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RBI ने उठाया बड़ा कदम, 1 अप्रैल से बदल जाएगा पैसा भेजने से जुड़ा ये नियम

RBI

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने ऑनलाइन फंड ट्रांसफर को सुरक्षित और सटीक बनाने के उद्देश्य से एक बड़ा कदम उठाया है. आरबीआई ने बताया कि 1 अप्रैल 2025 तक सभी बैंक, जो नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (एनईएफटी) और रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) सिस्टम का उपयोग करते हैं, ग्राहकों को लाभार्थी के खाते के नाम को सत्यापित करने की सुविधा प्रदान करेंगे. यह कदम फंड ट्रांसफर में गलतियों को रोकने और धोखाधड़ी पर लगाम लगाने के लिए उठाया गया है.

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क्या होगा फायदा?

अभी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) और इमीडिएट पेमेंट्स सर्विस (आईएमपीएस) जैसी पेमेंट सिस्टम में पहले से ही लाभार्थी के नाम को वेरिफाई करने की सुविधा उपलब्ध है. अब यही सुविधा एनईएफटी और आरटीजीएस के लिए लागू की जाएगी. यह प्रक्रिया बैंक के कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (CBS) के माध्यम से की जाएगी, जिससे गलत खातों में धनराशि जाने का जोखिम कम होगा और धोखाधड़ी के मामलों पर लगाम लगेगा.

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कैसे काम करेगी यह सुविधा?

आरबीआई के अनुसार, प्रेषक द्वारा दर्ज किए गए लाभार्थी के खाता नंबर और आईएफएससी कोड के आधार पर, लाभार्थी बैंक के CBS से खाता धारक का नाम प्राप्त किया जाएगा. यह नाम पैसा ट्रांसफर करने वाले को दिखाया जाएगा, जिससे वह पुष्टि कर सके कि दी गई जानकारी सही है. यदि किसी तकनीकी कारण से खाता नाम प्रदर्शित नहीं हो पाता, तो वह फिर उस हिसाब से फैसला ले सकेगा.

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ग्राहकों के लिए होगी मुफ्त सुविधा?

आरबीआई ने स्पष्ट किया कि यह सेवा ग्राहकों को बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराई जाएगी. इसके अलावा, यह सुविधा इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, और शाखाओं के माध्यम से उपलब्ध होगी. ग्राहकों की गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए, नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) इस सुविधा से संबंधित कोई भी डेटा संग्रहीत नहीं करेगा. आरबीआई ने यह भी सुनिश्चित किया है कि किसी विवाद की स्थिति में धन प्रेषक बैंक और लाभार्थी बैंक, अद्वितीय लुकअप संदर्भ संख्या और संबंधित लॉग का उपयोग करके विवाद का समाधान करेंगे.

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आरबीआई का यह कदम डिजिटल भुगतान सिस्टम को और अधिक सुरक्षित और उपयोगकर्ता-अनुकूल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है. इससे न केवल फंड ट्रांसफर में त्रुटियों की संभावना घटेगी, बल्कि ग्राहकों का विश्वास भी बढ़ेगा. बैंक और भुगतान सिस्टम ऑपरेटरों को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि वे इस नई सुविधा को समय पर लागू करें.

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