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धर्म

Vinayak Chaturthi 2024: विनायक चतुर्थी पर इस विधि से करें गणेश जी की पूजा, सभी मनोकामनाएं होंगी पूरी

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गणपति जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है क्योंकि वह अपनों भक्तों के सभी कष्ट हर लेते हैं। भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए चतुर्थी तिथि पर विधिपूर्वक उपासना करनी चाहिए। साथ ही उन्हें प्रिय चीजों का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से जातक को प्रभु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। चलिए जानते हैं विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा कैसे करनी चाहिए?

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धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Vinayak Chaturthi 2024 Date and Time: चतुर्थी तिथि भगवान शिव के पुत्र गणपति बप्पा को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। इस बार आषाढ़ माह में विनायक चतुर्थी 09 जुलाई को है। विनायक चतुर्थी के शुभ अवसर पर भगवान गणेश जी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही शुभ फल की प्ताप्ति के लिए व्रत भी किया जाता है।

विनायक चतुर्थी 2024 डेट और शुभ मुहूर्त (Vinayak Chaturthi 2024 Date and Shubh Muhurat)

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पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत सुबह 06 बजकर 08 मिनट से होगी। वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 07 बजकर 51 मिनट पर होगा। इस दिन चन्द्रास्त का समय रात 09 बजकर 58 मिनट पर है। साधक 09 जुलाई को व्रत रख सकते हैं।

विनायक चतुर्थी पूजा विधि (Vinayak Chaturthi Puja Vidhi)

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विनायक चतुर्थी के दिन की शुरुआत देवी-देवताओं के ध्यान से करें। इसके बाद स्नान कर हरे रंग के वस्त्र धारण करें, क्योंकि गणेश जी को हरा रंग प्रिय है। इसके बाद मंदिर की सफाई करें और चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को विराजमान करें। अब प्रभु को फल, फूल, धूप समेत आदि चीजें अर्पित करें। इसके पश्चात देशी घी का दीपक जलाकर आरती करें और गणेश चालीसा का पाठ करें। साथ ही मंत्रों का जप करें। प्रभु से सुख, समृद्धि और धन में वृद्धि की कामना करें। मोदक का भोग लगाकर लोगों में प्रसाद का वितरण करें। इसके अलावा पूजा करने के बाद श्रद्धा अनुसार जरूरतमंदों को अन्न, धन और वस्त्र का दान करें।

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इन मंत्रों का करें जप

भगवान गणेश के मंत्र

ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

गणेश गायत्री मंत्र

ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

ॐ महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

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