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हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश बन रहा मस्जिद विरोधी हॉटस्पॉट, पहाड़ी राज्य में नई सांप्रदायिक राजनीति कैसे ले रही आकार

शिमला: शिमला के कसुम्पटी में एक छोटी मस्जिद तिरपाल के नीचे सुनसान है इसके बाहर दो पुलिसकर्मी पहरा दे रहे हैं. अब यहां कोई नमाज पढ़ने की हिम्मत नहीं करता. पिछले महीने से हिंदू समूहों ने इसे गिराने के लिए अभियान चलाया हुआ है. यह हिमाचल प्रदेश में मस्जिद-विरोधी अभियान का हिस्सा है, जहां कईं इमारतों को ‘अवैध’ करार दिया जा रहा है और उन पर ‘बाहरी लोगों’ को शरण देने का आरोप लगाया जा रहा है.

हिमाचल प्रदेश के कुछ हिंदुओं में बेचैनी की एक नई तरह की राजनीति आकार ले रही है और मस्जिदें ही वह बिंदु हैं, जिसके इर्द-गिर्द हिंदू कट्टरपंथी समूह सक्रिय हो रहे हैं. कसुम्पटी में प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि एक घर को अवैध रूप से मस्जिद में तब्दील कर दिया गया और वहां ‘संदिग्ध’ लोग इकट्ठा हो रहे थे. विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद 17 सितंबर को मस्जिद को सील कर दिया गया.

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विश्व हिंदू परिषद की देवभूमि संघर्ष समिति के सह-संयोजक मदन ठाकुर ने कहा, “हम चाहते हैं कि हिमाचल प्रदेश मस्जिदों को निशाना बनाने और जगह वापस लेने का उदाहरण पेश करे. समिति ‘अवैध’ मस्जिदों को बंद करने के लिए समर्पित है. हमारे मंदिर ध्वस्त कर दिए गए, अब हम उनका पुनर्निर्माण कर रहे हैं. मुझे परवाह नहीं है कि आपकी संरचना को क्या तोड़ रहा है — मुझे अपनी आस्था की परवाह है.”

पर्यटकों के लिए अनुकूल यह शांत पहाड़ी राज्य अब सांप्रदायिक राजनीति की एक नई लहर का सामना कर रहा है जो इसकी पहचान को ही खतरे में डाल रही है. शिमला के संजौली इलाके में एक मस्जिद के विस्तार को लेकर शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन तेज़ी से दूसरे जिलों में भी फैल गया और अब तक करीब आधा दर्जन मस्जिदें निशाने पर हैं. व्हाट्सएप ग्रुप खौफ, नफरत और संदेह से भरे हुए हैं. अदालतें याचिकाओं और प्रति-याचिकाओं से भरी पड़ी हैं. प्रशासन बढ़ते तनाव को नियंत्रित करने के लिए संघर्षरत है, विरोध मार्च और शांति रैलियां सड़कों पर अब आम बात हो गई हैं.

लेकिन और भी विरोध प्रदर्शन होने वाले हैं.

सितंबर की देर शाम, 45-वर्षीय ठाकुर ने शिमला के होराइजन होटल में अपने तीन साथियों से मुलाकात की और अपने अगले कदम की रूपरेखा तैयार की — ‘अनधिकृत’ मस्जिदों और मुस्लिम ‘बाहरी लोगों’ के खिलाफ कार्रवाई की मांग के लिए ‘जेल भरो आंदोलन’.

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वह (हिंदू संगठन) एक संदेश देना चाहते हैं — अगर वह ऐसे राज्य में अराजकता पैदा कर सकते हैं जहां मुस्लिम आबादी बहुत कम है, तो सोचिए कि वह अन्य जगहों पर क्या करेंगे

— आदर्श सूद, शिमला के पूर्व मेयर

ठाकुर ने दिप्रिंट से कहा, “हिमाचल प्रदेश में मुस्लिम आबादी और मस्जिदें बढ़ रही हैं. हमारे साथी राज्य में अवैध रूप से बनी मस्जिदों की पहचान कर रहे हैं. ये मस्जिदें हमारे निशाने पर हैं.”

दो व्यापारियों — एक हिंदू और एक मुस्लिम — के बीच 30 अगस्त को हुए विवाद के बाद आंदोलन ने गति पकड़ी, जो सांप्रदायिक झड़पों में बदल गया. अफवाहें फैलीं कि मुस्लिम व्यक्ति संजौली मस्जिद में छिपा हुआ है और एक दिन के भीतर, इस मस्जिद का पांच मंजिलों तक विस्तार, हिंदू समूहों के लिए बिजली की छड़ बन गया. इसके तुरंत बाद, उन्होंने हिमाचल प्रदेश की अन्य मस्जिदों के साथ इसी तरह के मुद्दों की पहचान करने का दावा किया.

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ग्राफिक: वासिफ खान/दिप्रिंट

अब, यह कांग्रेस शासित राज्य मस्जिद विरोधी केंद्र में बदल रहा है. संजौली, कसुम्पटी, कुल्लू, मंडी, नगरोटा बगवान, धर्मशाला और बसोली की मस्जिदें सभी जांच के दायरे में हैं, जिनमें अवैध निर्माण, मंदिर की ज़मीन पर कब्ज़ा, निजी संपत्ति को मस्जिद में बदलने जैसे आरोप लगाए जा रहे हैं.

देवभूमि संघर्ष समिति, करणी सेना, हिंदू जागरण मंच और बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों ने पहाड़ी राज्य में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए उपजाऊ ज़मीन पा ली है, जहां वह पहले प्रेस विज्ञप्ति और बयानों तक ही सीमित थे, अब सड़कों पर सक्रिय हैं.

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ठाकुर इस आंदोलन की वजह बांग्लादेश में राजनीतिक संकट को मानते हैं, जहां प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाए जाने के बाद हिंदुओं पर हुए हमलों ने सीमा पार लोगों में गुस्सा पैदा कर दिया है.

ठाकुर ने गर्व भरी मुस्कान के साथ कहा, “अगर बांग्लादेश में ऐसी घटनाएं नहीं होतीं, तो हम हिमाचल में इतना बड़ा आंदोलन नहीं कर पाते. बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों ने लोगों को प्रेरित किया है और उन्हें सड़कों पर उतरने पर मजबूर किया है.”

हालांकि, हर किसी इसे एक नज़रिए से नहीं देखता. शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह पंवार ने तर्क दिया कि हिंदू समूह वर्ग और आर्थिक मुद्दों को धार्मिक लड़ाई में बदल रहे हैं.

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पंवार ने कहा, “कई स्थानीय लोग मुस्लिम मजदूरों को काम पर रखते हैं और उनके काम में ‘गलतियों’ को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें पैसे देने से मना कर देते हैं. दुकान मालिक अपनी दुकानों के सामने मजदूरों को छोटी-छोटी जगह किराए पर देते हैं, लेकिन जब वह उनका काम चलने लगता है, तो उन्हें परेशानी होने लगती है. यह एक वर्ग का मुद्दा है, जिसे हिंदू संगठनों ने धार्मिक मुद्दे में बदल दिया है.”

यह सिर्फ धर्म के बारे में नहीं है. हिमाचल प्रदेश के श्रम एवं रोजगार विभाग के डिप्टी कमिश्नर मुनीश करोल के अनुसार, वास्तव में जो दांव पर लगा है, वह है “बाज़ार नियंत्रण”, वह अन्य राज्यों से यहां आए श्रमिकों का हवाला दे रहे थे.

राज्यव्यापी हलचल पर तमाचा

यह सब शिमला की संजौली मस्जिद से शुरू हुआ था.

30 अगस्त को मलयाणा इलाके में दो स्थानीय व्यवसायियों के बीच झगड़ा हुआ. कथित तौर पर हिंदू दुकानदार विक्रम ने एक मुस्लिम सैलून मालिक गुलनवाज़ अंसारी के किशोर सहायक को तीखी बहस के बाद थप्पड़ मार दिया. मामला जल्द ही हाथ से निकल गया और दोनों पक्ष आपस में उलझ गए, जिसमें कई लोग घायल हो गए और गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन असली परेशानी अगले दिन शुरू हुई.

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अफवाहें फैलीं कि अंसारी और उसके साथियों ने संजौली मस्जिद में शरण ले ली है. इससे शिमला में राजनीतिक और धार्मिक नेताओं में हलचल मच गई, जिन्होंने मस्जिद और इलाके में बढ़ती मुस्लिम मौजूदगी को लेकर चिंता जताई. लगभग एक सितंबर से विरोध प्रदर्शन शुरू हुए और अगले कुछ हफ्तों में पूरे राज्य में फैल गए.

शिमला के मलयाणा इलाके में दुकानदार यशपाल सिंह की छोटी सी बिजली के सामान की दुकान है. उनका दावा है कि उन्होंने 30 अगस्त को दो व्यवसायियों के बीच झगड़े में बीच-बचाव करने की कोशिश की, लेकिन लाठी और रॉड से हमला किए जाने के बाद उनके सिर पर 19 टांके लगे | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

लेकिन देवभूमि संघर्ष समिति के मदन ठाकुर के अनुसार, संजौली मस्जिद विवाद सिर्फ एक महत्वपूर्ण मोड़ था.

अपनी आवाज़ में जोश भरते हुए उन्होंने दावा किया कि उनके समूह ने पिछले साल मुसलमानों की ‘संदिग्ध’ गतिविधियों पर नज़र रखी थी. ठाकुर ने कहा कि उन्होंने 26 मुसलमानों को हिंदू बनकर पेश आते हुए, हिंदू नाम और रुद्राक्ष की माला और भगवा कपड़े जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल करते हुए पाया. उन्होंने आरोप लगाया कि उनमें से कई यूपी के सहारनपुर के देवबंदी थे, जो सामान्य दरों से दोगुनी दरों पर दुकानें किराए पर ले रहे थे.

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उन्होंने पूछा, “क्या यह लैंड जिहाद नहीं है? उन्हें पैसे कहां से मिल रहे हैं?”

ठाकुर ने यह भी आरोप लगाया कि फल बेचने वाले मुस्लिमों द्वारा हिंदू लड़कियों को कम कीमत पर सामान बेचने और पुरुषों से ज़्यादा पैसे वसूलने की घटनाएं हुई हैं — यह महिलाओं को “लुभाने” की एक रणनीति है. उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी घटनाएं राष्ट्रीय सुर्खियां बन रही हैं और सभी संकेत गज़वा-ए-हिंद मास्टरप्लान की ओर इशारा कर रहे हैं.

संजौली में हिंदू सब्ज़ी और फल विक्रेताओं को ‘सनातन सब्ज़ी वाला’ का साइनबोर्ड दिया जा रहा है | फोटो: सौरभ चौहान/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “हम राज्य में इस बात पर नज़र रख रहे हैं कि कहीं ऐसा जिहाद तो नहीं हो रहा है.”

हिमाचल प्रदेश में इस तरह की बयानबाज़ी अपेक्षाकृत नई है, जहां सांप्रदायिक तनाव बहुत कम देखने को मिलता है.

शिमला के पूर्व मेयर आदर्श सूद ने कहा, “हिमाचल में पहले कभी सांप्रदायिक राजनीति नहीं देखी गई. अब तक, हिंदू संगठन केवल कागज़ों पर ही मौजूद थे.”

सूद के अनुसार, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण ने ऐसे संगठनों को “अवसर और ताकत” दी है. इसने उन्हें हिंदुत्व की पहुंच बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया है और स्थानीय नेता, जिनमें पार्षद और सेवानिवृत्त मेयर शामिल हैं, इस अभियान में शामिल हो गए हैं.

मैंने बचपन से ही मस्जिद को देखा है और कभी कोई संदिग्ध गतिविधि नहीं देखी. जब कई अन्य अवैध संरचनाएं मौजूद हैं, तो केवल मस्जिद को निशाना बनाना अनुचित है

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— संजौली निवासी रवि कुमार

सूद ने कहा, “वह (हिंदू संगठन) एक संदेश देना चाहते हैं — अगर वह ऐसे राज्य में अराजकता पैदा कर सकते हैं जहां मुस्लिम आबादी बहुत कम है, तो सोचिए कि वह अन्य जगहों पर क्या करेंगे.”

2011 की जनगणना के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में हिंदुओं की आबादी 95.17 प्रतिशत है, जबकि मुसलमानों की आबादी 2.18 प्रतिशत है — जो कि लगभग 150,000 है. राज्य के 12 जिलों में से 11 में हिंदू बहुसंख्यक हैं.

तब से जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं है, लेकिन एनजीओ इदारा इस्लाहुल फिक्र सोसाइटी के अध्यक्ष मोहम्मद अफ़ज़ल का अनुमान है कि पिछले दो साल में प्रवासी मुस्लिम श्रमिकों में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इन श्रमिकों पर सरकारी निकाय नज़र नहीं रखते हैं क्योंकि वह अस्थायी हैं और ज़मीन नहीं खरीद सकते. यहां तक ​​कि पुलिस सत्यापन भी धर्म या जाति को ट्रैक नहीं करता है.

ज़्यादातर लोग अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, जिससे उनकी सही आबादी का पता लगाना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उनके लिए कोई डेटा रिकॉर्ड नहीं है

— मुनीश करोल, डिप्टी कमिश्नर, श्रम और रोज़गार विभाग

हालांकि, ठाकुर का मानना है कि पहले से ही कार्रवाई करना ज़रूरी है.

उन्होंने कहा, “जब मुस्लिम आबादी कम होती है, तो वह चुप रहते हैं, लेकिन जैसे-जैसे उनकी संख्या बढ़ती है, वह खुद को मुखर करना शुरू कर देते हैं.”

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उन्होंने दावा किया कि “मस्जिदों का अवैध निर्माण” और “हिंसा” में वृद्धि मुसलमानों की आमद के कारण है. उन्होंने प्रशासन से अन्य स्थानों, विशेष रूप से सहारनपुर से आने वाले लोगों की पहचान सत्यापित करने का आह्वान किया — शिमला में लकड़ी की नक्काशीदार वस्तुओं की आपूर्ति करने वाले कारीगरों के लिए एक जाना-माना केंद्र. कथित तौर पर यहां एक ‘ग्रुप लॉबी’ काम करती है, जिसमें यूपी के मज़दूर स्थानीय संपर्कों के ज़रिए किफायती, गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध कराते हैं.

ठाकुर ने कहा कि उन्हें केवल उन मुसलमानों से परेशानी है जो पिछले 25 वर्षों में राज्य में आए हैं, जबकि बाकी लोगों का यहां स्वागत है.

मुसलमानों को लेकर ये चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, शिमला के पुलिस अधीक्षक संजीव कुमार गांधी ने बताया कि हालांकि, पलायन संसाधनों पर दबाव डाल रहा है, लेकिन इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है.

उन्होंने कहा, “जनसांख्यिकी बदल रही है और यह एक समस्या है, लेकिन यह धर्म से परे है.”

पांच सितंबर को शिमला के संजौली में मस्जिद के कथित अवैध निर्माण के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं और स्थानीय निवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया | एएनआई

अभी तक हिमाचल में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा दोनों के नेता मस्जिद विवाद पर काफी हद तक सहमत हैं और कथित ‘अवैध’ संरचनाओं को ध्वस्त करने का आह्वान कर रहे हैं.

28 सितंबर को जब समिति ने एक प्रदर्शन किया, तो राम बाज़ार/सब्जी मंडी से कांग्रेस पार्षद सुषमा कुठियाला ने रुककर उनकी चिंताओं के साथ अपनी सहमति और एकजुटता व्यक्त की. इससे पहले, कांग्रेस के जूनियर मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने संजौली मस्जिद की जांच की मांग की थी और वक्फ बोर्ड पर ज़मीन पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया था.

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हिमाचल के मुस्लिम समुदाय के लिए कांग्रेस नेताओं का रुख एक कड़वी गोली की तरह रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत और लोकसभा चुनाव में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन से कई लोग उत्साहित हैं. अब कांग्रेस के मंत्रियों पर अपने हिंदू वोट बैंक की रक्षा के लिए सांप्रदायिक तनाव भड़काने का आरोप है.

यहां कई लोगों का तर्क है कि अगर संजौली मस्जिद की घटना को शुरू से ही बेहतर तरीके से संभाला गया होता, तो अशांति को टाला जा सकता था और यह 6 किलोमीटर दूर कसुम्पटी सहित अन्य जगहों पर नहीं फैलती.

ठाकुर ने कई नए लक्ष्यों पर अपनी नज़रें गड़ा दी हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि कोविड-19 महामारी के दौरान हिमाचल में करीब 250 नई मस्जिदें ‘गुप्त रूप से’ बनाई गईं. उन्होंने कहा, “अगर हम उनके दस्तावेज़ की जांच करेंगे तो वह मुकदमेबाजी में फंस जाएंगे.”

‘बाहरी लोग’ और मालिकाना हक

कसुम्पटी मस्जिद के बारे में कई सालों से अफवाहें उड़ रही हैं — नमाज़ अदा की जा रही है, जबकि आसपास कोई मुस्लिम परिवार नहीं रहता, रहस्यमयी लोग आते-जाते रहते हैं, लेकिन पिछले महीने विरोध प्रदर्शनों के बाद इसे बंद करने का मुख्य कारण मालिकाना हक का विवाद है.

कुछ निवासियों का आरोप है कि मस्जिद केंद्र सरकार की ज़मीन पर बनी है, जिसे एक मुस्लिम परिवार को पट्टे पर दिया गया था, जिसने इसे 1990 में बेच दिया था. उनका दावा है कि नए मालिक ने धीरे-धीरे घर को मस्जिद में बदल दिया.

शिमला में मौसम से प्रभावित पत्थरों से बनी कसुम्पटी मस्जिद अब प्लास्टिक और मोटे कपड़े की चादरों से ढकी हुई है. एक महीने पहले इसे अवैध घोषित किए जाने के बाद से कोई भी यहां नमाज़ अदा करने नहीं आया है | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

लेकिन कहानी ज़्यादा जटिल है.

1970 के वक्फ संपत्ति सर्वेक्षण ने आधिकारिक तौर पर राजपत्रित अभिलेखों में इस स्थल को मस्जिद के रूप में मान्यता दी है. हालांकि, कागज़ी कार्रवाई प्रशासनिक खामियों के कारण उलझी हुई है.

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विभाजन के बाद 1950 के प्रशासन के तहत केंद्र सरकार ने मुसलमानों के स्वामित्व वाली कई संपत्तियों को अपने अधीन ले लिया, जो पाकिस्तान चले गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों का प्रबंधन करती थी.

हिमाचल वक्फ बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 1970 के सर्वेक्षण के बाद कुछ संपत्तियां बोर्ड को सौंप दी गईं, लेकिन उन्हें कभी भी सरकारी दस्तावेज़ से पूरी तरह से हटाया नहीं गया. अब, हिंदू समूहों का तर्क है कि ये संपत्तियां अभी भी सरकार की हैं.

अधिकारी ने दावा किया, “हमने इन दस्तावेज़ को सही करने और केंद्र सरकार के स्वामित्व को हटाने के लिए राजस्व विभाग को कई बार लिखा है, लेकिन ऐसा अभी तक नहीं किया गया है.”

जहां तक ‘रहस्यमयी’ नमाजकर्ताओं का सवाल है, मस्जिद के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया कि मलयाना, छोटा शिमला और मेहली जैसे आस-पास के इलाकों से कामगार यहां नमाज़ अदा करने आते हैं क्योंकि उनके पास मस्जिद नहीं है.

कसुम्पटी मस्जिद के अंदर मेहराब. मुस्लिम समुदाय का दावा है कि इसकी मौजूदगी इमारत के मस्जिद होने की पुष्टि करती है | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “इमारत में एक महराब है, जहां से मौलवी नमाज़ पढ़ाते हैं, जो दर्शाता है कि यह एक मस्जिद है.”

17 सितंबर को स्थानीय पार्षद रचना शर्मा और पूर्व डिप्टी मेयर और भाजपा नेता राकेश शर्मा ने डिप्टी कमिश्नर को ज्ञापन सौंपकर कुसुम्पटी मस्जिद को गिराने की मांग की. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि वक्फ बोर्ड अधिनियम के अनुसार किसी भी क्षेत्र में मस्जिद बनाने के लिए कम से कम 40 मुस्लिम परिवारों की ज़रूरत होती है.

नगर निगम न्यायालय द्वारा 21 अक्टूबर को इस मामले पर फैसला सुनाए जाने की उम्मीद है.

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निशानें पर मस्जिदें

संजौली इसका केंद्र था, लेकिन हिमाचल प्रदेश में मस्जिद विरोधी आंदोलन शिमला से कहीं आगे तक फैल गया है.

वीएचपी से जुड़े देवभूमि संघर्ष समिति जैसे हिंदू समूहों ने इस मौके का फायदा उठाया और राज्य में अपनी गतिविधियों को बढ़ावा दिया. समिति ने अपने निष्क्रिय सोशल मीडिया चैनलों के जरिए संदेश देकर जिलों में विरोध प्रदर्शन, मार्च और रैलियां आयोजित कीं. इसका फेसबुक पेज अपडेट अब राज्य सरकार को समझाने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करने के आह्वान और बहिष्कार के आह्वान से भरा हुआ है.

12 सितंबर को मंडी में प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने पानी की बौछारें कीं. हिंदू समूहों द्वारा आहूत यह विरोध प्रदर्शन, जेल रोड मस्जिद के एक अनधिकृत हिस्से को मुस्लिम समुदाय द्वारा स्वेच्छा से ध्वस्त किए जाने के एक दिन बाद हुआ | फोटो: एक्स स्क्रीनग्रैब

संजौली की घटना के कुछ ही दिनों के भीतर, हिमाचल भर में ‘अवैध’ मस्जिदों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.

नगरोटा में प्रदर्शनकारियों ने एक दुकान में तोड़फोड़ की. धर्मशाला में व्यापारियों ने सड़कों पर मार्च निकाला और दुकानें बंद कर दीं. ऊना जिले के बरोली गांव में लोगों ने सवाल उठाया कि एक ऐसी जगह पर मस्जिद क्यों बनाई गई जहां कोई मुस्लिम नहीं रहता. इस महीने कुल्लू ने भी एक बड़ी रैली के साथ इस विवाद में हिस्सा लिया और मंडी में हिंदू समूह एक मस्जिद को गिराए जाने पर रोक लगाने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं, जिसके बारे में उनका दावा है कि यह शिव मंदिर के अवशेषों पर बनी है.

अशांति से कारोबारियों को कोई फायदा नहीं हो रहा है. बार-बार बाज़ार बंद होने और विरोध प्रदर्शन से नुकसान हो रहा है और कथित तौर पर पर्यटन को नुकसान पहुंचा है.

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मुस्लिम समुदाय में विभाजन

जैसे-जैसे मस्जिद से जुड़े कुछ विवाद अदालत में पहुंच रहे हैं, मुस्लिम समुदाय में विभाजन दिखने लगा है.

संजौली के हरे भरे उपनगर में पुलिस ने पांच मंजिला मस्जिद की ओर जाने वाली संकरी, खड़ी सीढ़ियों पर बैरिकेड लगा दिए हैं. करीब पांच अधिकारी बैरिकेड पर पहरा दे रहे हैं और इलाके में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति पर नज़र रख रहे हैं. एक और टीम मस्जिद के बाहर निगरानी रख रही है.

इस पर विवाद 2010 से शुरू हुआ है, जब मस्जिद समिति ने खंभे बनाए और नगर निगम से नोटिस प्राप्त किया. हालांकि, उन्हें 2012 में वक्फ बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) मिल गया था, लेकिन इमारत की योजना को कभी आधिकारिक तौर पर मंजूरी नहीं मिली. 2017 में और मंजिलें जोड़ी गईं, जो मौजूदा विवाद का मुख्य कारण बन गया.

हिमाचल प्रदेश में संजौली मस्जिद के बाहर पुलिस गश्त कर रही है, जहां इसके विध्वंस के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू होने के छह सप्ताह बाद से सुरक्षा कड़ी है | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

14 साल तक अदालतों में घिसटने के बाद, हाल ही में मामले की सुनवाई में तेज़ी आई है.

12 सितंबर को एक विरोध प्रदर्शन के बाद जिसमें 10 लोग घायल हो गए, संजौली मस्जिद समिति ने नगर आयुक्त से मस्जिद के अनधिकृत हिस्से को सील करने के लिए कहा और इसे खुद गिराने की पेशकश की.

आखिरकार, पांच अक्टूबर को — 45 सुनवाई के बाद — नगर आयुक्त ने मस्जिद समिति को वक्फ बोर्ड की निगरानी में मस्जिद की ऊपरी तीन मंजिलों को गिराने के लिए दो महीने का समय दिया.

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हालांकि, इस योजना के आलोचक भी हैं.

हिमाचल के इमाम और शिमला की सभी मस्जिदों के अध्यक्ष मुमताज़ अहमद कासमी ने कहा कि मुस्लिम संगठन अदालत के आदेश को चुनौती देने की योजना बना रहे हैं क्योंकि यह एक अपंजीकृत मस्जिद समिति द्वारा प्रस्तुत ज्ञापन पर आधारित था.

कासमी ने कहा, “हम इस फैसले को चुनौती देंगे. अदालत ने कोई गलती नहीं की, लेकिन मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने गलत कदम उठाए हैं. अगर यह ज्ञापन प्रस्तुत नहीं किया गया होता, तो यह फैसला नहीं लिया गया होता.”

संजौली निवासी रवि कुमार मस्जिद के आसपास संदिग्ध गतिविधियों के दावों को लेकर संशय में हैं. उनका कहना है कि उन्हें यकीन है कि सांप्रदायिक राजनीति राज्य के शांतिपूर्ण समुदाय में जड़ें नहीं जमा पाएगी | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

जैसे-जैसे विवाद बढ़ता जा रहा है, संजौली के कुछ निवासी इस विवाद से हैरान हैं.

संजौली निवासी रवि कुमार ने कहा, “मैंने बचपन से ही मस्जिद को देखा है और कभी कोई संदिग्ध गतिविधि नहीं देखी. जब कई अन्य अवैध निर्माण मौजूद हैं, तो केवल मस्जिद को निशाना बनाना अनुचित है.”

ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में 25,000 से अधिक अनधिकृत निर्माण हैं.

लेकिन हिंदू संगठनों के लिए, संजौली मस्जिद का फैसला एक जीत है. वह अब कसुम्पटी मस्जिद पर इसी तरह के अदालती फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं.

मस्जिदें, प्रवासी, बाज़ार नियंत्रण

मदन लाल ठाकुर के अनुसार हिमाचल में मस्जिद विरोधी आंदोलन अभी जोर पकड़ रहा है.

उन्होंने दावा किया कि कम से कम 500 पंचायतों के सदस्य मस्जिदों के खिलाफ लोगों को लामबंद कर रहे हैं और उनका संगठन देवभूमि संघर्ष समिति 1 और 2 जैसे नामों से राज्य, जिला और पंचायत स्तर पर व्हाट्सएप ग्रुप चला रहा है. इन समूहों में करीब 3,500 सदस्य हैं जो विरोध प्रदर्शन के अपडेट, वीडियो और तस्वीरें शेयर करते हैं. उदाहरण के लिए एक मैसेज में लोगों से 28 सितंबर को सीटीओ चौक पर विरोध प्रदर्शन के लिए बड़ी संख्या में आने का आग्रह किया गया.

ठाकुर ने कई नए लक्ष्यों पर अपनी नज़रें गड़ा दी हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि कोविड-19 महामारी के दौरान हिमाचल में करीब 250 नई मस्जिदें ‘गुप्त रूप से’ बनाई गईं, जिनमें से ज़्यादातर निजी संपत्तियों पर और ज़रूरी अनुमति के बिना बनाई गईं.

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उन्होंने कहा, “ये अनधिकृत मस्जिदें हैं. अगर हम उनके दस्तावेज़ की जांच करेंगे तो वह मुकदमे में फंस जाएंगे.”

ठाकुर ने बताया कि पिछले साल से उन्होंने वक्फ अतिक्रमण के बारे में पता लगाने के लिए करीब 10 आरटीआई आवेदन दायर किए हैं, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है.

देवभूमि संघर्ष समिति के सह-संयोजक मदन ठाकुर अपने फोन पर एक आरटीआई अधिसूचना दिखाते हैं. उनका दावा है कि पिछले साल दायर की गई उनकी 10 आरटीआई क्वेरी का उन्हें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

हालांकि, वक्फ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अतिक्रमण के दावे से इनकार किया.

उन्होंने कहा, “सर्वेक्षण के बाद से बोर्ड को कोई नई संपत्ति नहीं मिली है. राज्य में किसी ने भी वक्फ को संपत्ति ट्रांसफर नहीं की है. हमारी सभी संपत्तियां (waqf by user) हैं जिनका इस्तेमाल धार्मिक गतिविधियों के लिए किया जाता है मिसाल के लिए मस्जिद और कब्रिस्तान.”

हालांकि, ठाकुर की यह कोशिशें मस्जिदों तक ही सीमित नहीं हैं. वे राज्य में मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करने पर भी जोर दे रहे हैं.

उनका तर्क है कि पिछले 25 साल से उत्तर प्रदेश और बिहार के मुसलमान खुद को हिंदू बताकर “लैंड जिहाद” करने और राज्य में मिलने वाले मौकों को हथियाने का काम कर रहे हैं.

लेकिन यह सिर्फ धर्म के बारे में नहीं है. हिमाचल के श्रम और रोज़गार विभाग में डिप्टी कमिश्नर मुनीश करोल के अनुसार, जो वास्तव में दांव पर लगा है वह है “बाज़ार नियंत्रण”, दूसरे राज्यों से काम करने आने वाले श्रमिकों की आवाजाही का संदर्भ देते हुए.

जबकि बाहरी लोग राज्य में ज़मीन नहीं खरीद सकते हैं — हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम कम से कम 20 साल के “वास्तविक निवासियों” तक ज़मीन के मालिकाना हक को प्रतिबंधित करता है — इसने लोगों को छोटी दुकानें खोलने और अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए यहां आने से नहीं रोका है. अन्य लोग, जो अक्सर कुशल मज़दूर होते हैं, संपन्न कृषि और पर्यटन क्षेत्रों में नौकरी के लिए आते हैं.

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उन्होंने कहा, “इनमें से ज़्यादातर श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, जिससे उनकी सही आबादी का पता लगाना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उनके लिए कोई डेटा रिकॉर्ड नहीं है.”

नगर निगम कार्यालय, जहां कमिश्नर भूपेंद्र अत्री ने संजौली मस्जिद पर फैसला सुनाया | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

शिमला की कुतुब मस्जिद से जुड़े एक अधिकारी, जो पूरी ज़िंदगी हिमाचल में रहे हैं, ने कहा कि उन्होंने बाज़ार में हो रहे बदलाव को सामने से देखा है. ज़्यादातर हिमाचली ज़मीन के मालिक हैं और प्रवासी आमतौर पर श्रमिकों की कमी को पूरा करते हैं, लेकिन जब वही प्रवासी अपनी दुकान खोलते हैं, तो प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है.

उन्होंने कहा, “बाहर से आए श्रमिकों ने वही गुणवत्ता वाले सामान कम कीमत पर बेचना शुरू कर दिया, जिससे स्थानीय ग्राहक आकर्षित हुए और बाज़ार पर उनकी पकड़ मज़बूत हुई.”

लेकिन अशांति से कारोबारियों को भी कोई फायदा नहीं हो रहा है. बार-बार बाज़ार बंद होने और विरोध प्रदर्शन की वजह से घाटा हो रहा है और कथित तौर पर पर्यटन को भी नुकसान हुआ है.

शिमला के एक व्यवसायी ने दावा किया, “हम कई कैंसिलेशन और कम बुकिंग देख रहे हैं.”

उन्होंने अनुमान लगाया कि विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद से पर्यटन राजस्व में 25 प्रतिशत की गिरावट आई है.

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विरोध जारी है

मस्जिद विरोध के बाद शिमला से प्रवासी श्रमिकों के भागने की खबर फैलते ही, 27 सितंबर को राज्य की राजधानी में गैर-भाजपा राजनीतिक नेताओं के नेतृत्व में ‘शांति के लिए एकजुट’ मार्च के लिए विभिन्न धर्मों के 500 से अधिक लोग सड़कों पर उतर आए.

इमाम कासमी भी बढ़ते मस्जिद विरोधी आंदोलन का मुकाबला करने के लिए कार्रवाई कर रहे हैं, इसके लिए वे सीधे तौर पर अधिकारियों की कार्रवाई में विफलता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

30 सितंबर को उन्होंने राज्य में मस्जिद विरोधी अभियान को संबोधित करने के लिए नागरिक समाज संगठनों और समुदाय के सदस्यों की मंडी में एक बैठक आयोजित की.

वे स्थानीय मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ एक नया संगठन बनाने की योजना बना रहे हैं — ऐसा कुछ जो उन्होंने कहा कि पहले कभी ज़रूरी नहीं था. वह वर्तमान में इस नए निकाय की संरचना, नाम और सदस्यों पर चर्चा कर रहे हैं.

शिमला में 27 सितंबर को शांति मार्च के दौरान एक व्यक्ति “सांप्रदायिकता मानवता की दुश्मन है” लिखी तख्ती लिए हुए है | फोटो: एक्स/एएनआई

कासमी, जो राज्य की सभी मस्जिदों के प्रतिनिधि भी हैं, ने पूछा, “यह सांप्रदायिक तनाव इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि प्रशासन अपना काम नहीं कर रहा है. यह अपना काम क्यों नहीं कर रहा है?”

उन्होंने सवाल किया कि किसी भी भारतीय नागरिक को राज्य में काम करने की अनुमति क्यों नहीं दी जानी चाहिए, जबकि संविधान इस स्वतंत्रता की गारंटी देता है.

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उन्होंने गुस्से में कहा, “क्या हिंदू संगठन हिमाचल को देश का हिस्सा नहीं मानते?”

शिमला में, कपड़े बेचने वाले आलम अपने एक दोस्त के साथ पहाड़ी सड़क पर चल रहे थे, दोनों अपने सामान के बंडल लेकर चल रहे थे. उन्होंने चर्चा की कि नमाज़ के लिए कसुम्पटी मस्जिद में वापस लौटना कब सुरक्षित हो सकता है और कैसे उनकी बिक्री में गिरावट आई है — एक दिन में 10 सूट से सिर्फ चार.

आठ साल पहले बिहार से हिमाचल आए आलम ने कहा कि अशांति ने उनके परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल बना दिया है।

उन्होंने पूछा, “हमें लगा कि हम कांग्रेस पर भरोसा कर सकते हैं, लेकिन अब हम कहां जाएं?”

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