बेंगलुरु के कंज्यूमर कोर्ट ने कहा है कि हाइपरटेंशन और डायबिटीज बीमारियां नहीं बल्कि सामान्य फिजिकल डिसॉर्डर्स हैं. इनके आधार पर मेडिकल इंश्योरेंस के क्लेम को खारिज नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने समय पर प्रीमियम का भुगतान करने के बावजूद क्लेम खारिज करने पर रेलिगेयर को आड़े हाथ लिया. जजों ने कंपनी को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने बीमार मरीज की भी परवाह नहीं की.
नई दिल्ली. हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय अगर आपने बीमा कंपनी को डायबिटीज, हाइपरटेंशन के बारे में नहीं बताया है तो फिक्र की अब कोई बात नहीं है. इस आधार पर बीमा कंपनियां आपके क्लेम को अब खारिज नहीं कर पाएंगी. बेंगलुरु के एक कंज्यूर कोर्ट का इस संबंध में दिया गया फैसला पूरे देश के लिए नजीर बन सकता है.
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बेंगलुरु के कंज्यूमर कोर्ट ने कहा है कि हाइपरटेंशन और डायबिटीज बीमारियां नहीं बल्कि सामान्य फिजिकल डिसॉर्डर्स हैं. इनके आधार पर मेडिकल इंश्योरेंस के क्लेम को खारिज नहीं किया जा सकता है. मनीकंट्रोल ने हिंदुस्तान टाइम्स के हवाले से बताया है कि कंज्यूमर कोर्ट के जजों ने निजी बीमा कंपनी को फटकार भी लगाई है.
क्या है मामला
रेलिगेयर इंश्योरेंस कंपनी द्वारा एक मरीज के क्लेम को खारिज किए जाने के मामले में कंज्यूमर कोर्ट ने यह आदेश दिया है. कोर्ट ने बीमा कंपनी को 6.7 लाख रुपये मरीज को देने का आदेश दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक, 60 वर्षीय एक व्यक्ति ने नवंबर 2011 में रेलिगेयर से फैमिली कवर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी. मरीज को 2018 में कैंसर का पता चला तो हॉस्पिटल में इलाज शुरू हुआ. हॉस्पिटल का बिल 11 लाख रुपये का आया. मरीज ने 5 लाख रुपये का इंश्योर्ड सम लेने के लिए रेलिगेयर से संपर्क किया तो कंपनी ने क्लेम खारिज कर दिया.
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बीमा कंपनी ने ये तर्क दिया
रेलिगेयर इंश्योरेंस ने तर्क दिया कि पॉलिसीहोल्डर को पहले से डायबिटीज और हाइपरटेंशन बीमारी थी. इसका पॉलिसी लेते समय खुलासा नहीं किया गया था. कंपनी की ओर से क्लेम खारिज किए जाने पर मरीज ने कंज्यूमर कोर्ट में मुकदमा दायर किया. 8 महीने तक चली लड़ाई के बाद कोर्ट ने मरीज को मुआवजा देने का बीमा कंपनी को आदेश दिया. कंपनी को 12 फीसदी ब्याज के साथ 5 लाख रुपये, 1.1 लाख मानसिक उत्पीड़न के लिए और मुकदमे के खर्च के रूप में 10 हजार रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया.
कंज्यूमर कोर्ट ने समय पर प्रीमियम का भुगतान करने के बावजूद क्लेम खारिज करने पर रेलिगेयर को आड़े हाथ लिया. जजों ने कंपनी को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने बीमार मरीज की भी परवाह नहीं की.