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कब तक सताती रहेगी ‘महंगाई डायन,’ आरबीआई गर्वनर ने बताई पते की बात

RBI

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अक्टूबर के बाद महंगाई में गिरावट का संकेत दिया है. उनका कहना है कि भू-राजनीतिक और आर्थिक जोखिम बने हुए हैं.

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नई दिल्‍ली. आने वाले महीनों में महंगाई पर कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन जोखिम के बादल अभी भी मंडरा रहे हैं. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने संकेत दिया कि अक्टूबर में महंगाई ऊंची बनी रहेगी, लेकिन इसके बाद इसमें नरमी देखने को मिल सकती है. यह बयान उन्होंने वाशिंगटन में आईएमएफ-विश्व बैंक बैठक के दौरान दिया, जहां वे ‘मैक्रो वीक 2024’ के मंच पर अर्थव्यवस्था पर अपनी रणनीति साझा कर रहे थे.

सितंबर में महंगाई दर 5.5% पर जा पहुंची, जो पिछले नौ महीनों का उच्चतम स्तर है. इस बढ़ोतरी के पीछे सब्जियों और अन्य खाद्य उत्पादों की बढ़ी हुई कीमतों का योगदान माना जा रहा है. यह स्थिति लोगों के घरेलू बजट पर भारी पड़ रही है और आरबीआई की ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है.

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महंगाई को 4% पर लाने की महत्वाकांक्षी योजना
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्पष्ट किया कि आरबीआई का लक्ष्य महंगाई दर को केवल 2% से नीचे रखना नहीं है, बल्कि इसे 4% के लक्ष्य के करीब लाना है. उनका कहना है कि अक्टूबर के बाद महंगाई में धीरे-धीरे सुधार आ सकता है. उन्होंने कहा कि मजबूत आर्थिक वृद्धि ने उन्हें महंगाई पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर दिया है ताकि इसे 4% पर बनाए रखा जा सके, जो न केवल अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाएगा बल्कि भविष्य के लिए एक मजबूत आधार भी तैयार करेगा.

क्रिप्टोकरेंसी पर अंतरराष्ट्रीय सतर्कता की आवश्यकता
महंगाई के अलावा दास ने क्रिप्टोकरेंसी पर भी अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी की सीमापार गतिविधियों के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमति और सतर्कता बेहद जरूरी है. दास ने चेतावनी दी कि यदि क्रिप्टोकरेंसी को वित्तीय प्रणाली में अधिक दखल देने दिया गया, तो यह एक बड़ा प्रणालीगत जोखिम उत्पन्न कर सकती है. जी20 की भारत अध्यक्षता के दौरान, क्रिप्टोकरेंसी के नियमन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय ढांचे की दिशा में ठोस प्रगति हुई है, जो इसे नियंत्रण में रखने में मददगार साबित हो सकता है.

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क्या महंगाई से राहत संभव है?
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर के बाद महंगाई में गिरावट आ सकती है, लेकिन भू-राजनीतिक घटनाओं और मौसम की मार अब भी चुनौती बनी हुई है. बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत की आर्थिक स्थिरता का संतुलन बरकरार रखना कठिनाई से भरा कार्य है, लेकिन आरबीआई की त्वरित और संतुलित नीतियों से यह संभव है.

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