कई बार कंपनी अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में केवल आपके अस्पताल में एडमिट होने के खर्चे के क्लेम को देती है. इसके अलावा आपको ओपीडी फीस, दवा के खर्चे आदि के क्लेम को देने से मना कर सकती है.
कोरोना महामारी शुरू होने के बाद भारत समेत पूरी दुनिया में लोगों के बीच हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने को लेकर जागरुकता काफी बढ़ी है. लोग बीमारी से होने वाले खर्चे से बचने के लिए महंगी-महंगी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीद रहे हैं. लेकिन, कई बार हेल्थ इंश्योरेंस खरीदते वक्त सही जानकारी न रखने से बाद में क्लेम लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है. समय आने पर इंश्योरेंस कंपनी ग्राहकों को क्लेम देने से मना कर देती है. अगर आपके साथ भी ऐसा हुआ है कि अस्पताल में भर्ती होने के बाद भी आपको हेल्थ क्लेम मिलने में परेशानी हो रही है तो इसके कई कारण हो सकते हैं. तो चलिए जानते हैं इस बारे में-
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पुरानी बीमारियों के बारे में जानकारी न देना
आपको बता दें कि कई बार लोग हेल्थ इंश्योरेंस लेते वक्त अपनी पुरानी बीमारियों की जानकारी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को नहीं देते हैं. इस कारण बाद में बड़ी समस्या का सामना करना पड़ सकता है. अगर आप पहले से किसी तरह की बीमारी जैसे डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी आदि परेशानियों के ग्रसित है तो इसकी जानकारी पॉलिसी खरीदते वक्त इंश्योरेंस कंपनी को जरूर दें. इसके बाद में किसी तरह की हेल्थ संबंधी परेशानी होने पर आपको क्लेम आसानी से मिल जाएगा.
अलग-अलग खर्चों का न करें क्लेम
आपको बता दें कि कई बार कंपनी अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में केवल आपके अस्पताल में एडमिट होने के खर्चे के क्लेम को देती है. इसके अलावा आपको ओपीडी फीस, दवा के खर्चे आदि के क्लेम को देने से मना कर सकती है. ऐसे में यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप किसी तरह का हेल्थ इंश्योरेंस लेने से पहले उसे सारे Terms और Conditions को सही तरह से पढ़ लें. उसके बाद ही पॉलिसी खरीदें.
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लगातार अस्पताल में भर्ती होना है जरूरी
कई बार लोगों के बीमार होने पर अस्पताल किसी मरीज को 24 घंटे की निगरानी में रखने के बाद डिस्चार्ज कर देते हैं. ऐसे में स्थिति में हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम को कई बार कंपनियां रिजेक्ट कर देती है.उनका कहना होता है कि ग्राहक हेल्थ इंश्योरेंस को तभी क्लेम कर सकता है जब वह Being Actively Treated की कैटेगरी में आता हो.