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राजनीति

Maharashtra Election 2024: ये कैसा गठबंधन…ऐन वक्त पर दलबदलू बने बीजेपी-एनसीपी के नेता, अजित पवार ने तो टिकट भी बांट दिए

Maharashtra Vidhan Sabha Chunav 2024 News: महाराष्ट्र में बीजेपी, एनसीपी (अजित पवार गुट) और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच गठबंधन है, जिसे महायुति कहत हैं. इसके बावजूद गठबंधन की पार्टियों में लगातार दल-बदल और दूसरी पार्टियों से टिकट भी रहा है. 

Maharashtra Mahayuti Alliance Candidate List News: चुनावों के दौरान नेताओं का दलों में इधर- उधर भागना आम बात है. जब भी ऐसी घटना होती है, तो जिस पार्टी से नेता दूसरे दल में जाता है, वह अपनी कड़ी प्रतिक्रिया देती है. लेकिन महाराष्ट्र में इसका उलट हो रहा है. वहां पर महायुति गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता आपस में ही एक-दूसरी पार्टियों को जॉइन कर रहे हैं. लेकिन इस उछल-कूद पर सभी पार्टियों के नेता खुश हैं और किसी को इस पर आपत्ति नहीं है. एक स्थानीय नेता के शब्दों में कहें तो ‘सब कुछ आराम से हो रहा है’. लेकिन सवाल ये है कि ऐसा क्यों हो रहा है. क्या इसके पीछे कोई सधी हुई रणनीति है या पार्टी टिकट न मिलने पर नेता दूसरे दलों की डोर पकड़ रहे हैं. आइए आपको इसका राज बताते हैं. 

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नीलेश राणे ने छोड़ी बीजेपी, थामा अजित पवार का हाथ

राजनीतिक पंडितों के अनुसार, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के बेटे नीलेश राणे बीजेपी छोड़कर एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना में शामिल हो गए हैं. पार्टी ने उन्हें कुडल-सावंतवाड़ी विधानसभा सीट से पार्टी टिकट भी दे दिया है. महायुति गठबंधन में हुए समझौते के तहत यह सीट शिवसेना (शिंदे गुट) को अलॉट की गई थी. 

नीलेश राणे का मुकाबला शिवसेना (उद्धव गुट) के उम्मीदवार वैभव नाइक से होगा. वैभव नाइक इस सीट से मौजूदा विधायक भी हैं. वे राणे परिवार के कट्टर विरोधी रहे हैं. ऐसे में यहां पर दोनों दिग्गजों के बीच बड़ी जंग देखने को मिल सकती है.

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ये दिग्गज भी कर गए बीजेपी को बॉय

केवल नीलेश राणे ही नहीं, बीजेपी के 4 अन्य बड़े नेता भी असेंबली चुनाव लड़ने के लिए पार्टी छोड़कर NCP (अजित पवार गुट) में शामिल हो गए. सांगली जिले से पूर्व सांसद संजय काका पाटिल और भाजपा जिला  अध्यक्ष निशिकांत भोसले पाटिल मुंबई में एनसीपी से जुड़ गए. एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे ने अंगवस्त्र पहनाकर उनका पार्टी में स्वागत किया है. पार्टी में शामिल होते ही तासगांव असेंबली सीट से संजय काका पाटिल को उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया. उनका मुकाबला एनसीपी (शरद पवार गुट) के नेता रहे आर आर पाटिल के बेटे रोहित पाटिल से होगा, जो पहली बार चुनाव मैदान में रहे हैं. 

वहीं निशिकांत भोसले पाटिल को अजित पवार ने इस्लामपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया है. उनका मुकाबला शरद पवार गुट वाली एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा विधायक जयंत पाटिल से होगा. पार्टी छोड़ने के बाद पूर्व भाजपा नेता निशिकांत ने वजह का भी खुलासा कर दिया. निशिकांत ने कहा कि उन्होंने उन्होंने डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़णवीस के निर्देश पर बीजेपी छोड़ी है.

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‘पार्टी छोड़ने के लिए मुझे फडणवीस ने कहा’

निशिकांत ने बताया, ‘मुझे भाजपा छोड़कर एनसीपी में आना पड़ा क्योंकि महायुति गठबंधन में हुए समझौते के तहत यह सीट (इस्लामपुर) एनसीपी के पास चली गई है. इसलिए अब मैं एनसीपी के टिकट पर इस्लामपुर सीट से चुनाव लडूंगा और जीतूंगा.’ निशिकांत ने वर्ष 2019 में भी इसी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और दूसरे नंबर पर रहे थे. इसके बाद वे बीजेपी से जुड़ गए और पार्टी ने उन्हें सांगली का जिलाध्यक्ष बना दिया. 

नियोजित दल-बदल की सूची यहीं तक नहीं है. बीते शुक्रवार को नांदेड़ जिले के बीजेपी के एक नेता, प्रतापराव पाटिल चिखलीकर भी पार्टी छोड़कर एनसीपी (अजित पवार गुट) में शामिल हो गए. अजित पवार ने उन्हें तुरंत लोहा असेंबली सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया. चिखलीकर नांदेड़ सीट से 2 बार सांसद भी रहे हैं. 

उनके साथ ही पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता राज बडोले भी एनसीपी में चले गए, जहां अजित पवार ने उन्हें अर्जुनी-मोरगांव विधानसभा सीट से टिकट दे दिया. वे इस सीट पर 2 बार विधायक रह चुके हैं लेकिन 2019 के चुनावों में हार गए थे. 

पार्टी नेता क्यों अपने नेताओं को दल छुड़वा रहे?

राजनीतिक पंडितों के मुताबिक यह सारा दल-बदल तीनों पार्टियों की आम सहमति से हो रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह एंटी-इंकंबेसी फैक्टर से बचना और जीत की संभावना बढ़ाना है. चुनाव से पहले करवाए गए सर्वे में पता चला था कि कहीं पर आम लोग अपने विधायक से नाराज हैं तो कहीं पर किसी खास पार्टी के नाम पर वोट नहीं देना चाहते. ऐसे में तीनों पार्टियों में आपसी सहमति से सीटें बदल ली, जिससे एंटी- इंकंबेसी फैक्टर बेकार हो जाए. इसके साथ ही अपने नेताओं को आम सहमति से गठबंधन में शामिल दूसरे दल जॉइन करवाए जा रहे हैं, जिससे दूसरी पार्टी के नाम पर उन्हें वोट मिल सकें. अब देखना होगा कि चुनाव में यह दांव कितना कारगर होने जा रहा है.

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