सरकार ने खाद्य तेल प्रोसेसर्स को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे खुदरा मूल्य में वृद्धि से बचें. यह निर्णय हाल ही में आयात शुल्क में बढ़ोतरी के बावजूद लिया गया है.
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खाद्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि कम शुल्क पर आयातित खाद्य तेलों का स्टॉक 45 से 50 दिनों की घरेलू खपत के लिए पर्याप्त है. इस वजह से प्रोसेसर्स को अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) में वृद्धि नहीं करनी चाहिए. मंत्रालय ने खाद्य तेल संघों से कहा है कि वे इस मुद्दे को अपने सदस्यों के साथ तुरंत उठाएं.
आयात शुल्क में वृद्धि
पिछले सप्ताह केंद्र ने घरेलू तिलहन कीमतों को समर्थन देने के लिए विभिन्न खाद्य तेलों पर मूल सीमा शुल्क में वृद्धि की थी. कच्चे सोयाबीन, कच्चे पाम और कच्चे सूरजमुखी तेल पर मूल सीमा शुल्क को शून्य से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है. इसके साथ ही, रिफाइंड पाम, रिफाइंड सूरजमुखी और रिफाइंड सोयाबीन तेल पर मूल सीमा शुल्क को 12.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 32.5 प्रतिशत कर दिया गया है.
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चर्चा और मूल्य निर्धारण रणनीति
मंगलवार को खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए), इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (आईवीपीए) और सोयाबीन ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (एसओपीए) के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की. इस बैठक में मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा की गई. सरकारी बयान में कहा गया है कि प्रमुख खाद्य तेल संघों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी गई है कि एमआरपी बरकरार रखा जाए.
घरेलू मांग और आयात की निर्भरता
भारत में खाद्य तेलों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में आयात किया जाता है. वर्तमान में, आयात पर निर्भरता कुल आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत से अधिक है. खाद्य मंत्रालय ने बताया कि आयात शुल्क बढ़ाने का यह निर्णय घरेलू तिलहन किसानों को बढ़ावा देने के लिए किया गया है, खासकर अक्टूबर 2024 में आने वाली नई फसलों को ध्यान में रखते हुए.
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गौरतलब है कि सरकार के इस कदम का मकसद खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित रखना और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है. इससे किसानों को भी लाभ होगा और कंज्यूमर्स को को स्थिर मूल्य पर खाद्य तेल मिल सकेगा.