नई दिल्ली : एक सरकारी कर्मचारी 13 साल पहले सर्विस से बर्खास्त कर दिया जाता है। विभागीय जांच में उसके खिलाफ अनुशासनहीनता, ड्यूटी में लापरवाही और आदेशों को न मानने जैसे कुल 14 आरोप को सच माना गया और बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया गया। इसके खिलाफ कर्मचारी ने रिट कोर्ट में याचिका डाली। कोर्ट ने पाया कि इतनी सख्त कार्रवाई को उचित ठहराने का कोई कारण नहीं दिख रहा। आरोप साबित नहीं हुए। रिट कोर्ट ने बर्खास्तगी की वैधता पर ही सवाल उठा दिए। इस पर झारखंड सरकार हाई कोर्ट में अपील कर दी। हाई कोर्ट ने भी रिट कोर्ट के फैसले से सहमति दिखाई तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए झारखंड सरकार पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों की तरफ से फिजूल की याचिका दाखिल करने पर रोक लगनी चाहिए।
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जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि पिछले 6 महीनों से चेतावनी के बावजूद राज्य सरकार का एटिट्यूड नहीं बदला है। कोर्ट ने कहा, ‘राज्यों की तरफ से मामूली याचिकाओं को दायर करने की प्रैक्टिस रोके जाने की जरूरत है। हमारी तरफ से लगातार चेतावनी देने के बाद भी राज्य सरकारें नहीं बदल रही हैं। हम ये 6 महीनों से कह रहे हैं।’
सुप्रीम कोर्ट ने एक लाख रुपये जुर्माने की रकम कैसे वसूली जाएगी, इसका फैसला राज्य सरकार पर छोड़ दिया है। झारखंड सरकार के ऊपर है कि वह इसे गलती करने वाले अफसरों से वसूलती है या कौन सा तरीका अपनाती है।
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सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जुर्माने की रकम को सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट ऐडवोकेट्स-ऑन रिकॉर्ड असोसिएशन वेल्फेयर फंड में शेयर किया जाएगा।