महाशिवरात्रि का त्योहार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है. भगवान शिव की उपासाना का ये विशेष दिन इस बार 1 मार्च, 2022 को पड़ रहा है. महाशिवरात्रि के दिन शिव की पूजा से हर मनोकामना पूरी होती है. भगवान शिव के कई रूप हैं.
- 1 मार्च को मनाई जाएगी महाशिवरात्रि
- शिवजी की तीसरी आंख है एक रहस्य
- शास्त्रों में है कथा का वर्णन
Maha Shivaratri 2022: महाशिवरात्रि का त्योहार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है. भगवान शिव की उपासाना का ये विशेष दिन इस बार 1 मार्च, 2022 को पड़ रहा है. महाशिवरात्रि के दिन शिव की पूजा से हर मनोकामना पूरी होती है. भगवान शिव के कई रूप हैं. सिर पर चंद्र, गले में नाग की माला और शिवजी की तीसरी आंख. भगवान शिव की तीसरी आंख किसी रहस्य से कम नहीं है. ऐसे में जानते हैं शिव की तीसरी आंख का रहस्य.
दिव्य दृष्टि का है प्रतीक
शास्त्रों के मुताबिक भगवान की तीसरी उनकी दिव्य दृष्टि है. कहते हैं कि इस दिव्य दृष्टि से कुछ छिपा नहीं रह सकता है. साथ ही शिवजी की तीसरी आंख ज्ञान चक्षु के सामान है. इस तीसरी आंख से वो तीनों लोकों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं. इसके अलावा शिव की तीसरी आंख उनकी शक्ति का केंद्र है. माना जाता है कि उनकी तीसरी आंख खुलते ही पूरी सृष्टि नष्ट हो जाएगी.
भगवान शिव की तीसरी आंख की कथा
भगवान शिव की तीसरी आंख के विषय में शास्त्रों में कई कथाओं का उल्लेख किया गया है. ऐसी ही एक कथा है कि जब भगवान शिव ध्यान में मग्न थे तो माता पर्वती अपने दोनों हथेलियों से उनकी आंखों को ढक दिया. जिसके बाद पूरी सृष्टि में अंधेरा छा गया. कहते हैं कि भगवान शिव की तीसरी आंख से इतनी अधिक शक्ति प्रज्ज्वलित हुई जिससे पूरी धरती जलने लगी. तब मां पार्वती ने शिव की आंखों से अपनी हथेलियां हटा लीं. जिसके बाद स्थिति सामान्य हुई.
शिव के तीसरे नेत्र की दूसरी कथा
शास्त्रों में वर्णित एक अन्य कथा के अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया. जिसमें माता पार्वती और शिव को भी बुलावा भेजा गया. लेकिन वहां पर शिवजी के साथ हुए अपमान को माता पार्वती सहन ना कर सकीं और उन्होंने आत्मदाह कर लिया. कहते हैं कि इस घटना से शिव इतना अधिक विचलित हुए कि वो वर्षों तक घोर तरस्या करते रहे. समय के साथ सती का जन्म हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ. परंतु, भगवान शिव ध्यान में इतना अधिक मग्न थे कि उन्हें किसी बात का पता नहीं चला. वहीं देवतागण चाहते थे कि जल्द माता पार्वती और शिव का मिलन हो जाए, लेकिन इसके लिए सभी प्रयास विफल हो गए. अंत में देवतागण कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा. कामदेव भी अपने कई प्रयासों में विफल रहे. इसके बाद कामदेव ने पुष्प बाण चलाया, जो सीधे शिवजी के हृदय में जाकर लगा और शिव का ध्यान भंग हो गया. ध्यान भंग होने के कारण भगवान शिव इतना अधिक क्रोधित हुए कि उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव के भस्म कर दिया. जिसके बाद कामदेव की पत्नी ने शिव से गुहार लगाई कि उनके पति को फिर से जीवित कर दें. तब शिव ने कहा कि द्वार युग में कामदेव का जन्म श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में होगा.