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बैंक चाहते हैं कि RBI बदले धोखाधड़ी की परिभाषा, आखिर बैंको को क्‍यों करनी पड़ रही है यह मांग?

RBI

मौजूदा नियमों के मुताबिक यदि कोई किसी एक बैंक में किसी कंपनी का अकाउंट फ्रॉड घोषित हो जाता है तो उसके कंपनी के अन्‍य बैंकों के लोन अकाउंट भी फ्रॉड घोषित हो जाएंगे. बैंक चाहते हैं कि इस नियम में बदलाव करके इसे तर्कसंगत बनाया जाए.

नई दिल्‍ली. देश के सभी प्रमुख बैंक चाहते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक फ्रॉड अकाउंट की परिभाषा को बदले. रिजर्व बैंक के वर्तमान नियमों के अनुसार अगर किसी कंपनी के अकाउंट को कोई एक बैंक फ्रॉड अकाउंट घोषित कर देता है तो सभी बैंकों को उस कंपनी के खातों को फ्रॉड अकाउंट घोषित करना पड़ता है. भले ही कंपनी का लेन-देन दूसरे बैंकों के साथ बिल्‍कुल सही हो.

news18.com  की एक रिपोर्ट के अनुसार इंडियन बैंक एसोसिएशन के (Indian Banks Association) सीईओ सुनील मेहता का कहना है कि हमारे पास एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जहां फंड के एक छोटे से डायवर्जन के कारण पूरी कंपनी कलंकित न हो और कंपनी द्वारा लिए गए सारे ऋण को ही धोखाधड़ी कर लिया गया लोन न माना जाए.

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नियमों में बदलाव की मांग
मेहता का कहना है कि फ्रॉड घोषित होने और इसके बाद एफआईआर जैसी कार्यवाही होने से कंपनी की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. इससे कंपनी के प्रति नकारात्‍मक धारणा बनती है. ये बैंकों को किसी भी तरह के लोन संबंधी निर्णय लेने से रोकती है. मेहता का कहना है कि बैंक इन नियमों में बदलाव की मांग भारतीय रिजर्व बैंक से जल्‍द करेंगे.

मौजूदा नियमों के मुताबिक यदि कोई किसी एक बैंक में किसी कंपनी का अकाउंट फ्रॉड घोषित हो जाता है तो उसके कंपनी के अन्‍य बैंकों के लोन अकाउंट भी फ्रॉड घोषित हो जाएंगे. उदाहरण के लिए अगर किसी फॉरेंसिक ऑडिट में कंपनी द्वारा 500 रुपये कि धोखाधड़ी सामने आती है तो उसी कंपनी द्वारा दूसरे बैंक से लिया गया 10,000 करोड़ रुपये का लोन भी फ्रॉड लोन की श्रेणी में आ जाता है. सभी बैंकों को अपने यहां मौजूद कंपनी के अकाउंट को फ्रॉड घोषित कर आपराधिक कार्यवाही शुरू करनी होती है और कार्यवाही को अपने खातों में दर्ज करना होता है.

धोखाधड़ी में कमी
ऐसे मामले में, बैंक चाहते हैं कि आरबीआई उन्हें धोखाधड़ी के वर्गीकरण को केवल 300 करोड़ रुपये या वैल्‍यू एट रिस्‍क तक सीमित रखने की अनुमति दे. आज, जिन बैंकों को कंपनी ने डिफॉल्ट नहीं किया है, उन्हें भी कंपनी को धोखाधड़ी की श्रेणी में रखना पड़ता है. इसे बैंक सही नहीं मान रहे हैं.

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पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में धोखाधड़ी में शामिल पूंजी में कमी आई है और यह वित्‍त वर्ष 2022 में 40,295.25 रुपये रही है. लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि फ्रॉड के मामलों में ज्‍यादा कमी नहीं आई है. वित्‍त वर्ष 2021-22 में फ्रॉड के 7940 केस सामने आए हैं जबकि पिछले वित्‍त वर्ष में यह संख्‍या 9933 थी.

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में 627 धोखाधड़ी के मामले
बैंक ऑफ इंडिया में 209 फ्रॉड केस हुए हैं. इसमें 5923.99 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई है. बैंक ऑफ बड़ौदा में 280 फ्रॉड केस सामने आए है तो यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में 627 धोखाधड़ी के मामले उजागर हुए हैं. केनरा बैंक में 90 ऐसे केस सामने आए हैं.

2015-16 में बैंकों ने धोखाधड़ी के कारण 67,760 करोड़ रुपये की पूंजी गवाई थी जो 2016-17 में घटकर 59,966.4 करोड़ रुपये रह गई. 2017-18 को धोखाधड़ी के कारण 45,000 करोड़ की चपत लगी. 2019-20 में फिर इसमें गिरावट आई और यह आंकड़ा 27,698.4 करोड़ रुपये पर आ गया. वर्ष 2020-21 में बैंकों ने धोखाधड़ी के कारण 10,699.9 करोड़ रुपये खो दिए.

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