टूरिज्म को बढ़ावा देने के मकसद से दिल्ली में बनने जा रहा है पहला ई-वेस्ट इको पार्क जो अपनी तरह का पहला ऐसा पार्क होगा। तो क्या होगा इस पार्क में खास और कैसे काम होगा यहां जान लें जरा इसके बारे में।
पिछले दो सालों से डगमग चल रहे पर्यटन क्षेत्र में रफ्तार भरने और उसे बढ़ावा देने के मकसद से अलग-्अलग देश अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे हैं, जिसमें भारत भी पीछे नहीं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बनने जा रहा है पहला ई-वेस्ट इको पार्क। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में दिल्ली कैबिनेट ने दिल्ली में देश के पहले ई-वेस्ट मैनेजमेंट इको पार्क बनाने को मंजूरी दे दी है। जो बहुत ही अलग और खास होने वाला है। पर्यावरण को बिना कोई नुकसान पहुंचाए इस ई-वेस्ट पार्क को बनाने का काम होगा।
ऐसे बनाया जाएगा इस पार्क को खास
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने प्रेस कॉफ्रेंस ने बताया कि 20 एकड़ में फैला ये वेस्ट-मैनेजमेंट पार्क स्टेट ऑफ़ आर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर से लैस होगा, जहां इनफॉर्मल सेक्टर के ऑपरेटरों को फॉर्मल री-साइकिलिंग के लिए भी ट्रेनिंग दी जाएगी। यहां साइंटिफिक और इंटीग्रेटेड तरीके से एक परिसर के अंदर ही ई-वेस्ट को रिफर्बिश, डिसमेंटर, रिसाइकल व री-मैनुफैक्चर करने का काम किया जाएगा। साथ ही ई-वेस्ट को चैनलाइज करने के लिए 12 जोन में कलेक्शन सेंटर भी स्थापित किए जाएंगे।
ऐसे काम करेगा ई-वेस्ट मैनेजमेंट पार्क
अपने इंटीग्रेटेड सिस्टम के साथ ई-वेस्ट इको-पार्क एक ही कैंपस में प्लास्टिक वेस्ट को प्रोसेस करने के साथ-साथ ई-वेस्ट को रिफर्बिश, डिसमेंटल, रिसाइकल व री-मैनुफैक्चर का भी काम करेगा। जो कमाल की बात है। ई-वेस्ट ईको-पार्क में हर तरह की प्रोसेसिंग और री-साइकल यूनिट लगाई जाएंगी जिससे फ्यूचर में इनसे उत्पादन के लिए सामग्री निकाली जा सके। इस फैसिलिटी का इस्तेमाल हाई टेक्निक के माध्यम से डिसमेंटलिंग, सेग्रिगेशन, रिफर्बिशिंग प्लास्टिक रीसाइकलिंग और बहुमूल्य धातुओं का एक्सट्रैक्शन किया जाएगा।
भारत ई-वेस्ट का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक
आपको बता दें कि e-waste पूरी दुनिया के लिए बढ़ती हुई एक बड़ी परेशानी है। भारत ई-कचरे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। ई-कचरा 3 से 5 फीसदी की दर के साथ सबसे तेजी से बढ़ते कचरे में से एक है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर रिपोर्ट 2020 के मुताबिक दुनिया भर में 2019 में 53.7 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कचरा पैदा हुआ था, जो 2030 तक 74.7 एमएमटी तक पहुंचने की संभावना है।