नई दिल्ली. टाटा स्टील के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) एवं प्रबंध निदेशक टी वी नरेंद्रन ने बुधवार को कहा कि चीन के आक्रामक मूल्य निर्धारण से ग्लोबल स्टील प्लेयर्स लाभ कमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि भारत में इस धातु की मांग और खपत बढ़ रही है. नरेंद्रन ने नए साल पर झारखंड के धनबाद में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि पिछले दो साल इस्पात उद्योग के लिए वैश्विक स्तर पर मुश्किलों भरे रहे हैं. उन्होंने कहा कि खासकर कोविड के दौरान चीन में लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से इस्पात मार्जिन कम होने के साथ लाभ कमाने के लिए भी लगातार संघर्ष करना पड़ा.
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उन्होंने दुनिया के कई हिस्सों में छिड़े संघर्षों पर कहा कि इन घटनाओं का भारत पर भी प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव पड़ता है. उन्होंने चीन की अनुचित प्रतिस्पर्धा पर चिंता व्यक्त की और केंद्र सरकार से घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने का आग्रह किया. नरेंद्रन ने चीन से अनुचित इस्पात आयात के खिलाफ अपने उद्योगों को संरक्षण देने का सरकार से आह्वान करते हुए कहा कि इस्पात क्षेत्र में धन तथा रोजगार सृजन की महत्वपूर्ण क्षमता है. उन्होंने कहा कि देश में इस्पात की मांग आठ प्रतिशत की दर से बढ़ रही है लेकिन मार्जिन में कमी एक चुनौती बनी हुई है. उन्होंने मूल्य संवर्धन के महत्व पर भी बल दिया.
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चीन का स्टील बना चुनौती
भारत ने 2024 के शुरुआती 7 महीनों में चीन से 15 लाख टन स्टील का आयात किया था. यह 2023 की समान अवधि में किए गए 9 लाख टन के आयात के मुकाबले 66.7 फीसदी अधिक है. चीन से आयातित स्टील की कीमत घरेलू कंपनियों द्वारा उत्पादित स्टील से काफी कम है. आयात बढ़ने से घरेलू कंपनियों की बिक्री पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है. उनकी डिमांड घट रही है. इसके चलते घरेलू स्टील की कीमतें भी 3 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई हैं.
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परेशान कंपनियां
टाटा और जिंदल स्टील जैसी बड़ी घरेलू कंपनियां तो इससे परेशान हैं ही, मध्यम आकार के व्यापारियों को भी इसकी वजह से समस्या झेलनी पड़ रही है. स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज की कैटेगरी में आने वाली करीब 35 फीसदी स्टील कंपनियों को जुलाई से सितंबर के बीच अपने प्लांट पर ताला लगाना पड़ा है. भारत ने पिछला वित्त वर्ष चीन से स्टील का शुद्ध आयातक बनकर खत्म किया था. यह चिंताएं टाटा और जिंदल जैसी कंपनियों ने सरकार के सामने रखी हैं.