Privatization of electricity: यूपी में बिजली के निजीकरण में कई सारी वित्तीय खामियां हैं। उपभोक्ता परिषद ने सवाल उठाते हुए इस फैसले को संवैधानिक तरीके से चुनौती देने की तैयारी कर ली है।
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पूर्वांचल और दक्षिणांचल को प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत संचालित करने के लिए तैयार किए गए प्रस्ताव में कई तरह की वित्तीय खामियां हैं। प्रस्ताव में गैर सरकारी उपभोक्ताओं का एग्रीकेट टेक्निकल एंड कामर्शियल (एटी एंड सी) हानियां दक्षिणांचल की 39.42 फीसदी और पूर्वांचल की 49.22 फीसदी बताई गई हैं। वहीं केंद्र सरकार की ओर से इसे वर्ष 2024-25 के लिए दक्षिणांचल के लिए 18.49 और पूर्वांचल के लिए 18.97 फीसदी तय किया गया है।
उपभोक्ता परिषद ने इस अंतर को चुनौती दी है और आरोप लगाया है कि आकलन के दौरान आंकड़े जानबूझ कर गलत बताए जा रहे हैं। परिषद ने मुख्यमंत्री और उर्जा मंत्री से प्रस्ताव की खामियों को लेकर सीबीआई जांच कराने की मांग की है। हालांकि पावर काॅर्पोरेशन प्रबंधन से जुड़े अधिकारी इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से इन्कार कर रहे है। उनका कहना है कि उन्होंने मसौदा शासन को भेज दिया है। फैसला वहां से होना है।
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पूर्वांचल और दक्षिणांचल को पीपीपी मॉडल पर चलाने के प्रस्ताव को निदेशक मंडल से पास करने के बाद एनर्जी टास्क फोर्स में भेजा गया है। यहां मुहर लगने के बाद इसे कैबिनेट में भेजा जाएगा। इसी बीच मंगलवार को उपभोक्ता परिषद ने एनर्जी टास्क फोर्स में रखे गए प्रस्ताव में वित्तीय आंकड़ों में कई तरह के हेरफेर होने का दावा किया। परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि भारत सरकार की स्टैंडर्ड बिल्डिंग गाइडलाइन के अनुसार 15 फीसदी से अधिक एटी एंड सी हानियों के आधार पर निगम को पीपीपी मॉडल को दिया जा सकता है।
स्टैंडर्ड बिडिंग गाइडलाइन में नियमों को किया दरकिनार
भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश में एटी एंड सी हानियों का अनुमोदन किया है। इसमें दक्षिणांचल की 18.49 और पूर्वांचल की 18.97 फीसदी है। जबकि काॅर्पोरेशन के प्रस्ताव में दक्षिणांचल की 39.42 फीसदी और पूर्वांचल की 49.22 फीसदी दिखाई गई हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इसके पीछे कुछ अधिकारियों की उद्योगपतियों को उपकृत करने की मंशा है। इसी तरह स्टैंडर्ड बिडिंग गाइडलाइन में भी नियमों को दरकिनार किया गया है। दोनों निगमों की परिसंपत्तियां करीब लगभग 80 हजार करोड़ हैं, जिसमें आरडीएसएस योजना सहित विभिन्न योजनाओं के तहत चल रहे कार्य भी हैं। इसके बाद भी भारत सरकार का नियम है कि निगम की कुल परिसंपत्तियों के आधार पर ही उसे अधिग्रहित करने वाली कंपनी की माली हालत 30 फीसदी होनी चाहिए। यदि निगमों के आधार पर देखें तो इन्हें अधिग्रहित करने वाली कंपनी की माली हालत 24 हजार करोड़ होनी चाहिए। इसे पांच हिस्से में बांटा जाए तो नई बिजली कंपनी की माली हालत कम से कम 4800 करोड़ जरूरी है, लेकिन प्रस्ताव में नई बनने वाली कंपनी की टेंडर प्रक्रिया की शर्तों में रिजर्व बीडिंग में शामिल होने वाली कंपनी की माली हालत सिर्फ दो हजार करोड़ ही रखी गई है।
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गलत आंकड़े पेश करने वालों पर हो कार्रवाई – वर्मा
वर्मा ने दावा किया कि प्रस्ताव में आरक्षित निविदा मूल्य 2000 करोड़ आकलित करते हुए गोरखपुर कलस्टर की न्यूनतम निविदा मूल्य करीब 1010 करोड़, काशी कलस्टर की करीब 1650 करोड़, प्रयागराज कलस्टर की करीब 1630 करोड़, आगरा-मथुरा कलस्टर की करीब 1660 करोड़, झांसी-कानपुर कलस्टर की करीब 1600 करोड़ रुपया आंका गया है। स्टैंडर्ड गाइडलाइन के हिसाब से उत्तर प्रदेश की यह निविदा पीपीपी मॉडल एटी एंड सी हानियों के आधार पर होनी चाहिए। परिषद के अध्यक्ष ने गलत आंकड़े पेश करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। यह भी कहा कि इस मामले को लेकर संवैधानिक लड़ाई लड़ी जाएगी।