ब्रिटेन (Britain) की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स (University Of Leeds) के वैज्ञानिकों की अगुवाई में हुई एक नई स्टडी की गई, जिसमें वार्निंग दी गई है कि टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes) के मरीजों में अगर ब्लड फैट (Blood Fat) का लेवल बढ़ जाए तो उन्हें काफी ज्यादा नुकसान हो सकता है. ब्लड फैट बढ़
नई दिल्ली: ब्रिटेन (Britain) की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स (University Of Leeds) के वैज्ञानिकों की अगुवाई में हुई एक नई स्टडी की गई, जिसमें वार्निंग दी गई है कि टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes) के मरीजों में अगर ब्लड फैट (Blood Fat) का लेवल बढ़ जाए तो उन्हें काफी ज्यादा नुकसान हो सकता है.
ब्लड फैट बढ़ना खतरे की घंटी
मेटाबॉलिक डिजीज (Metabolic Disease) के मरीजों के ब्लड में फैट (High Blood Fat) का लेवल बढ़ने से मसल्स के सेल्स में स्ट्रेस बढ़ जाता है, जिससे कोशिकाओं के बाहर की स्थिति में बदलाव आता है और उसकी संरचना (Structure) और कामकाज को नुकसान पहुंचता है.
बिगड़ सकती है मरीजों की हालत
अध्यनकर्ताओं ने इस बात का पता लगाया है कि तनाव ग्रस्त कोशिकाएं (Stressed Cells) एक सिग्नल देती हैं, जिसे दूसरे सेल्स तक पहुंचाया जा सकता है. ये सिग्नल सेरमाइड्स (Ceramides) कहलाते हैं और शॉर्ट टर्म में ये प्रोटेक्टिव फंक्शन (Protective Function) भी कर सकते हैं, क्योंकि ये उस सिस्टम का हिस्सा होते हैं, जो सेल्स में तनाव कम करते हैं. लेकिन मेटाबॉलिक डिजीज के रोगियों में ये सिग्नल सेल्स को मार भी सकते हैं, जिससे बीमारी बढ़ती है और मरीजों की हालत बिगड़ जाती है.
ब्लड में फैट को न बढ़ने दें
ब्लड में फैट का लेवल बढ़ने से शरीर को काफी नुकसान होता है और इनसे कार्डियोवस्कुलर और टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बना रहता है. रिसर्चर्स का कहना है कि ऐसे हालात आमतौर पर मोटापे की वजह से होते और ये रोग दुनियाभर में साल 1975 से तीन गुना बढ़ गया है. इस स्टडी के नतीजे ‘नेचर कम्यूनिकेशंस (Nature Communications)’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
इस स्टडी के सुपरवाइजर और यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स में मॉलीक्यूलर फिजियोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म के प्रोफसर ली राबर्ट्स (Professor Lee Roberts) ने कहा, ‘हालांकि ये रिसर्च अभी शुरुआती चरण में हैं, लेकिन ये खोज कार्डियोवस्कुलर और डायबिटीज समेत अन्य मेटाबाॉलिक डिजीज की रोकथाम और नए इलाज खोजने का आधार बन सकता है.’
स्टडी से मिला नया नजरिया
प्रोफेसर रॉबर्ट्स का कहना है कि ये स्टडी हमें नया नजरिया देती है कि मोटापे के शिकार लोगों की कोशिकाओं में किस प्रकार से तनाव होता है और मेटाबोलिक डिजीज के इलाज का एक नया विकल्प मिल सकता है. मौजूदा समय में मोटापा एक महामारी की तरह फैल रही है और इसी कारण उससे जुड़ी टाइप-2 डायबिटीज जैसी क्रॉनिक बीमारियों के लिए नए इलाज की जरूरत बढ़ गई है.
कैसे हुई ये रिसर्च?
लैब में अध्यनकर्ताओं ने कंकाल की मसल्स के सेल्स को पामिटेट (Palmitate) नामक फैटी एसिड के संपर्क में लाकर मेटाबॉलिक डिजीज वाले रोगियों में देखे गए ब्लड फैट को बढ़ाया तो पाया कि सेल्स ने सेरामाइड सिग्नल देना शुरू कर दिया. जब इन सेल्स को अन्य सेल्स के साथ मिलाया गया, जो पहले से फैटी एसिड के संपर्क में नहीं थी, तो पाया गया कि उनमें आपसी संवाद शुरू हो गया. इन सिग्नलों के पैकेज को एक्स्ट्रा सेलुलर वेसिक्वल (Extracellular Vesicles) कहते हैं.
मेटाबॉलिक डिजीज में भी फायदेमंद
जब ये एक्सपेरिमेंट मेटाबॉलिक डिजीज से पीड़ित इंसानों पर दोहराया गया, तो तुलनात्मक रूप से एक जैसे नतीजे आए. अध्यनकर्ताओं का कहना है कि ये नतीजे बिलकुल ही नई एप्रोच है, तनाव के प्रति सेल्स किस प्रकार से रिएक्ट करती हैं, इससे मेटाबॉलिक से जुड़ी बीमारियां और मोटापा (Obesity) के बारे में बेहतर समझ विकसित होगी.