हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकारों को अपने खर्चों, खासकर सब्सिडी और कर्ज पर गंभीरता से विचार करने की सलाह दी है. रिपोर्ट में कहा गया कि अगर राज्य सरकारें अपनी सब्सिडी योजनाओं और कर्ज को नियंत्रित नहीं करती हैं, तो यह राज्य की वित्तीय स्थिति को संकट में डाल सकता है.
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ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आरबीआई की ये सिफारिशें वाकई में बदलाव ला पाएंगी, या फिर यह सिर्फ एक और सुझाव साबित होगा? आइए इसे विस्तार से समझते हैं
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राज्यों के बढ़ते सब्सिडी खर्च
आरबीआई की रिपोर्ट में सबसे बड़ी चिंता का विषय राज्यों की तरफ दी जाने वाली सब्सिडी रही है. इसमें कृषि ऋण माफी, मुफ्त बिजली, गैस सिलेंडर, परिवहन सेवाओं और किसानों, युवाओं और महिलाओं को दिए जाने वाले नकद हस्तांतरण जैसी योजनाओं पर बढ़ता हुआ खर्च शामिल है. इन सब्सिडी योजनाओं के तहत राज्यों को भारी वित्तीय बोझ उठाना पड़ता है.
दिल्ली जैसे राज्यों में, जहां चुनावी मौसम के दौरान अलग अलग तरह की योजनाओं का ऐलान किया जाता है, इन योजनाओं का खर्च सरकार की वित्तीय स्थिति पर असर डाल सकती है. हाल ही में दिल्ली सरकार ने ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ शुरू की, जिसके तहत हर महिला को 1,000 रुपये की मासिक सहायता देने का वादा किया गया है, जो आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक पैतरेबाजी का हिस्सा है.
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हालांकि, इन योजनाओं का असर सीमित होता है और यह राज्य की अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल सकता है. आरबीआई की रिपोर्ट में इस पर चिंता जताई गई है कि अगर राज्य सरकारें अपनी सब्सिडी योजनाओं को काबू नहीं करतीं, तो यह ज्यादा उत्पादक खर्चों को प्रभावित कर सकता है.
राज्यों पर बढ़ रहा कर्ज का बोझ
भारत में राज्यों के कर्ज का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. साल 2024 के मार्च महीने में राज्यों का कुल कर्ज सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 28.5% तक पहुंच गया था, जो ‘फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट कमिटी’ (FRBM) द्वारा सुझाए गए 20% के स्तर से कहीं ज्यादा है. इस कर्ज का एक बड़ा हिस्सा राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कर्ज से आता है, जो विकास कार्यों और योजनाओं के लिए लिया जाता है. हालांकि, लगातार बढ़ते कर्ज के कारण राज्यों को बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेने की लागत बढ़ जाती है, जो अंत में राज्य के बजट पर असर डालता है.
आरबीआई ने इस स्थिति से निपटने के लिए एक स्पष्ट और समयबद्ध कर्ज संकुचन योजना बनाने की सलाह दी है. इस योजना के तहत राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका कर्ज धीरे-धीरे कम हो और वे इसके भुगतान में सक्षम हों. अगर राज्य सरकारें इस दिशा में ठोस कदम उठाती हैं, तो यह वित्तीय स्थिति में सुधार ला सकता है.
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आरबीआई की सिफारिशें क्या बदलाव ला सकेंगी?
आरबीआई की सिफारिशें राज्य सरकारों के लिए वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन सिफारिशों का उद्देश्य राज्य सरकारों को अधिक जिम्मेदार और पारदर्शी बनाने का है. आइए, जानते हैं कि आरबीआई की सिफारिशें राज्य सरकारों में कितना बदलाव ला सकती हैं:
1. सब्सिडी का पुनर्मूल्यांकन
आरबीआई ने राज्य सरकारों को अपनी सब्सिडी योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन करने का सुझाव दिया है. इसका मतलब यह है कि राज्य सरकारों को यह विचार करना होगा कि वो जो सब्सिडी दे रहे हैं, क्या वे वास्तव में जरूरतमंद लोगों तक पहुंच रही हैं या नहीं. साथ ही, क्या ये सब्सिडी राज्य की अर्थव्यवस्था पर अनावश्यक बोझ तो नहीं डाल रही हैं?
उदाहरण के तौर पर, किसानों के लिए बिजली की मुफ्त आपूर्ति, सस्ती परिवहन सेवाएं और गैस सिलेंडर पर सब्सिडी जैसे कदम सरकारों के लिए भारी वित्तीय दबाव का कारण बन सकते हैं. इन सब्सिडी योजनाओं को समायोजित और अनुकूलित करके राज्य सरकारें अपने बजट को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकती हैं. हालांकि, यह प्रक्रिया आसान नहीं होगी क्योंकि इन योजनाओं का सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ता है, और इसे लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी.
2. केंद्र-प्रायोजित योजनाओं का समायोजन
आरबीआई ने यह भी सुझाव दिया है कि केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं (Centrally Sponsored Schemes) में तार्किकता लाकर ज्यादा खर्च करने के लिए बजट में जगह बनाई जा सकती है. इन योजनाओं में अक्सर राज्य सरकारों को केंद्र के निर्देशों का पालन करना पड़ता है, जिसके कारण राज्यों की स्वायत्तता सीमित हो जाती है. अगर केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर इन योजनाओं में सुधार करती हैं, तो राज्य को अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार खर्च करने का अधिक अधिकार मिल सकता है.
3. नई पीढ़ी के वित्तीय नियमों की जरूरत
आरबीआई ने यह भी सुझाव दिया है कि राज्यों को वित्तीय नियमों पर फिर से विचार करना चाहिए. ‘नेक्स्ट जनरेशन फिस्कल रूल्स’ के तहत छोटे कार्यकाल के लिए लचीलापन और लंबी अवधि के लिए वित्तीय स्थिरता को एक साथ लाना होगा. इससे राज्यों को आर्थिक संकट से निपटने के लिए अधिक लचीलापन मिलेगा। ऐसे नियमों को लागू करने से राज्य सरकारों को अपने खर्च और कर्ज को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है, और अगर कोई आपातकालीन स्थिति उत्पन्न होती है तो उन्हें राहत मिल सकेगी.
4. टेक्नोलॉजी का उपयोग
आरबीआई ने यह भी सुझाव दिया कि राज्य सरकारें डेटा एनालिटिक्स, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करें. इन तकनीकों के माध्यम से राज्य अपने कर संग्रहण प्रणाली को अधिक सटीक और प्रभावी बना सकते हैं. इससे राज्य सरकारें टैक्स रेवेन्यू बढ़ा सकती हैं और आर्थिक अनुशासन में सुधार कर सकती हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया समय ले सकती है, क्योंकि इसे लागू करने के लिए बुनियादी ढांचे की जरूरत होगी.
5. वित्तीय पारदर्शिता और डिस्क्लोजर
आरबीआई ने वित्तीय पारदर्शिता पर जोर दिया है. इसका मतलब यह है कि राज्य सरकारों को अपने खर्च और कर्ज की जानकारी समय-समय पर सार्वजनिक करनी चाहिए. अगर राज्य सरकारें अपनी वित्तीय स्थिति को पारदर्शी बनाती हैं, तो यह उनके लिए जिम्मेदारी निभाने में मदद करेगा और नागरिकों को यह समझने का अवसर मिलेगा कि उनके कर का पैसा कहां और कैसे खर्च हो रहा है.
क्या बदलाव आएगा?
आरबीआई की सिफारिशों का प्रभाव तभी देखने को मिलेगा जब राज्य सरकारें इन पर गंभीरता से विचार करें और इन्हें लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएं. वर्तमान में, कई राज्य सरकारें चुनावी लाभ के लिए जनकल्याण योजनाओं पर भारी खर्च करती हैं. ऐसे में, इन सिफारिशों को लागू करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है.
हालांकि, अगर राज्य सरकारें अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए सिफारिशों को अपनाती हैं, तो इससे दीर्घकालिक फायदे मिल सकते हैं. यह ना केवल राज्य के बजट को संतुलित करने में मदद करेगा, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए विकास के अधिक अवसर उत्पन्न करेगा.