क्या वैक्सीन की दोनों डोज और बूस्टर डोज लेने के बाद भी कोरोना का JN.1 वेरिएंट अटैक कर सकता है? क्या वैक्सीन की कोई अतिरिक्त डोज तो आगे नहीं लेनी पड़ेगी? मास्क लगाने के बाद क्या इस वेरिएंट से बचाव हो सकता है? बच्चे, बुजुर्ग और गंभीर रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों को इस वेरिएंट से कितना खतरा हो सकता है?
नई दिल्ली. देश में कोरोना का नया वेरिएंट JN.1 आने से चिंता बढ़ गई है. विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम और माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट की टीम इस पर काम कर रही है. शुरुआती जानकारी में जो बात निकलकर सामने आई है, उसमें यह वेरिएंट शुरुआती दौर में ज्यादा खतरनाक नजर नहीं आ रहा है. हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि यह वायरस लगातार अपना रंग बदल रहा है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक JN.1 वेरिएंट कोरोना के BA.2.86 का सब वेरिएंट है. भारत में लोगों के मन में सवाल उठना शुरू हो गया है कि क्या वैक्सीन की दोनों डोज और बूस्टर डोज लेने के बाद भी यह वेरिएंट अटैक कर सकता है? क्या वैक्सीन की कोई अतिरिक्त डोज तो आगे नहीं लेनी पड़ेगी? मास्क लगाने के बाद क्या इस वेरिएंट से बचाव हो सकता है? बच्चे, बुजुर्ग और गंभीर रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों को इस वेरिएंट से कितना खतरा हो सकता है? क्या देश में एक बार फिर से कोविड पॉजिटिव को आइसोलेट किया जाएगा? आने वाले दिनों में मास्क पहनना अनिवार्य हो जाएगा?
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कोरोना के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय के कोविड मामलों की मॉनिटरिंग के लिए गठित टीम के सदस्य डॉक्टर एनके अरोड़ा न्यूज 18 हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘वायरस की सीक्वेंसिंग के बाद इस बात की पुष्टि हुई है कि यह ओमिक्रॉन फैमिली का ही वायरस है. जिनोम सीक्वेंसिंग से पता चल जाता है कि वायरस कितना खतरनाक है और कितना रंग बदलता है. हालांकि, ओमिक्रॉन भारत में ज्यादा खतरनाक साबित नहीं हुआ है. भारत में डेल्टा वेरिएंट ने काफी नुकसान पहुंचाया है. यह शुरुआती दौर है. इसलिए बदले हुए वेरिएंट को जिनोम सीक्वेंसिंग के साथ-साथ मरीज के संपर्क में आए लोगों पर भी नजर रखी जानी चाहिए. खासकर 60 साल से अधिक उम्र वाले को विशेष ध्यान रखना चाहिए. कैंसर, किडनी, सांस और स्टेरॉयड सेवन करने वाले सभी मरीजों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.’
वायरस की सीक्वेंसिंग के बाद इस बात की पुष्टि हुई है कि यह ओमिक्रॉन फैमिली का ही वायरस है. (फोटो Shutterstock)
कोरोना का नया वेरिएंट कितना खतरनाक?
कोरोना के दौरान दिल्ली के सबसे बड़े कोविड अस्पतालों में से एक एलएनजेपी के पल्मोनरी विभाग के एचओडी डॉ नरेश कुमार कहते हैं, ‘फिलहाल अस्पातल में आ रहे रोगियों में जो वायरस पाए जा रहे हैं वे सामान्य वायरस हैं. आपको बता दें कि पैरेन्फ्लुएंजा वायरस, राइनोवायरस अमूमन इस मौसम में मौजूद रहते हैं. मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में अभी तक कोविड के मामले सामने नहीं आए हैं. हालांकि, अस्पताल पहले भी कोविड मामलों से निपटता रहा है, इसलिए यदि ऐसे मामले आते हैं तो अस्पताल पहले से ही उससे निपटने के लिए तैयार है.
दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल में कैसी है तैयारी
पिछले दिनों दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने विशेषज्ञों की बैठक बुलाई थी. उस वक्त हालात भी कुछ ऐसे ही थे. अभी भी घबराने की जरूरत नहीं है. लोगों को इस मौसम में खांसी, जुकाम और बुखार का उचित इलाज कराना चाहिए. साथ ही उचित आहार, पानी, एंटीऑक्सिडेंट आदि लेकर अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए.
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WHO ने क्या कहा
WHO के मुताबिक, इस वेरिएंट के मरीजों के संपर्क में आए लोगों को अस्पतालों में दाखिल करने की जरूरत नहीं पड़ती है. साथ ही कैजुअल्टी होने का खतरा भी कम रहता है. इस वेरिएंट के मरीजों को तीन से पांच दिनों तक सामान्य बुखार, जुकाम जैसे लक्षण नजर आते हैं. अगर कोई शख्स ठीक नहीं हो रहा है तो डरने की बात नहीं धीरे-धीरे स्ट्रेन कमजोर होता चला जाएगा. कोरोना की वैक्सीन हर वेरिएंट के लिए असरदार साबित है. हालांकि, कुछ मामलों में अतिरिक्त डोज लगाने की सलाह दी जाती है. इस बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर समेत तमाम एजेंसियां और विशेषज्ञों की टीम लगी हुई है. फिलहाल इस वेरिएंट के लिए कोरोना वैक्सीन की अतिरिक्त डोज लगाने की जरूरत नहीं है. मास्क लगाने के लिए भी डॉक्टरों ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि मामले कम हैं.
देश में कोरोना के नए मामले सामने आने के बाद कोविड टास्क फोर्स को एक बार फिर से सक्रिय करने की बात होने लगी है. कोरोना संक्रमण के रोजाना मामलों में इजाफा शुरू हो गया है. छह महीने के बाद रविवार को पहली बार कोरोना के 300 से ज्यादा मामले पूरे देश में आए. इसके चलते देश में कोरोना के सक्रिय मरीजों की संख्या ने एक हजार का आंकड़ा पार कर लिया है.