने माना था कि बैंकों और उपभोक्ताओं के बीच समझौता असमान स्थिति में होता है। क्रेडिट कार्ड के लिए उपभोक्ताओं के पास कोई मोलभाव की शक्ति नहीं होती, सिवाय इसके कि वे क्रेडिट कार्ड की सुविधा को अस्वीकार कर दें।आयोग ने यह भी कहा था कि अगर उपभोक्ता को अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल होने पर अत्यधिक जुर्माना देना पड़े तो यह अनुचित व्यापार प्रथा (Unfair Trade Practice) मानी जाएगी। इसके लिए उपभोक्ता अदालत ने क्रेडिट कार्ड की ब्याज दरों की तुलना विभिन्न देशों से की थी।

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विदेशों का दिया था हवाला

अपने फैसले में एनसीडीआरसी ने कहा था कि अमेरिका और ब्रिटेन में ब्याज दर 9.99% से 17.99% फीसदी के बीच है। ऑस्ट्रेलिया में ब्याज दर 18% से 24% फीसदी है। फिलीपींस, इंडोनेशिया और मेक्सिको (उभरती अर्थव्यवस्थाएं) में ब्याज दर 36% से 50% फीसदी है। भारत जैसे बड़े और विकासशील देशों में उच्चतम दर अपनाने का कोई औचित्य नहीं है।

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दीवानी अपीलों को दी मंजूरी

आयोग ने क्रेडिट कार्ड ब्याज दरों पर 30% की ऊपरी सीमा तय करते हुए कहा था कि 30% से अधिक ब्याज दर को अत्यधिक माना जाएगा। यह अनुचित व्यापार प्रथा के तहत आएगा। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने 2008 के आदेश को रद्द कर दिया और बैंकों द्वारा दायर सभी दीवानी अपीलों को मंजूरी दे दी।

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