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उत्तराखंड

केदारनाथ में श्रद्धालुओं अब आसानी से कर सकेंगे दर्शन, रामबाड़ा रोप-वे बनने की राह आसान,जानिए क्या है प्लान 

केदारनाथ धाम के लिए घोड़ा-खच्चर, डंडी-कंडी और हेलीकॉप्टर सुविधा के साथ अब रोप-वे की सुविधा देने की तैयारी की जा रही है। केंद्र के निर्देशों पर योजना की डीपीआर तैयार हो रही है जिसे स्वीकृति मिलने के बाद ही इस दिशा में अग्रिम कार्यवाही शुरू होगी। केदारनाथ धाम के लिए पूर्व में कई स्तर पर रोप-वे निर्माण की मांग की जाती रही है।

पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोरखरियाल निशंक, पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्य सभी ने भी केदारनाथ में रोप-वे की पैरवी की। तीर्थयात्रा के दौरान यात्री भी रोप-वे की व्यवस्था करने को जायज बताते रहे, किंतु इस दिशा में ठोस कार्यवाही नहीं हो सकी। वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद केदारनाथ धाम संवारने की दिशा में तेजी से कार्य होने लगे।

इसी बीच यहां रोप-वे की अत्यंत आवश्यकता महसूस होने लगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच बार केदारनाथ आने के बाद अब यहां रोप-वे बनने की राह आसान होने लगी है। हालांकि जब तक इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं की गई तब तक महज यह उम्मीदों के सहारे हैं किंतु प्रशासन का कहना है कि इस दिशा में त्वरित कार्यवाही की जा रही है।

जिलाधिकारी मनुज गोयल ने बताया कि केदारनाथ रोप-वे को लेकर डीपीआर का काम चल रहा है। जल्द ही इसकी स्वीकृति मिलने की उम्मीद है। वहीं केदारनाथ के निवर्तमान विधायक मनोज रावत, वरिष्ठ तीर्थपुरोहित श्रीनिवास पोस्ती, केदारसभा के अध्यक्ष विनोद शुक्ला आदि ने केदारनाथ में रोप-वे निर्माण को जरूरी बताते हुए इसके निर्माण की मांग की। 

वर्ष 2018 के यात्रा सीजन में केंद्रीय पर्यटन सचिव ने जिला प्रशासन रुद्रप्रयाग से केदारनाथ रोपवे का प्रस्ताव मांगा था। जबकि दो साल बाद इसमें तत्कालीन सरकार ने एक प्राइवेट कंपनी से सर्वे भी कराया। जबकि बीते वर्ष भी रामबाड़ा-केदारनाथ रोपवे निर्माण को लेकर दोबारा सर्वे किया गया है। वहीं दो माह पूर्व केदारनाथ में रोप-वे के सर्वे से फिर यहां रोप-वे बनने की राह आसान सी लगने लगी है।

17 साल पहले भी हुआ था रोपवे के लिए सर्वे
17 साल पहले वर्ष 2005 में रामबाड़ा-केदारनाथ के लिए साढ़े तीन किमी रोपवे की स्वीकृति मिली थी। तब  उत्तरांचल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी (यूडेक) द्वारा योजना निर्माण के लिए सर्वे किया गया। इसके निर्माण के लिए करीब 70 करोड़ की धनराशि का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। योजना में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड में कार्य किया जाना था जबकि यह कार्य भी वर्ष 2009 में टेंडर आमंत्रित करने के बाद आगे नहीं बढ़ सका। 

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