पीठ ने इस प्रवृत्ति को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए। पीठ ने उक्त टिप्पणी थाना नबी करीम में दहेज उत्पीड़न समेत अन्य धाराओं के तहत दर्ज मामले को रद करने की मांग वाली याचिका पर की।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। एक आपराधिक मामले में जांच अधिकारी के अदालत में पेश नहीं होने की प्रवृत्ति को दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की पीठ ने कहा कि आपराधिक न्याय तंत्र को पुलिस विभाग और उसके अधिकारियों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है। जांच अधिकारी लापरवाही के कारण मामलों को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं और पूरी व्यवस्था ठप हो जाती है।
पीठ ने मध्य जिला के डीसीपी को व्यक्तिगत रूप से मामले को देखने का निर्देश देते हुए कहा कि दस दिनों के भीतर संबंधित अधिकारी का लिखित स्पष्टीकरण लेकर हलफनामा दाखिल करें। अगर उक्त समयावधि के बीच ऐसा नहीं किया गया तो 24 फरवरी को डीपीपी को अगली सुनवाई पर पेश होना होगा। पीठ ने इस प्रवृत्ति को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए। जांच अधिकारी न्यायालय के समक्ष पेश होने से बच रहे हैं। पीठ ने उक्त टिप्पणी थाना नबी करीम में दहेज उत्पीड़न समेत अन्य धाराओं के तहत दर्ज मामले को रद करने की मांग वाली याचिका पर की।
याचिका पर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई सुनवाई के दौरान पहली काल पर पुलिस विभाग की तरफ से कोई पेश नहीं हुआ। दूसरी काल पर एक सब इंस्पेक्टर पेश हुए। अतिरिक्त लोक अभियोजक के पूछने पर बताया गया कि जांच अधिकारी तारीख पर उपलब्ध नहीं है। अतिरिक्त लोक अभियोजक ने सूचित किया कि अतिरिक्त एसएचओ को इस मामले में पेश होने का निर्देश दिया था, लेकिन पेश नहीं हुए।